असम NRC: लगभग पक्ष और विपक्ष नाखुश!

   

31 अगस्त को असम में नेशनल सिटीजनशिप रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम सूची जारी कर दी गई। इस सूची में 19 लाख लोगों को जगह नहीं मिली है। उन्हें बाहर कर दिया गया है। एनआरसी के मौजूदा स्वरूप से इसकी मांग करने वाले असम गण परिषद औऱ अखिल असम छात्र संघ दोनों संतुष्ट नहीं हैं।

बीजेपी भी इसके स्वरूप से खुश नहीं है। बीजेपी ने इसका समर्थन किया था। कांग्रेस भी इसस् नाखुश है। एससी के आदेश पर एनआरसी तैयार की गई जिसमें 3.11 करोड़ लोगों को असम का वैध नागरिक माना गया जबकि 19 लाख लोगों को बाहर कर दिया गया। अगप और आसू का मानना है कि इस सूची से ऐसे ढेर सारे लोग छूट गए हैं जो 1971 के बाद भारत आए।

असम गौरव के मुद्दे पर राजनीति करने वाले इन संगठनों का मानना है कि असम में सिर्फ असमिया को ही रहना चाहिए जबकि आज वहां गैर-असमियों का बोलबाला है। कांग्रेस का मानना है कि बहुत सारे भारतीय नागरिकों के नाम भी सूची से बाहर रह गए हैं।

इनमें काफी लोग ऐसे हैं जो उत्तर प्रदेश और बिहार से दशकों पहले असम के चाय बागानों में काम करने आए थे लेकिन उनके पास पूरे कागजात नहीं होने के कारण उन्हें भारत का नागरिक नहीं माना जा रहा है।

लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने सूची से बाहर रह गए लोगों के दावों का दोबारा परीक्षण करने की अपील की है। भाजपा की नाखुशी इस सूची से हिंदुओं के बाहर होने की है।

न्यूज़ ट्रैक पर छपी खबर के अनुसार, असम सरकार के सीनियर मंत्री हिमंता बिस्व सरमा ने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट को सीमांत जिलों के इस सूची में शामिल लोगों में से कम से कम 20 प्रतिशत लोगों का और अन्य जिलों के 10 प्रतिशत लोगों का पुनरीक्षण कराए।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस मांग को खारिज कर चुका है लेकिन भाजपा एक बार फिर अपील करने जा रही है। बीजेपी का मानना है कि धुबड़ी, करीमगंज और साउथ सलमारा जैसे जिलों में मुसलमान बहुसंख्यक हैं लेकिन इन जिलों के महज 5 प्रतिशत लोगों को ही सूची से बाहर किया गया है।

जबकि तिनसुखिया और करबी आंगलांग जैसे हिंदू बाहुल्य जिलों के 15 से 20 फीसदी लोग इस सूची से बाहर कर दिए गए हैं। वहीं बीजेपी नेता राम माधव ने लोगों से न घबराने की अपील की है।