NPR पर अरुंधति रॉय ने लिया रंगा- बिल्ला का नाम विडियो हुआ वायरल

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लेखिका अरुंधति रॉय ने नागरिकता संशोधन कानून और NPR को लेकर मोदी सरकार पर हमला बोला है. अरुंधति रॉय नागरिकता कानून का विरोध कर रहे छात्रों के समर्थन में दिल्ली यूनिवर्सिटी पहुंची थीं. नागरिक जनसंख्या रजिस्टर (NPR)पर अरुंधति रॉय ने छात्रों से कहा, ‘एनपीआर भी एनआरसी का ही हिस्सा है. एनपीआर के लिए जब सरकारी कर्मचारी जानकारी मांगने आपके घर आएं तो उन्हें अपना नाम रंगा बिल्ला बताइए. अपने घर का पता देने के बजाए प्रधानमंत्री के घर का पता लिखवाएं.’

ये रंगा-बिल्ला कौन दुर्दांत अपराधी थे जिनका जिक्र अरुंधति रॉय ने किया. इन्होंने अपने कामों के जरिए देश में किस तरह खौफ और आक्रोश पैदा किया था, आइए जानते हैं.

41 साल पहले की वो काली रात

26 अगस्त 1978 की बात है. दिल्ली के धौला कुआं स्थित ऑफिसर एनक्लेव में रहने वाले इंडियन नेवी वाइस एडमिरल मदन मोहन चोपड़ा और उनकी पत्नी रोमा हैरान परेशान थे. दिन भर रुक-रुककर होने वाली बारिश रात को भी जारी थी. लेकिन उनकी परेशानी का कारण बारिश और तूफान नहीं, उनके दो बच्चों का लापता होना था.

पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक चोपड़ा की 17 वर्षीय बेटी गीता और 14 साल का बेटा संजय शाम को घर से निकले थे लेकिन वे वापस नहीं लौटे थे. गीता दिल्ली के जीसस एंड मैरी कॉलेज में बीए सेकेंड इयर की स्टूडेंट थी तो संजय हाईस्कूल में पढ़ रहा था. संजय का सपना पिता की तरह नौसेना में जाने का था. वह बॉक्सिंग भी करता था और गीता वेस्टर्न म्यूजिक और डांस का शौक रखती थी.

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26 अगस्त की शाम संजय और गीता आकाशवाणी केंद्र के लिए निकले थे जहां एक फरमाइशी कार्यक्रम में उन्हें हिस्सा लेना था. आठ बजे इस कार्यक्रम का प्रसारण होना था. जब नियत समय पर रोमा और मदन मोहन ने रेडियो पर बच्चों की आवाज नहीं सुनी तो मदन 9 बजे ऑल इंडिया रेडियो के ऑफिस पहुंचे. वहां पता चला कि बच्चे तो आए ही नहीं.

चोपड़ा वापस घर पहुंचे तो पता चला कि बच्चे वहां वापस नहीं आए न ही फोन किया. हारकर रात 11 बजे उन्होंने धौलाकुआं थाने में बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई. बड़ा अफसर होने की वजह से पुलिस फौरन हरकत में आई और बच्चों की तलाश में जुट गई. तीन दिन गुजरने के बाद भी बच्चों का सुराग नहीं मिला. 29 अगस्त की सुबह पुलिस को एक चरवाहे ने रिंग रोड के पास एक लड़का और एक लड़की की बॉडी मिलने की सूचना दी. पुलिस के साथ चोपड़ा दंपत्ति मौके पर पहुंचे तो उन पर बिजली गिर गई. खून से लथपथ वो लाशें उनके बच्चों की ही थीं.

इस वारदात ने दिल्ली शहर में दहशत फैला दी. घटना की जांच क्राइम ब्रांच को सौंपी गई. जांच में पता चला कि संजय के शरीर पर धारदार हथियार से 25 वार किए गए थे और गीता के शरीर पर जख्मों के 6 निशान था. गीता के साथ हत्या से पहले रेप भी किया गया था. खून के धब्बों और बालों की फोरेंसिक जांच में पता चला कि वारदात को दो लोगों ने अंजाम दिया है.

