अफगानिस्तान में बगैर तालिबान से बातचीत अमेरिका कामयाब नहीं होगा?

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हाल के हफ्तों में तालिबान ने दर्जनों अफगानी लोगों की जान ली है. इसके बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप उनसे मिले होते और हाथ मिलाया होता. लेकिन जैसे ही खबर आई कि एक और तालिबानी हमले में एक अमेरिकी सैनिक भी मारा गया है, ट्रंप ने पहले से तय अपनी इस मुलाकात को रद्द कर दिया.

और इसी के साथ मिट्टी में मिला दिया उस संभावना को जो कि अमेरिका और तालिबान के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर से पैदा होती.

ट्रंप ट्विटर पर एक मरने वाले की कीमत उसकी राष्ट्रीयता के आधार पर लगाने का कुटिल काम कर रहे हैं. वे जानते हैं कि अमेरिका में उनके फिर से चुने जाने के मकसद में अमेरिकी सैनिकों के खून से रंगे तालिबान से हाथ मिलाने से नुकसान हो सकता है.

एक बार फिर वार्ता रद्द कर उन्होंने दिखा दिया है कि वे अपने अमेरिकी वोटरों को खुश रखना चाहते हैं भले ही उससे दुनिया में कुछ भी असर हो. तो क्या मान लेना चाहिए कि करीब एक साल से चल रही अफगानिस्तान में शांति बहाल करने की कोशिशें इसी के साथ दम तोड़ देंगी? सौभाग्यवश, फिलहाल तो ऐसा नहीं लगता.

भले ही एक ओर तालिबान और अमेरिकी सैनिकों को मारने और हमले जारी रखने की धमकी दे रहा हो और राजधानी काबुल समेत देश के एक बड़े हिस्से पर अब भी नियंत्रण बनाए हुए हो, फिर भी यह कट्टरवादी समूह जानता है कि वह पश्चिमी सेनाओं से जीत तो नहीं सकता. अगर यह सच न होता तो वे अपने कट्टर दुश्मन से बातचीत के लिए राजी ही क्यों हुए होते.

जल्द ही ट्रंप के भावावेश से भरे ट्विटर संदेशों के बादल हटेंगे और फिर सामने होगा तालिबान को लेकर एक संतुलित विदेश नीति रवैया. निश्चित तौर पर ऐसा लग रहा था कि अमेरिका-तालिबान समझौता होने ही वाला था, लेकिन ऐसी कुछ रिपोर्टें भी बाहर आई हैं जिनसे पता चलता है कि दोनों पक्षों के बीच कई मुद्दे अब भी सुलझाए जाने बाकी थे. हो सकता है कि ट्रंप के मुलाकात रद्द करने के पीछे असली वजह यही रही हो.

जाहिर है अपने देश के एक सैनिक को लेकर देशभक्ति वाले संदेश से ओतप्रोत होकर इसे आधिकारिक तौर पर रद्द करना ट्रंप के समर्थकों को कहीं ज्यादा प्रभावित करेगा.

तमाम खूनखराबे के बावजूद ट्रंप खुद भी ऐसा नहीं करना चाहेंगे कि अफगानिस्तान में एक शांति समझौते को भुला दिया जाए. उन्होंने अपने समर्थकों से चुनावी वादा जो किया था कि वे जल्द से जल्द अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों को वापस बुला लेंगे और वहां अपने सैनिकों की जान नहीं जाने देंगे.

अगर वाकई तालिबान अमेरिका को बातचीत की मेज पर वापस लाने के लिए और अमेरिकी सैनिकों को निशाना बनाते हैं तो हर अमेरिकी सैनिक की मौत का ठीकरा ट्रंप के माथे फोड़ा जाएगा. जल्द ही उनके चुनाव प्रचार अभियान को हवा मिलेगी ऐसे में ट्रंप को इससे नुकसान हो सकता है.

लेकिन तालिबान को दोबारा सोचना होगा कि अपने मकसद में सफल होने के लिए क्या और बल प्रयोग करने की रणनीति से वाकई उन्हें फायदा होगा. ट्रंप के ट्वीट से तो उन्हें भी समझ आना जाना चाहिए कि बम गिराकर वे जल्दी जीत हासिल नहीं कर पाएंगे.

इसके अलावा, अमेरिका और तालिबान दोनों ने अब तक जिस तरह अफगानी सरकार को नजरअंदाज किया है, उसमें भी बदलाव आ सकता है. सरकार अचानक ज्यादा अहम भूमिका में आ सकती है और खुद को और आफगानी वोटरों की मान्यता दिलाने के लिए सितंबर में चुनाव भी करा सकती है.

कुछ ही हफ्तों में अफगानिस्तान में चुनाव कराए जा सकते हैं, जिन पर लंबे समय से अनिश्चितता छाई थी. इस लिहाज से आने वाले कुछ दिन इस पूरे घटनाक्रम के लिए बेहद अहम साबित हो सकते हैं.

साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी