श्रीलंका: बम धमाकों के बाद करीब दस लाख मुसलमानों के सामने बड़ी चुनौती!

,

   

श्रीलंका की कुल जनसंख्या करीब 2 करोड़ 10 लाख है. इसमें लगभग 10 प्रतिशत मुस्लिम हैं. 70 प्रतिशत सिंघली-बौद्ध, 12.6 प्रतिशत तमिल हिन्दू और करीब सात प्रतिशत ईसाई हैं. 1990 के बाद वहाबी संप्रदाय का असर बढ़ने के साथ श्रीलंका में इस्लामी कट्टरपंथ बढ़ने लगा.

पूर्वी श्रीलंका के मुस्लिम बहुतायत वाले बट्टीकलोआ और अंपारा जिलों में यह तेजी से फैला। श्रीलंका के मुस्लिम अधिकांशतः तमिलभाषी हैं। 1987 से पहले ये एलटीटीई का भी समर्थन करते थे।

डी डब्ल्यू हिन्दी पर छपी खबर के अनुसार, 1987 में भारतीय सेनाओं के श्रीलंका पहुंचने के बाद एलटीटीई को शक हुआ कि मुस्लिम भारतीय सेना के लिए मुखबिरी कर रहे हैं। ऐसे में एलटीटीई ने मुस्लिमों से संबंध खत्म कर लिए।

एक रात में ही जाफना से लगभग 90,000 मुस्लिमों को बेघर कर दिया गया। इन लोगों को शरणार्थी कैंपों में रखा गया। कुछ लोग अभी भी इन कैंपों में रहते हैं।

श्रीलंका में श्रीलंकन मुस्लिम कांग्रेस नाम की पार्टी ने मुस्लिमों के लिए अलग राज्य की मांग की। लेकिन बाकी तमिल लोगों ने इसका समर्थन नहीं किया। इसके चलते ही एलटीटीई ने 90 के दशक की शुरुआत में कट्टनकुड़ी की दो मस्जिदों पर हमला कर सैंकड़ों लोगों को मार दिया था. इसके बाद वहां कई नई मस्जिदें बन गईं।

कहा जाता है इन्हें बनाने का पैसा सऊदी अरब से आया था। इसके साथ ही पूर्वी श्रीलंका के मुस्लिमों की बोली में अरबी के शब्द भी आने लगे। यहां से वहाबी संप्रदाय का असर बढ़ना शुरू हुआ। 2009 में एलटीटीई के खात्मे के बाद बौद्ध कट्टरपंथियों ने तमिलों पर अपना बर्चस्व बनाने की कोशिश की।

इस कोशिश में बौद्ध और मुस्लिमों के बीच टकराव शुरू हुआ। 2013 के बाद श्रीलंका में हर साल कई बड़ी मुस्लिम विरोधी घटनाएं होने लगी। पिछले साल मार्च में सोशल मीडिया पर फैली अफवाहों के बाद बड़ी संख्या में बौद्ध और मुस्लिमों के बीच टकराव हुआ। इसके चलते श्रीलंका में एलटीटीई के खात्मे के बाद पहली बार इमरजेंसी लगाई गई।