असम NRC: बीजेपी के लिए मुश्किल बनती जा रही है!

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असम विधानसभा चुनाव में बीजेपी एनआरसी के मुद्दे को लेकर उतरी और सत्ता में पहुंची थी, वही मुद्दा अब पार्टी के लिए संकट का सबब बन गया है। वजह कि अपने ही नेता अब इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिए हैं।

बीजेपी के नेताओं का कहना है कि एनआरसी में बड़ा खेल हुआ। बड़ी संख्या में हिंदुओं को ही बाहर कर दिया गया। असम में बीजेपी के लिए सबसे मजबूत चेहरों में से एक माने जाने वाले मंत्री हेमंत बिश्वशर्मा लगातार इस मुद्दे पर आवाज उठा रहे हैं।

डेली न्यूज़ पर छपी खबर के अनुसार, हेमंत का कहना है कि 1971 से पहले बांग्लादेश से बतौर शरणार्थियों आए तमाम भारतीयों के नाम एनआरसी में शामिल नहीं किए गए हैं क्योंकि अफसरों ने शरणार्थी प्रमाण पत्र लेने से इनकार कर दिया था। कई लोगों ने आरोप लगाया है कि डेटा में हेरफेर करके अपात्र लोगों को लिस्ट में शामिल किया गया है।

असम में बीजेपी के और कई नेताओं ने एनआरसी की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। विधायक सिलदित्य देव ने तो एनआरसी के सॉफ्टवेयर से छेड़छाड़ कर हिंदुओं को लिस्ट से बाहर करने का आरोप लगाया है। कहा कि सॉफ्टवेयर के जरिए तमाम घुसपैठियों को लिस्ट में शामिल कर लिया गया, जबकि हिंदुओं को बाहर रखने की साजिश हुई।

बीजेपी के नेता मोमिनुल ओवल ने भी एनआरसी की प्रक्रिया पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि लिस्ट में 19 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं हैं, जबकि वे सभी राज्य के नागरिक हैं। असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम सूची 31 अगस्त को जारी हुई।

इस सूची के मुताबिक असम में 3,11,21,004 लोग ही भारतीय नागरिकता साबित कर पाए हैं। जबकि प्रमाणपत्रों के अभाव में 19,06,677 लोगों को सूची से बाहर कर दिया गया।

हालांकि सूची से बाहर हुए लोगों को अपनी नागरिकता सिद्ध करने के लिए 120 दिन का और समय दिया गया है। सरकार ने कहा है कि ऐसे लोगों को कानूनी मदद भी मिलेगी। जो लोग अपील के बाद भी नागरिकता सिद्ध नहीं कर पाएंगे उन्हें सरकार डिंटेशन सेंटर में रखेगी।

असम में एनआरसी की आखिरी लिस्ट तैयार करने पर भारी खामियां सामने आई हैं। कई गांवों की अधिकांश आबादी का नाम ही गायब है। राज्य के कामरूप जिले में ऐसी ही एक गांव मलयाबाड़ी है।

जहां की 80 फीसदी आबादी को एनआरसी लिस्ट में जगह नहीं मिली है। इस कारण लोगों में बड़ी नाराजगी है और इस पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए जा रहे हैं। गांव में रहने वाले 2 हजार लोगों की नागरिकता पर संकट आ गया है और यहां रहने वाले बंगाली हिंदू भी इस फैसले से बेहद नाराज हैं।

नाराज ग्रामीणों ने क्या प्रतिक्रिया दी, जानते हैं।जिन लोगों के नाम लिस्ट में शामिल नहीं हैं, उन्हें इसके बाद फ़ॉरेन ट्रिब्यूनल या एफटी के सामने काग़ज़ों के साथ पेश होना होगा, जिसके लिए उन्हें 120 दिन का समय दिया गया है।

किसी के भारतीय नागरिक होने या न होने का निर्णय फ़ॉरेन ट्रिब्यूनल ही करेगी। इस निर्णय से असहमत होने पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते हैं।