जांच के दौरान एचआरके 8930 नंबर वाली फिएट कार मजलिस पार्क इलाके में मिली जिसके बारे में दो चश्मदीदों ने दावा किया था कि इसमें एक लड़का और एक लड़की को दो लोग जबरदस्ती लेकर जा रहे थे. कार पर मिले फिंगर प्रिंट्स को फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया. रिपोर्ट में वो निशान मुंबई से फरार दो शातिर बदमाशों रंगा-बिल्ला के निकले.

रंगा-बिल्ला का लंबा आपराधिक रिकॉर्ड

रिकॉर्ड खंगालने पर पता चला कि कुलजीत सिंह उर्फ रंगा और जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला पर फिरौती के लिए अपहरण, कार चोरी आदि के कई मुकदमें दर्ज हैं. मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच को दोनों की तलाश है. दिल्ली पुलिस ने रंगा-बिल्ला की फोटो वाले ढेर सारे पोस्टर पूरी दिल्ली में चिपका दिए.

8 सितंबर को पता चला कि रंगा-बिल्ला की शक्ल वाले दो लोगों को पुलिस ने पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अरेस्ट किया है. क्राइम ब्रांच की टीम थाने पहुंची तो उनके सामने रंगा-बिल्ला ही थे. उनसे पूछताछ हुई तो उन्होंने दिल्ली के उस चर्चित हत्या और सामूहिक बलात्कार कांड के बारे में सब कबूल दिया.

ऐसे दिया वारदात को अंजाम

26 अगस्त की शाम आकाशवाणी जाने के लिए निकले संजय और गीता बस से गोल डाकखाना पहुंचे और वहां सवारी का इंतजार कर रहे थे. तभी एक फिएट कार आकर रुकी जिसमें बैठे लोगों ने उन्हें आकाशवाणी तक लिफ्ट देने की बात कही. रंगा-बिल्ला को वे दोनों कपड़ों से संपन्न घर के लग रहे थे. उन्हें अपहरण करके मोटी फिरौती वसूलने की योजना थी.

उनकी योजना में खलल तब पड़ गया जब उन्होंने गाड़ी आकाशवाणी के बजाय दूसरे रास्ते पर मोड़ दी. दोनों बच्चों ने झगड़ना व शोर मचाना शुरू कर दिया. इस झगड़े को दो चश्मदीदों ने देखकर पुलिस को खबर भी की थी लेकिन पुलिस ने इसे रुटीन के तहत पीआरसी को सौंप दिया था. हाथापाई के साथ रंगा-बिल्ला कार को लेकर रिंग रोड के पास जंगल वाले इलाके में आ गए.

संजय की उम्र भले कम थी लेकिन 5 फिट 10 इंच के कद के साथ उसके मन में हिम्मत और शरीर में ताकत बहुत थी. जब रंगा-बिल्ला ने उसकी बहन का रेप करने की कोशिश की तो वह उनसे भिड़ गया. रंगा-बिल्ला ने कार में रखी तलवार निकाली और संजय पर तब तक वार किए जब तक वह खून से लथपथ होकर बेसुध नहीं हो गया. उसके बाद दोनों ने गीता का रेप किया और उसी तलवार से उसकी हत्या करदी. दोनों के शव वहीं फेंककर फरार हो गए.

कोर्ट ने सुनाई फांसी की सज़ा

रंगा-बिल्ला की गिरफ्तारी से पहले ही ये मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था. सीबीआई ने रंगा-बिल्ला के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की और कोर्ट में सबूत-गवाह पेश किए. पटियाला हाउस कोर्ट ने इस हत्या और रेप को जघन्य अपराध माना और एडिशनल सेशन जज ओएन वोहरा ने दोनों आरोपियों को फांसी की सज़ा सुनाई. इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. दिल्ली हाईकोर्ट ने 7 अप्रैल 1979 को अपील खारिज कर दी.

आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जहां तत्कालीन चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूण ने तीन सदस्यों की खंडपीठ गठित की. इस खंडपीठ ने भी रंगा-बिल्ला की फांसी की सज़ा को बरकरार रखा तो रंगा-बिल्ला ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजी. राष्ट्रपति एन संजीव रेड्डी ने भी अपील खारिज कर दी. आखिर 31 जनवरी 1982 को कुलदीप सिंह उर्फ रंगा और जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला को तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया गया.