अयोध्या भूमि विवाद पर फैसला आने के बाद लोग अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दे रहें हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस गांगुली ने कई बड़ी बातें कहीं है।
Justice (Retd.) AK Ganguly has spoken on the #AyodhyaVerdict. In an exclusive conversation with India Today's @manogyaloiwal in #Kolkata, former Supreme Court Judge A.K. Ganguly has said that he is disturbed and perplexed.#ReporterDiary
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नवजीवन पर छपी खबर के अनुसार, उन्होंने कहा कि इस फैसले ने मेरे मन में एक शक पैदा किया है। उन्होंने कहा कि संविधान के एक छात्र के तौर पर मुझे इसे मंजूर करने में थोड़ी दिक्कत हो रही है।
A retired #SupremeCourt Judge, #AsokKumarGanguly, on Saturday, November 9 said the #Ayodhya judgment had created a doubt in his mind and that he was very disturbed, reported Telegraph. #AYODHYAVERDICT https://t.co/PPUofFOgVV
— National Herald (@NH_India) November 10, 2019
बीबीसी हिंदी वेबसाइट पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस गांगुली ने कहा, “अल्पसंख्यकों ने पीढ़ियों से देखा कि वहां एक मस्जिद थी। मस्जिद तोड़ी गई। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, वहां एक मंदिर का निर्माण होगा।”
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जस्टिस गांगुली ने सवाल खड़े करते हुए कहा, “इस फैसले के बाद एक मुसलमान क्या सोचेगा? वहां सालों से एक मस्जिद थी, जिसे तोड़ा दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने वहां मंदिर बनाने की इजाजत दे दी है। यह इजाजत इस आधार पर दी गई कि जमीन रामलला से जुड़ी हुई थी। सदियों पहले जमीन पर मालिकाना हक किसका था, इसे सुप्रीम कोर्ट तय करेगा?
क्या सुप्रीम कोर्ट इस बात को भूल जाएगा कि जब संविधान अस्तित्व आया तो वहां एक मस्जिद थी? संविधान में प्रावधान हैं और सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वह उसकी रक्षा करे।”
जस्टिस गांगुली ने आगे कहा, “बबरी मस्जिद में 1856-57 में भले नमाज पढ़ने के सबूत न मिले हों, लेकिन 1949 से यहां नमाज पढ़ी गई थी, इसका सबूत है।
देश का संविधान जब अस्तित्व में आया उस समय नमाज यहां पढ़ी जा रही थी।
एक ऐसी जगह जहां नमाज पढ़ी गई और अगर उस जगह पर एक मस्जिद थी तो फिर अल्पसंख्यकों को अधिकार है कि वह अपनी धार्मिक आजादी का बचाव करें। संविधान में लोगों को यह मौलिक अधिकार दिया गया है।”
जस्टिस गांगुली ने कहा, “संविधान के अस्तित्व में आने से पहले वहां क्या था, यह तय करना सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी नहीं है। उस समय भारत कोई लोकतांत्रिक गणतंत्र नहीं था।
वहां एक मस्जिद थी, एक मंदिर था, एक बौद्ध स्तूप था, एक चर्च था। अगर फैसला करने बैठेंगे तो कई मंदिर-मस्जिद और दूसरी तरह की संरचनाओं को तोड़ना पड़ेगा। हम पौराणिक ‘तथ्यों’ के बिना पर आगे नहीं बढ़ सकते।”
शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या भूमि विवाद पर अपना फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में तय कर दिया कि अयोध्या में विवादित जगह पर मंदिर बनेगा और इस काम को केंद्र सरकार एक ट्रस्ट बनाकर करेगी।
साथ ही मुसलमानों को किसी वैकल्पिक जगह पर 5 एकड़ जमीन मिलेगी, जिसपर मस्जिद बनाई जाएगी। इन दोनों निर्माण की निगरानी ट्र्स्ट करेगा।