ईरान पर भारी अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने की कोशिश में अमेरिका!

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यदि अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प अमरीकी इंटेलीजेन्स एजेंसियों की रिपोर्टों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए उन पउ सतही सोच रखने का आरोप लगा रहे हैं और इंटेलीजेन्स एजेंसियों को सीखने के लिए पाठशाला लौटने का सुझाव दे रहे हैं तो इसका साफ़ मतलब यह है कि ट्रम्प की चिंता और मनोवैज्ञानिक व्याकुलता अपने चरम बिंदु पर पहुंच चुकी है औ उन्हें अपने प्रशासन के भीतर कोई क़रीबी साथी नहीं नज़र आ रहा है, बस राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जान बोल्टन और उनके दामाद जेर्ड कुशनर ही रह गए हैं।

parstoday.com पर छपी खबर के अनुसार, अमरीकी इंटैलीजेन्स एजेंसियों पर राष्ट्रपति ट्रम्प का यह भीषण हमला इसलिए है कि इंटेलीजेन्स एजेंसियों की रिपोर्ट ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में अमरीकी राष्ट्रपति की नीतियों और स्टैंड का आधार ही समाप्त कर दिया है।

इनमें सबसे पहला मुद्दा दाइश को पराजित करने के ट्रम्प के दावो को ख़ारिज कर दिया जाना है। इंटैलीजेन्स एजेंसियों ने अपने मूल्यांकन में कहा है कि दाइश की ओर से अमरीका और उसके घटकों की शांति और सुरक्षा के लिए ख़तरा अब भी मौजूद है क्योंकि दाइश के पास अब भी हज़ारों की संख्या में लड़ाके मौजूद हैं तथा दुनिया के कई स्ट्रैटेजिक इलाक़ों में दाइश की 12 शाखाएं सक्रिय हैं।

दूसरा मुद्दा सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशुक़जी की हत्या के बारे में सीआईए की निदेशिका जीन हैस्पेल का यह बयान है कि यह हत्या पूर्व योजना के साथ अंजाम दी गई और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान इस साज़िश में लिप्त हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प और उनके दामाद इस विचार का शुरू से विरोध करते आ रहे हैं।

तीसरा मुद्दा इंटैलीजेंस एजेंसियों का यह आंकलन है कि राष्ट्रपति ट्रम्प उत्तरी कोरिया के शासक किम जोंग उन को परमाणु हथियार छोड़ने पर तैयार नहीं कर पाएंगे। इंटेलीजेन्स एजेंसियों का मानना है उत्तरी कोरिया के शासक किम जोंग उन राष्ट्रपति ट्रम्प को धोखा दे रहे हैं वह कभी भी अपने परमाणु हथियारों को नष्ट नहीं करेंगे।

चौथा मुद्दा यह है कि अमरीकी इंटैलीजेन्स एजेंसियों ने यह विश्वास जताया है कि ईरान अब भी 2015 में होने वाले परमाणु समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन कर रहा है जबकि वाशिंग्टन इस समझौते से निकल चुका है और फिलहाल ईरान के पास परमाणु हथियार हासिल करने का इरादा भी नहीं दिखाई देता।

पांचवा मुद्दा यह है कि इंटैलीजेन्स एजेंसियों को यह विश्वास है कि रूसी इंटेलीजेन्स ने पिछले राष्ट्रपति चुनावों में हस्तक्षेप करके राष्ट्रपति ट्रम्प को फ़ायदा पहुंचाया, इसी तरह आने वाले 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में भी रूस ज़रूर हस्तक्षेप करेगा और चुनाव के परिणामों को प्रभावित करेगा।

हमें यह नहीं मालूम कि अमरीका की 17 इंटैलीजेन्स एजेंसियों के साथ राष्ट्रपति ट्रम्प का यह टकराव किस सीमा तक आगे जाएगा मगर यह तो तय है कि इस जंग में राष्ट्रपति ट्रम्प की पराजय निश्चित है। बल्कि शायद उन्हें बड़ी बेइज़्ज़ती के साथ वाइट हाउस से भी बाहर निकलना पड़ जाए।

यह लग रहा है कि अमरीकी इंटैलीजेन्स एजेंसियों को आशंका है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ईरान पर परमाणु समझौते के उल्लंघन का आरोप लगाकर ईरान पर हमला करने की कोशिश न शुरू कर दें क्योंकि ट्रम्प ईरान के विरुद्ध कार्यवाही के लिए ख़ुद को तैयार करने के उद्देश्य से कई मोर्चों से सेनाओं को वापस बुला रहे हैं। उन्होंने सैनिक अधिकारियों के विरोध के बावजूद सीरिया से अमरीकी सेना को वापस बुलाने का फ़ैसला शायद इसी वजह से किया है।

राष्ट्रपति ट्रम्प की हालत घायल भेड़िए की है जो बिना सोचे समझे हर तरफ़ हमला करता है। वह कभी वेनेज़ोएला का मोर्चा खोल लेते हैं जबकि वह अफ़ग़ानिस्तान, इराक़ और सीरिया के मोर्चे पर कोई सफलता हासिल नहीं कर सके बल्कि बुरी तरह विफल साबित हुए हैं।

यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प और वहां की शक्तिशाली इंटेलीजेन्स के बीच जंग जारी है और यह अमरीका के पतन की शुरुआत है और यह लग रहा है कि ट्रम्प की विदाई का समय क़रीब आ गया है। विशेषकर इसलिए भी कि वह कांग्रेस में विशेष रूप से प्रतिनिधि सभा के साथ एक और जंग में भी व्यस्त हैं।

ट्रम्प यहूदी लाबी के क़ैदी बनकर रह गए हैं। उनके फ़ैसलों पर इसी लाबी का प्रभाव है। यह लाबी तेल अबीब से रिमोट कंट्रोल के माध्यम से विशेष रूप से ट्रम्प के दामाद जेर्ड कुशनर की मदद से ट्रम्प के फ़ैसलों को दिशा देती है। ट्रम्प ने चुनाव में अमरीका फ़र्स्ट का नारा दिया था मगर अब व्यवहारिक रूप से उनका नारा हो गया है इस्राईल फ़र्स्ट।

ईरान, सीरिया और फ़िलिस्तीन के ख़िलाफ़ उनके सारे फ़ैसलों की जड़ यही है। ट्रम्प की नीतियों के ख़िलाफ़ अमरीकी इंटैलीजेन्स एजेंसियों का स्टैंड अरब देशों विशेष रूप से फ़ार्स खाड़ी के अरब देशों के लिए भी ख़तरे की घंटी