अरुंधति रॉय का उपन्यास ‘मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनेस’ अब हिंदी और उर्दू में भी उपलब्ध

   

अरुंधति रॉय का बहुचर्चित उपन्यास ‘द मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनेस’ अंग्रेजी के बाद अब हिंदी और उर्दू में भी अनूदित होकर प्रकाशित हो गया है. हिंदी में यह ‘अपार खुशी का घराना’ एवं उर्दू में ‘बेपनाह शादमानी की ममलिकत’ के नाम से राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है. इस उपन्यास का हिंदी अनुवाद वरिष्ठ कवि और आलोचक मंगलेश डबराल और उर्दू अनुवाद अर्जुमंद आरा द्वारा किया गया है.

दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में अनुवाद की इन दोनों किताबों का लोकार्पण हुआ. कार्यक्रम की शुरूआत दास्तानगो दारेन शाहिदी द्वारा पुस्तक के अंशपाठ से हुई. फिर लेखिका अरुंधति रॉय, हिंदी अनुवादक मंगलेश डबराल और उर्दू अनुवादक अर्जुमंद आरा से संजीव कुमार एवं आशुतोष कुमार ने बातचीत की.

लेखिका अरुंधति रॉय का दावा था कि ‘मेरी यह पुस्तक अब तक देश-विदेश की 49 भाषाओँ में अनूदित हो चुकी है. फिर भी हिंदी और उर्दू में आने के बाद ही मेरे लिए यह पूरी हुई. उन्होंने कहा, “अपने पहले उपन्यास ‘द गॉड ऑफ़ स्माल थिंग्स’ उपन्यास की सफलता और बुकर पुरस्कार मिलने के बाद, मैं चाहती तो ‘द गॉड ऑफ़ स्माल थिंग्स’ भाग -2, 3 भी लिख सकती थी, लेकिन मेरे लिए उपन्यास एक पूजा और मेरी दुनिया है.

अरुंधति रॉय का कहना था, “उपन्यास ऐसी विधा है जिसमें आप एक ब्रह्मांड रच सकते हैं, जिसके जरिये आप पाठक को अपने साथ-साथ चलने के लिये आमंत्रित करते हैं. यह कहीं अधिक जटिल प्रक्रिया है. लेकिन, मेरे लिये यह संतुष्टि देने वाली है. मैं उपन्यास लिखती हूं तो मुझे लगता है कि मैं अपने कौशल का इस्तेमाल कर रही हूं. इसमें मुझे अधिक संतोष और सुख मिलता है.”

अरुंधति ने कहा, ‘द मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनेस’ उपन्यास को लिखने में बहुत समय लगा, इसे लिखना मेरे लिए एक पहेली को सुलझाने जैसे था. बातचीत के दौरान सवालों का जवाब देते हुए लेखिका ने कहा, ‘यह एक धोखेबाज नोवल है. इसके धोखे को समझने के लिए आपको इसे कई बार पढ़ना पड़ सकता है.’

कवि और आलोचक मंगलेश डबराल ने अनुवाद के समय के अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि “इस उपन्यास के शीर्षक के लिए काफी कश्मकश थी. मिनिस्ट्री शब्द के अनुवाद के लिये महकमा, मंत्रालय, सलतनत आदि शब्दों के बाद ‘घराना’ अरुंधति को पसंद आया.” अनुवाद के दौरान आई कठिनाईयों के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा, “अंग्रेजी उपन्यास में अरुंधति ने कई नए शब्दों का उपयोग किया है जिनका हिंदी शब्द मिलना बहुत मुश्किल था.”

उर्दू अनुवादक, अर्जुमंद आरा ने अनुवाद के समय के अपने अनुभवों के बारे में बताते हुए कहा, “इस उपन्यास को अरुंधति द्वारा जिस तरह लिखा गया है और जिस तरह के शब्दों का चुनाव उपन्यास में किये गए थे, उनको ज्यों का त्यों, खासकर उर्दू में अनुवाद करना काफी कठिन था. मैंने, उर्दू में लिखते वक्त अपनी तरफ से पूरी वफादारी दिखाई है ताकि उपन्यास के किरदारों के भाव वेसे ही आयें जैसे मूल भाषा में हैं.” आगे उन्होंने कहा, “पुरानी दिल्ली और कश्मीर वाले हिस्से को अनुवाद करने में ज्यादा मुश्किल नही आयी.”

राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा, “यह अपार हर्ष का मौका है कि इस महत्वपूर्ण पुस्तक का देश की दो प्रमुख भाषाओं- हिंदी और उर्दू में एक साथ प्रकाशन हुआ है. यह राजकमल प्रकाशन के लिए भी एक ऐतिहासिक क्षण है, क्योंकि ‘बेपनाह शादमानी की ममलिकत’ राजकमल की उर्दू की पहली प्रकाशित पुस्तक है.”

साभार- ‘आज तक’