धवन ने कहा कि हम ऐसी दलीलों से बचते हैं जिनसे सांप्रदायिक विभाजन की आशंका हो। हमने कहा था कि गतिविधियां गैरकानूनी थीं और सांप्रदायिक विभाजन पर कुछ नहीं कहा था
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के मामले में हिंदू पक्षकारों ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि सुनवाई के दौरान उन्होंने कभी ऐसी दलील नहीं दी जो सांप्रदायिक सौहार्द और शांति को बिगाड़ती हो। हिंदू पक्ष ने दावा किया कि उनके प्रतिद्वंद्वियों के दावे में सांप्रदायिक पहलू शामिल है।
this very interesting interview (in context of the Ram Mandir case) published in the times of india. hope the supreme court takes correct cognizance of these matters.https://t.co/8F3koqTWXw
— Ravi Garg 🇮🇳 (@rkgarg9) October 1, 2019
उन्होंने मुस्लिम पक्षकारों की इस दलील को अनुचित और दुर्भाग्यपूर्ण भी बताया कि पुरातत्विक रिपोर्ट को नष्ट किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अब वे आरोप लगा रहे हैं कि जो दीवार खुदाई में निकली, वह ईदगाह की थी।
#RamMandir – #BabriMasjid: In response to question by Justice SA Bobde, Parasaran places reliance on Supreme Court judgment in Poohari Fakir Sadavarthy v. Commr
— Bar & Bench (@barandbench) September 30, 2019
दलीलों पर प्रश्न करते हुए राम लला के वरिष्ठ वकील ने कहा कि इसका आशय है कि मुगल शासक बाबर आया था और उसने ईदगाह को गिराकर मस्जिद बनाई। इसने उनके पुराने रुख का भी विरोध किया कि मस्जिद खाली जमीन पर बनाई गयी थी।
हिंदू पक्षकारों की दलीलों पर मुस्लिम पक्ष की तीखी प्रतिक्रिया आई। दलीलों पर बहस के दौरान दोनों पक्षों के वरिष्ठ वकीलों के बीच तीखी नोकझोंक हो गयी। वे प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष दलील रख रहे थे।
#RamMandir – #BabriMasjid: One deity can manifest itself in several forms in the same temple, K Parasaran says and cites example of Supreme Court itself.
There are many judges and Benches but judgment is attributed to Supreme Court, says Parasaran.
— Bar & Bench (@barandbench) October 1, 2019
पीठ ने इस संवेदनशील मामले पर 35वें दिन की सुनवाई पूरी की। राम लला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने कहा कि सुनवाई के दौरान उन्होंने (मुस्लिम पक्ष ने) अनावश्यक टिप्पणियां कीं और हमने कभी ऐसी कोई दलील नहीं दी जो सांप्रदायिक शांति और सौहार्द के खिलाफ हो।
साक्षी प्रभा पर छपी खबर के अनुसार, उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि (सुन्नी) वक्फ बोर्ड ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को ‘ज्ञात अनुमान’ की तरह पेश किया।
इस पर मुस्लिम पक्षों के वकील राजीव धवन ने आपत्ति जताते हुए कहा कि मैंने इसे चित्रित नहीं किया, बल्कि न्यायाधीशों ने खुद इसे ज्ञात अनुमान की तरह चित्रित किया है।
धवन ने कहा कि हम ऐसी दलीलों से बचते हैं जिनसे सांप्रदायिक विभाजन की आशंका हो। हमने कहा था कि गतिविधियां गैरकानूनी थीं और सांप्रदायिक विभाजन पर कुछ नहीं कहा था।