6 दिसंबर 1992: जब मस्जिद को विध्वंस होता देख इस कारसेवक का दिल टूट गया!

,

   

बाबरी मस्जिद विध्वंस को आज 27 साल पूरे हो गए। एक पूरी पीड़ी जन्म लेकर जवान हो गई। राजनीति का एक चक्र पूरा हो गया। तमाम किताबें लिखी गई, सिर्फ भारत ही नहीं दुनियाभर की मीडिया ने अयोध्या विवाद को लेकर समय समय पर खबरे छापी।

हरिमूमी पर छपी खबर के अनुसार, इस साल अयोध्या भूमि विवाद मसला सुप्रीम कोर्ट ने सुलझाकर इस अध्याय को ही बंद कर दिया। पर इससे जुड़ी कहानियां आज भी लोगों के दिमाग में हैं, विध्वंस की तस्वीरें आज भी ताजा हैं, खासकर उनके भीतर जो उस वक्त अपनी आंखों के सामने ये सब देख रहे थे। 6 दिसंबर 1992 की सुबह आम सुबह नहीं थी।

कारसेवक एकदम सुबह ही ट्रेन, ट्राली व पैदल विवादित भूमि की तरफ बढ़ रहे थे। सुबह 9 बजे तक बाबरी मस्जिद से थोड़ी दूर पर कारसेवकों की बड़ी संख्या पहुंच चुकी थी।

भजन किर्तन के साथ जय श्री राम की गूंज दूर दूर तक सुनाई देने लगी। 1 घंटे बाद मंच से नेताओं का भाषण शुरू हुआ, नेताओं की भड़काऊ बातों ने माहौल को एकदम गर्म कर दिया।

जय श्री राम का नारा ‘एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो’ में बदल गया। मुंबई के एक कॉलेज के प्रोफेसर अभिजीत देशपांडे भी अयोध्या में राम मंदिर बनाने के उद्देश्य से अपने तमाम साथियों के साथ वहां पहुंचे थे।

वह बताते हैं कि तमाम राम भक्तों की तरह उन्होंने भी राम मंदिर बनने का सपना देखा और अयोध्या के लिए कूच कर दिया। लेकिन विध्वंस देखकर उनका दिल टूट गया और वह बीच रास्ते ही यह राह छोड़कर वापस लौट आए।