बाबरी फैसला: अरशद मदनी बोले, इस्लाम में सिर्फ़ तीन मस्जिदों की अहमियत

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अयोध्या राम मंदिर और बाबरी मस्जिद मामले में पक्षकार प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला समझ से परे है, किन्तु हम इसका सम्मान करते हैं।

न्यूज़ ट्रैक पर छपी खबर के अनुसार, अरशद मदनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने पर गुरुवार को जमीयत की कार्य समिति की बैठक में फैसला लिया जाएगा।

मौलाना मदनी ने एक एनकाउंटर में कहा कि शरीयत के लिहाज से बाबरी मस्जिद की हैसियत देश में स्थित अन्य मस्जिदों से अधिक नहीं है, लेकिन लड़ाई हक की थी, जो हमने 70 वर्षों तक लड़ी।

जमीयत प्रमुख ने कहा कि इस्लाम में शरीयत के अनुसार, केवल तीन मस्जिदें अहमियत रखती हैं। उन मस्जिदों में मक्का की मस्जिद-अल-हराम (खाना-ए-काबा), मदीना की मस्जिद-ए-न‍बवी और यरुशलम में स्थित बैत उल मुकद्दस हैं।

उन्होंने कहा कि इनके बाद सारी मस्जिदें सामान हैं और शरीयत के लिहाज से बाबरी मस्जिद की हैसियत भी देवबंद के किसी कोने में बनी मस्जिद से अधिक नहीं है।

आपको बता दें कि जमीयत उलेमा हिन्द की स्थापना 1919 में हुई थी। यह भारत के मुस्लिम उलेमाओं का संगठन है. इस संगठन ने 1919 में हुए खिलाफत आंदोलन को चलाने में बड़ी भूमिका निभायी थी और आजादी की लड़ाई में भी अपना योगदान दिया था। भारत में मुसलमानों के सबसे बड़े संगठनों में इसकी गिनती होती है।