बाबरी मस्जिद सुनवाई: इस महिने के मध्य तक आ सकता है फैसला!

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बाबरी मस्जिद सुनवाई में आज 33वें दिन सुनवाई शुरू हो गई है। आज भी मुस्लिम पक्ष के वकीलों की ओर से दलीलें रखी जा रही हैं। कल शीर्ष अदालत ने साफ कर दिया था कि हर हाल में 18 अक्टूबर तक अयोध्या राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक के मुकदमे की सुनवाई पूरी कर ली जाए।

अदालत ने पक्षकारों से दो टूक कह दिया था कि सुनवाई उसके आगे नहीं बढ़ेगी। सनद रहे कि दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट ने पक्षकारों को सुनवाई की समय सीमा को लेकर आगाह किया था।

बता दें कि सुनवाई कर रही संविधान पीठ के अध्यक्ष प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उससे पहले सुनवाई पूरी होकर फैसला आना है।

18 अक्टूबर को सुनवाई पूरी होने से कोर्ट के पास फैसला लिखने के लिए करीब एक माह का वक्त बचेगा। सर्वोच्‍च अदालत जिस तेजी के साथ मामले की सुनवाई कर रही है, उससे उम्‍मीद है कि नवंबर के मध्‍य तक देश के सबसे चर्चित इस मामले में फैसला आ जाएगा।

कोर्ट ने कहा था कि 18 अक्टूबर तक उसके पास साढ़े नौ कार्यदिवस का समय शेष है। यानी नौ दिन पूरे और शुक्रवार का आधा दिन बचा है। ऐसे में मुस्लिम पक्ष शुक्रवार तक अपनी दलीलें पूरी कर ले, उसके बाद हिंदू पक्ष को जवाब के लिए दो दिन का समय मिलेगा।

फिर राजीव धवन सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से दो दिन बहस करेंगे जिसका हिंदू पक्ष दोबारा जवाब देगा। इसके बाद अपीलकर्ताओं की मांगों में कुछ रद्दोबदल होगा तो अदालत उस पर सुनवाई करेगी।

सुप्रीम कोर्ट अगर 18 अक्टूबर तक सुनवाई पूरी कर लेता है तो प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की सेवानिवृत्ति तक फैसला लिखने के लिए उसके पास करीब चार हफ्ते का समय बचेगा।

अयोध्या विवाद जैसे विस्तृत मामले में चार सप्ताह में फैसला लिखना किसी चुनौती से कम नहीं माना जा रहा है। मामले में 32 दिन की सुनवाई पूरी हो चुकी है और कुल 41 दिन सुनवाई होनी है। आंकड़ों के लिहास से देखें तो यह अभी तक किसी भी मुकदमे में चली सबसे लंबी सुनवाई होगी।

बता दें कि इसी मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखने के बाद फैसला देने में करीब दो महीने का समय लिया था। हाई कोर्ट ने जुलाई, 2010 में सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रख लिया था और 30 सितंबर, 2010 को फैसला सुनाया था।

जागरण डॉट कॉम के अनुसार, हाई कोर्ट में जनवरी से जुलाई तक करीब सात महीने नियमित सुनवाई चली थी। हाई कोर्ट ने अयोध्या में राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था जिसमें एक हिस्सा रामलला विराजमान को, दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा हिस्सा मुस्लिम पक्ष को दिया गया था।