ओवैसी की पार्टी AIMIM पश्चिम बंगाल की सभी सीटों पर चुनाव लड़ सकती है!

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ओवैसी ने पश्चिम बंगाल में होने वाली विधानसभा चुनाव में लगभग सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के संकेत दे दिए हैं।

वी फॉर न्यूज़ हिन्दी डॉट कॉम के अनुसार, राजनीति में बड़ा नेता बनने की दो तरक़ीब है। पहला, आपके पास जितना बड़ा जनाधार, आप उतने बड़े नेता। और दूसरा, आपके प्रतिद्वन्दी आपको कितना बड़ा नेता मानते हैं? विरोधी आपको कितनी गम्भीरता से लेते हैं और लेने के लिए मज़बूर होते हैं?

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी भले ही एक क्षेत्रीय पार्टी के नेता हैं, लेकिन उनके बयान उनके विरोधियों को मज़बूर करते हैं कि वो ओवैसी को गम्भीरता से लें।

भारतीय राजनीति में ओवैसी को सबसे गम्भीरता से बीजेपी लेती है। अब ममता बनर्जी भी इसी जाल में उलझती दिख रही हैं। बीजेपी की तर्ज़ पर ही उन्होंने भी ओवैसी को भाव देने की राह पकड़ ली है।

तभी तो 19 नवम्बर को कूचबिहार में तृणमूल काँग्रेस के कार्यकर्ताओं की एक बैठक में ममता बनर्जी ने ओवैसी का नाम लिये बग़ैर कहा, ‘मैं देख रही हूँ कि कट्टरपन्थि हैदराबाद से हैं, वो बीजेपी की बी टीम जैसा व्यवहार कर रहे हैं।’

मतलब साफ़ है कि ममता को पश्चिम बंगाल में जहाँ बीजेपी-ए से चुनौती मिल रही है, वहीं उन्हें बीजेपी-बी के असर की भी चिन्ता सता रही है। उन्हें दिख रहा है कि उनके मुस्लिम वोट बैंक में यदि ओवैसी ज़रा सा भी सेंधमारी करने में सफल रहे तो उसका नुकसान तृणमूल को ही होगा। इसीलिए वो ओवैसी पर कट्टरपन्थी होने का तमग़ा लगाकर उसे पसन्द करने वाले मुसलमानों को आगाह करना चाहती हैं।

सियासत की ऐसी नूरा-कुश्ती से बीजेपी की मुरादें पूरी होती हैं। क्योंकि ओवैसी और ममता की तकरार से बीजेपी के हिन्दुत्ववादी एजेंडे को ऐसी हवा मिलती है कि वो एक ही तीर से दोनों पर निशाना साध लेती है।

अपने हिन्दू जनाधार को संगठित करने के लिए बीजेपी की ओर से ओवैसी को ‘मुसलमानों की सबसे मुखर आवाज़’ का दर्ज़ा दे दिया जाता है।

ममता पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप वैसे ही लगाये जाते हैं, जैसे काँग्रेस पर लगाये जाते रहे हैं। आख़िर, व्यावहारिक तौर पर बंगाल में ममता की तृणमूल ही वो असली काँग्रेस है, वो मोदी की दोनों आँधियों के बावजूद मज़बूती से खड़ी है।

ममता को हिन्दुत्व विरोधी बताकर बदनाम करने के लिए बीजेपी ने अपने सारे घोड़े खोल रखे हैं। तभी तो प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष और संघ का ज़मीनी तंत्र ये झूठ फ़ैलाता है कि ‘ममता, सरस्वती पूजा नहीं होने देती, दुर्गा पंडाल नहीं लगते देती।’

झूठ फैलाकर राजनीतिक रोटियाँ सेंकने में बीजेपी हमेशा से माहिर रही है। मौजूदा दौर में सोशल मीडिया की टेक्नोलॉज़ी की वजह बीजेपी का पौ-बारह हैं।

इसीलिए ममता को साफ़ दिख रहा है कि बंगाल के मुसलमान ओवैसी को जितना ज़्यादा पसन्द करेंगे, उतना ही हिन्दू लामबन्द होंगे। इससे जहाँ हिन्दुओं में कट्टरवादी हिन्दुत्व का प्रभाव बढ़ेगा, वहीं प्रतिक्रिया स्वरूप कट्टरवादी मुसलमान और भड़केंगे। दोनों को मिला-जुला नुकसान तृणमूल को न हो जाए, इसीलिए ममता ने ओवैसी पर हमला किया है।

इसीलिए बीजेपी, ममता को डरा हुआ बता रही है। ऐसा काल्पनिक डर हिन्दुओं को जितना सच्चा लगेगा उतने हिन्दू वोट ममता के पास से छिटक सकते हैं।

इसकी भरपाई मुस्लिम वोटों से नहीं हो सकती क्योंकि ओवैसी ने साफ़ कहा कि वो अप्रैल-मई 2021 में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए पश्चिम बंगाल में अपने उम्मीदवार उतारेंगे।

ओवैसी के लोग कितनी सीटें जीत पाएँगे, ये तो कोई नहीं जानता लेकिन उन्हें जितने भी वोट मिलेंगे उतने का नुक़सान ममता को ही होगा। इसीलिए ममता ने ओवैसी को बीजेपी की बी-टीम कहा है।

दूसरे शब्दों में, जब बीजेपी की ए-टीम हिन्दुओं का वोट काट रही होगी, तभी बीजेपी की बी-टीम मुसलमानों का वोट काटकर अन्ततः बीजेपी को ही फ़ायदा पहुँचाएगी।

यही वो सबसे बड़ी वजह है कि बीजेपी के इशारों पर नाचने वाला मीडिया भी ओवैसी जैसे नेता को बहुत गम्भीरता से लेता है। टीवी चैनलों के स्टूडियों में ओवैसी के बयानों पर चर्चाएँ होती हैं, ताकि हिन्दुत्ववादियों का पालन-पोषण होता रहे।

ओवैसी इस सच्चाई के लाभार्थी हैं, वर्ना विपक्षी पार्टियों के किसी भी नेता को भारत के अख़बारों, टीवी चैनलों, वेबसाइटों और सोशल मीडिया पर इतना बढ़ावा कभी नहीं मिलता, जिसके लिए अन्य विरोधी पार्टियों के नेता तरसते हैं!

बहरहाल, उम्दा और तेज़तर्रार वक़्ता की पहचान रखने वाले ओवैसी के लिए ये बातें किसी बड़ी उपलब्धि के कम कैसे हो सकती है? रोज़ाना, कुछ न कुछ ऐसा होता रहता है, जिससे ओवैसी को नरेन्द्र मोदी और बीजेपी पर हमला करने का मसाला मिल जाता है।

इसीलिए ममता के बयान की हवा से ओवैसी को अपनी पतंग को और ऊँचा उड़ाने का ईंधन मिल जाता है। ओवैसी का ये सवाल बिल्कुल सही है कि ‘हमने तो देश की सिर्फ़ तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था, फिर बीजेपी ने 303 सीटें कैसे जीत लीं?

हरियाणा में हम चुनाव नहीं लड़े तो फिर वहाँ बाक़ी दलों की सरकार क्यों नहीं बनी? महाराष्ट्र में नयी सरकार के गठन को बीजेपी की किस बी-टीम ने रोक रखा है? ज़ाहिर है, ममता बनर्जी ऐसे मुश्किल सवालों के जबाब सार्वजनिक रूप से कभी नहीं देना चाहेंगी। यही राजनीति है।