NRC से बाहर हुए 19 लाख से ज्यादा लोगों का क्या होगा?

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केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शनिवार को एनआरसी की अंतिम सूची प्रकाशित कर दी है। इसे nrcassam.nic.in पर क्लिक करके देखा सकता है। कुल तीन करोड़ 11 लाख 21 हजार चार लोगों के नाम एनआरसी सूची में शामिल हैं। वहीं 19 लाख 6 हजार 657 लोगों के नाम सूची में शामिल नहीं हैं। ऐसे में सूची से छूटे हुए लोगों के मन में कई सवाल चल रहे हैं कि आगे क्या होगा?

ऐसे लोगों को अब अपने या अपने पूर्वजों के नागरिक होने का प्रमाण देना होगा या फिर 24 मार्च, 1971 के पहले नागरिक होने का प्रमाण देना होगा। बांग्लादेशियों के प्रवासन के खिलाफ छह साल तक चले आंदोलन के बाद 1885 में हुए असम समझौते के मुताबिक इस तारीख 24 मार्च, 1971 के बाद असम में आने वाले विदेशियों को वहां का नागरिक नहीं माना जाएगा।

इस पर केंद्र, राज्य और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने सहमति जताई थी। 1951 की एनआरसी सूची में आने वाले लोग खुद ब खुद इस अंतिम सूची में भी शामिल माने जाएंगे। इसके अलावा जन्मतिथि प्रमाणपत्र और भूमि के रिकॉर्ड भी मान्य होंगे।

अपनी नागरिकता शामिल करने के लिए लोगों को कई तरह के दस्तावेज एनआरसी दफ्तर में देने थे। इन दस्तावेजों में 1951 की एनआरसी में आया अपना नाम, 1971 तक की वोटिंग लिस्ट में आए नाम, जमीन के कागज, स्कूल और यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के सबूत, जन्म प्रमाण पत्र और माता-पिता के वोटर कार्ड, राशन कार्ड, एलआईसी पॉलिसी, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, शरणार्थी रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जैसे प्रमाणपत्र शामिल हैं।

जो 19 लाख लोग बाहर हुए हैं, वे 24 मार्च, 1971 से पहले के नागरिक होने के बारे में सबूत नहीं दे पाए। ऐसे लोग अगर फिर न्यायाधिकरण के समक्ष वही दस्तावेज लेकर जाते हैं तो उन्हें फिर खारिज किया जा सकता है। उन्हें इसके अलावा दूसरे दस्तावेजों को प्रस्तुत करना होगा।

बांग्लादेश ने कभी भी असम गए अपने नागरिकों को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है। ऐसे में सूची से बाहर किए गए लोगों को वहां भेजा जाना टेढ़ी खीर होगी। असम में अभी छह नजरबंदी शिविर हैं, जबकि कई और बनाए जाने हैं।

एक और शिविर प्रस्तावित है, जिसमें 3,000 लोगों को रखे जाने की क्षमता है। जाहिर है कि इन लाखों लोगों को इसमें नहीं रखा जा सकता है। फिलहाल अभी इस बारे में क्या किया जाएगा, इसे लेकर स्थिति साफ नहीं है।

जिन्हें अंतिम सूची में जगह नहीं मिली है, वे आधिकारिक तौर पर गैर नागरिक होंगे। भारत की फिलहाल ऐसे ‘राज्यविहीन’ लोगों के प्रति कोई तय नीति नहीं है।

ऐसे लोगों को मत देने का अधिकार नहीं होगा। यह भी साफ नहीं है कि उन्हें काम करने, घर बनाने और सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं और शिक्षा का अधिकार होगा या नहीं। बताया जा रहा है कि असम सरकार ऐसे लोगों को काम करने की अनुमति दे सकती है।

सूची से बाहर ऐसे लोगों को शरणार्थी नहीं कहा जाएगा। भारत में शरणार्थी तिब्बत, श्रीलंका और पश्चिमी पाकिस्तान से आने वाले लोग हैं। भारत में रह रहे तिब्बती लोगों को इस आधार पर भारतीय नागरिकता दी गई है कि ऐसे लोगों को वतन छोड़कर आना पड़ा है और उन्हें शरणार्थियों वाली सुविधाएं दी जाती हैं।

तिब्बत पुनर्वास नीति, 2014 के तहत तिब्बती शरणार्थियों को राशन, आवास और कर्ज जैसी सरकारी योजनाओं की सुविधाएं मिलती हैं।

साभार- ‘अमर उजाला’