तो फैसले के बेहद करीब बाबरी मस्जिद मामला..?

   

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई में पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने जरूरत पड़ने पर शनिवार को भी सुनवाई करने की उम्मीद जताई है

अयोध्या मामले में जैसे-जैसे बहस समाप्त करने की समय-सीमा ’18 अक्टूबर’ नजदीक आती जा रही है, कोर्ट के अंदर तीखी बहस होने की उम्मीद भी बढ़ गई है। राजनैतिक रूप से संवेदनशील इस 70 वर्ष पुराने मामले में सक्रिय सुनवाई के लिए अब केवल आठ दिन ही बचे हैं।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई में पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने जरूरत पड़ने पर शनिवार को भी सुनवाई करने की उम्मीद जताई है।

हिंदू और मुस्लिम पक्षों के वकीलों के बीच मंगलवार को तीखी बहस हुई। रामलला विराजमान की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सी.एस. वैद्यनाथन द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के समर्थन में अपना पक्ष रखने पर मुस्लिम पक्षों ने हस्पक्षेप किया, जिसपर धैर्य के साथ मामले की कार्यवाही को आगे बढ़ा रहे प्रधान न्यायाधीश गोगोई ने मुस्लिम पक्ष के वकील को बार-बार एक ही बात दोहरान पर फटकार लगाई।

सुनवाई के दौरान शांत रहने वाले वैद्यनाथन भी इससे परेशान हो गए और मुस्लिम पक्ष के वकील को जवाब देने के लिए माइक्रोफोन पर अपनी आवाज तेज कर दी। कुछ देर के लिए अदालत में अफरा-तफरी का माहौल बन गया।

वरिष्ठ वकील राजीव धवन की अगुवाई में सुन्नी वक्फ बोर्ड शुक्रवार को अपने मुकदमे के पक्ष में बहस शुरू करेगा और उम्मीद है कि बहस 14 अक्टूबर से शुरू हो रहे सप्ताह के बीच समाप्त हो जाएगा।

धवन ने मुस्लिम पक्षों की ओर से लगभग दो सप्ताह पहले ही ढेर सारे तर्क पेश कर दिए हैं। वह अपनी बहस में काफी तर्कयुक्त रहे हैं, हालांकि अदालत के अंदर अपने व्यवहार के लिए एकबार उन्होंने माफी भी मांगी, लेकिन बहस से कभी पीछे नहीं हटे।

मुस्लिम पक्षों द्वारा बहस पुरी होने के बाद, हिंदू पक्ष के पास उनके बहसों का जवाब देने के लिए दो या तीन दिन होंगे। इसलिए अयोध्या मामले का काफी महत्वपूर्ण पड़ाव सामने आ गया है। नौ वर्षो के बाद मामले पर फैसला आने वाला है और अब मामले में अंतिम बहस को समाप्त होने में बमुश्किल एक सप्ताह बचा है।

यह जाहिर है कि इस महत्वपूर्ण पड़ावों में प्रतिस्पर्धात्मक और भावनात्मक रूप से आवेशित वातावरण का निर्माण होगा, जैसा कि मंगलवार को हुई बहस के दौरान देखा गया था।

मुस्लिम पक्षों द्वारा लगातार हस्तक्षेप ने राम लला और वैद्यनाथन का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील के. परासरण को भी परेशान कर दिया। वकील हालांकि तीखी बहस के दौरान शांत बने रहे जिसमें हिंदू विश्वास और मान्यताओं को निशाना बनाया गया।

खास खबर पर छपी खबर के अनुसार, हिंदू पक्ष विवादित भूमि पर सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष रखने के लिए दो महत्वपूर्ण पहलुओं को स्थापित करने की प्रक्रिया में हैं। पहला राम जन्मभूमि है-जोकि विवादित ढांचे के केंद्रीय गुंबद के नीचे की भूमि में एक न्यायिक इकाई के रूप में भगवान राम के जन्मस्थान के रूप में है, जो कानून के अधीन है।

दूसरा, इलाहबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले में एएसआई रिपोर्ट की विश्वसनीयता है। रिपोर्ट में बाबरी मस्जिद के नीचे एक हिंदू मंदिर के अवशेष के बारे में बताया गया है। रणनीतिक रूप से, हिदू पक्ष उच्च न्यायालय के फैसलों का अपने बहस में उदाहरण देते हैं, जोकि लगभग 6,000 पन्नों का है।

परासरण ने भूमि को न्यायिक इकाई के रूप में देखने को लेकर अपना पक्ष रखा, जोकि कानून के अधीन है। मुस्लिमों ने इस तर्क को खारिज कर दिया और दावा किया कि बाबरी मस्जिद का मध्य गुंबद राम की जन्मस्थली नहीं है।

अदालत ने परासरण से उनके बहस को लेकर कहा कि उनके तर्को का बड़ा प्रभाव हो सकता है, क्योंकि कोई भी भूमि में देवत्व (डिवीनिटी) का दावा लेकर अदालत पहुंच सकता है। इसपर परासरण ने स्पष्ट किया कि अदालत को इसे हिंदू संस्कृति और परंपरा के आधार पर देखना चाहिए। इसपर विपक्षी पक्षों ने तीखी प्रतिक्रिया दी।