अजीत: हैदराबाद के इस अभिनेता का बॉलीवुड की कामयाबी में अहम भूमिका रहा!

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अजीत का जन्म: 27 जनवरी में हैदराबाद में 1922 में हुई। इस महान कलाकार की मौत 21 अक्टूबर 1998 में हुई।

 

डायलॉग के लिए मशहूर 

हिन्दी फ़िल्मों के एक शानदार अभिनेता थे। अपने स्टेज के नाम अजीत से मशहूर हो गये। भारतीय सिनेमा में वह अपने खलनायक किरदारों में अपनी विशिष्ट अदाकारी और संवाद अदायगी के लिए प्रख्यात थे।

 

असल नाम हामिद अली खान

अजीत बॉलीवुड में एक अलग मुकाम हासिल करने के लिए कड़े संघर्ष के दौर से गुजरे थे। 27 जनवरी 1922 को हैदराबाद रियासत के गोलकुंडा में जन्मे हामिद अली खान उर्फ अजीत को बचपन से ही अभिनय का शौक था।

 

हैदराबाद निजाम की सेना में कार्यरत थे पिता 

उनके पिता बशीर अली खान हैदराबाद में निजाम की सेना में काम करते थे, उनके एक छोटे भाई वाहिद अली खान एवं दो बहने थी। अजीत ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा आंध्रप्रदेश के वारंगल जिले के गवर्मेंट जूनियर कॉलेज हनामकोंडा से पूरी की थी।

 

नायक बनना चाहते थे अजित 

अजीत ने चालीस के दशक में नायक बनने के ख्याब को साकार करने के लिए अपनी पाठयपुस्तकों को बेचकर घर से भागकर मायानगरी बम्बई का रूख किया,बम्बई में उन्होंने नालो में इस्तेमाल होने वाले सीमेंट पाइपो में रहकर और गुंडो से लड़ते भिड़ते हुए मुफलिसी के मुश्किल दिन गुजारे थे और अनेक फ़िल्मों में छोटे मोटे रोल करने के बाद हीरो के रूप में फिल्मी जीवन की शुरूआत वर्ष 1946 में प्रदर्शित फिल्म ‘शाह-ए- मिस्र’से की थी।

वर्ष 1950 में फिल्म बेकसूर के निर्माण के दौरान निर्देशक के.अमरनाथ की सलाह पर उन्होंने अपने वास्तविक नाम हामिद अली खान को त्यागकर अजीत के फ़िल्मी नाम का नया चोला धारण किया था।

 

 

बॉलीवुड में फिल्म 

फिर उन्होंने नास्तिक, पतंगा, बारादरी,ढोलक,ज़िद,सरकार,सैया,तरंग,मोती महल, सम्राट,तीरंदाज आदि फिल्मो में बतौर नायक के काम किया.सर्वाधिक 15 फिल्मों में नलिनी जयवंत उनकी हीरोइन थी, शकीला के साथ भी उनकी अनेक कामयाब फिल्मे थीं.अजीत ने उस दौर की सभी मशहूर अभिनेत्रियों मधुबाला ,मीना कुमारी,माला सिन्हा,सुरैया,निम्मी,मुमताज के साथ हीरो के रूप में बहुत सारी फिल्मों में काम किया था।

 

दिलिप कुमार के साथ काम किया 

वर्ष 1957 में अजीत बी.आर.चोपड़ा की फिल्म “नया दौर” में ग्रामीण युवक की ग्रे शेड भूमिका में दिखाई दिए । हालांकि यह फिल्म मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार पर केन्द्रित थी,फिर भी अजीत ने अपने दक्ष अभिनय से दर्शकों की खूब वाह वाही लूटी थी।

नया दौर की सफलता के बाद अजीत ने यह निश्चय किया कि वह बड़े बैनर की फिल्मो में ही अपने अभिनय का जलवा दिखाएंगे। वर्ष 1960 में के.आसिफ की कालजयी फिल्म “मुगले आजम” में एक बार फिर से उनके सामने हिन्दी फिल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे,पर अजीत ने यहां भी सेनापति दुर्जनसिंह की छोटी सी भूमिका के जरिए दर्शकों का दिल जीत लिया था।

 

अमिताभ के साथ जंजीर 

अपने हीरो के दौर की समाप्ति होने पर,सन 1966 में उन्होंने राजेंद्र कुमार के कहने पर टी. प्रकाशराव की फिल्म सूरज से खलनायकी के किरदार निभाना शुरू किया. वर्ष 1973 अजीत के सिने करियर का अहम पड़ाव साबित हुआ।

उस वर्ष उनकी फिल्मों जंजीर, यादों की बारात, समझौता, कहानी किस्मत की और जुगनू ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए।

 

इन फिल्मों की शानदार सफलता के बाद अजीत ने उन बुलंदियों को छू लिया, जिसके लिए वह अपने सपनों के शहर बम्बई आए थे।

 

खलनायकी के किरदारों को जिस नफ़ासत और तहजीब से अजीत ने पेश किया,वो अदभुद था.उनकी आवाज शेर की भांति बुलंद थी और परदे पर उनके आगमन से ही दर्शकों के दिल दहल उठते थे।