मुस्लिम पक्ष की दलील- ‘ऐसा कोई सुबूत नहीं, जिससे साबित हो कि वहां नमाज नहीं पढ़ी जाती थी’

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राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में शुक्रवार को मुस्लिम पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दावा किया गया कि 1934 से 1949 के बीच विवादित स्थल पर नियमित रूप से नमाज पढ़ी जाती थी। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा कोई सुबूत नहीं है, जिससे साबित हो कि उस दौरान वहां नमाज नहीं पढ़ी जाती थी।

अमर उजाला पर छपी खबर के अनुसार, मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील जफरयाब जिलानी ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष उस दौरान वहां नियमित नमाज पढ़ी जाने की बात कई। उन्होंने कहा कि यह अलग बात है कि जुमे (शुक्रवार) को अधिक लोग नमाज पढ़ने आते थे, जबकि बाकी दिन वहां कम लोग आते थे।

जिलानी ने कहा कि 1942 में निर्मोही अखाड़े ने जो सूट दायर की थी, उसमें भी विवादित स्थल को मस्जिद बताया गया है। यह नहीं कहा जा सकता कि वहां मस्जिद नहीं थी। 1885 में भी एक याचिका में कहा गया था कि विवादित जमीन के पश्चिमी हिस्से में मस्जिद थी। अभी इसे भीतरी आंगन कहा जाता है।

5 जून, 1934 को बाबरी मस्जिद के ट्रस्टी ने मस्जिद में हुए नुकसान को लेकर आवेदन दिया था। लोक निर्माण विभाग ने मस्जिद की मरम्मत कराई थी। 1934 दंगे में मस्जिद को नुकसान पहुंचाया गया था और मरम्मत के बाद उस जगह पर फिर से अल्लाह लिखा गया था।