क्या सऊदी अरब अरामको पर हमले ने अरब देशों की राजनीति बदल कर रख दी?

   

फ़िलिस्तीनी लेखक व पत्रकार कमाल ख़लफ़ का जायज़ा यह तो बिल्कुल साफ़ है कि सऊदी अरब के बक़ैक़ इलाक़े में आरामको कंपनी के केन्द्रीय प्रतिष्ठान पर ड्रोन हमला मामली घटना नहीं है जिसे भुला दिया जाए। यह एक नया मोड़ है।

अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने सऊदी अरब के पाले में गेंद डाल दी है कि वह तय करे कि यह हमला किसने किया ताकि अमरीका वही करे जो सऊदी अरब कहे। ट्रम्प ने यह भी साफ़ कर दिया कि वह सऊदी अरब से पल्ला झाड़ना चाहते हैं।

पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, एक अमरीकी सेनेटर ने यह बयान दिया है कि अमरीका कभी भी सऊदी अरब की प्राक्सी वार में शामिल नहीं होगा लेकिन बात यह है कि ट्रम्प को यह समझाने की ज़रूरत ही नहीं हैं वह तो ख़ुद भी यही विचार रखते हैं कि अमरीका को सऊदी अरब की लड़ाई नहीं लड़ना चाहिए। ट्रम्प तो इस समय ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी से मुलाक़ात के मौक़े की तलाश में हैं।

सऊदी अरब के कुछ नेता और जनरल ईरान पर आरोप लगा रहे हैं। कुछ ने इराक़ के स्वयंसेवी बल हश्दुश्शअबी का नाम इस ड्रोन हमले में घसीटने की कोशिश की लेकिन सऊदी अरब ने इस मामले में जो औपचारिक स्टैंड लिया उसमें बड़ी सावधानी बरती गई और बयान देने वाले नेताओं और जनरलों को संदेश दिया गया कि अमरीकी जाल में न फंसें।

इससे यह भी ज़ाहिर हो गया है कि फ़ार्स खाड़ी के हालिया हालात को देखते हुए अब सऊदी सरकार को अमरीका पर ज़्यादा भरोसा नहीं रह गया है।

रियाज़ सरकार ने यह स्टैंड लिया है कि इस मामले की जांच का नतीजा सामने आने का इंतेज़ार करना चाहिए। सऊदी अरब ने यह तो कहा है कि हमले में प्रयोग किया गया हथियार ईरानी था लेकिन औपचारिक रूप से ईरान पर इस हमले में लिप्त होने का आरोप नहीं लगाया है।

कुछ रिपोर्टों में कहा गया कि यह हमला इराक़ी स्वयंसेवी फ़ोर्स हश्दुश्शअबी ने किया क्योंकि हश्दुश्शअबी के हथियारों के भंडार पर जो हमला इस्राईल ने किया था उसमें सऊदी अरब ने भरपूर मदद की थी अतः हश्दुश्शअबी ने अब अपना इंतेक़ाम लिया है।

वैसे यह सारी बातें अपुष्ट और अटकलों की हद तक हैं। कुछ रिपोर्टों में कहा गया कि आरामको प्रतिष्ठान पर हमला करने वाले ड्रोन समुद्र से उड़े थे। यह इशारा है ईरान की इस्लामी क्रांति संरक्षक फ़ोर्स आईआरजीसी की ओर। मगर यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन ने साफ़ शब्दों में कहा है कि यह हमला हमने अंजाम दिया है।

यह लग रहा है कि अब अमरीका सऊदी अरब को इराक़ में भी उलझा देना चाहता है। यदि सऊदी अरब ने इराक़ी स्वयंसेवी फ़ोर्स हश्दुश्शअबी के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही की तो इसका साफ़ मतलब यह होगा कि वह इराक़ में अमरीका और इस्राईल के हितों और लक्ष्यों को पूरा कर रहा है जबकि हश्दुश्शअबी की ओर से जो जवाबी हमले होंगे उनका ख़मियाज़ा अकेले सऊदी अरब को भुगतना पड़ेगा।

अमरीका और सऊदी अरब का ध्यान इस बात पर केन्द्रित है कि यह ड्रोन विमान कहां से आए थे जबकि इससे ज़मीनी सच्चाई में कोई बदलाव नहीं होने वाला है।

इस प्रकरण का केन्द्रीय मुद्दा यह है कि तनाव इतने ऊंचे स्तर पर कैस पहुंचा? उन कारणों को दूर करना चाहिए जिनसे यह हालात पैद हो गए हैं। सबसे महत्वपूर्ण कारण है यमन का युद्ध। इस युद्ध को समाप्त करके वहां राजनैतिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए।

इसी वजह से रूस के राष्ट्रपति व्लादमीर पुतीन ने क़ुरआन की आयत पढ़ी थी जिसमें ईश्वर कहता है कि अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो, आपस में विभाजित होने से बचो, अल्लाह की नेमतों को याद करो कि तुम पहले एक दूसरे दे दुशमन थे तो अल्लाह ने तुम्हारे दिलों को मिलाया और तुम अल्लाह की नेमत से भाई भाई हो गए।