10% रिजेर्वेशन के फैसले के आगे बड़ी चुनौतियां, मोदी सरकार के लिए पार करना बहुत मुश्किल

   

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कोटा के लिए 50 फीसदी की सीमा तय कर रखी है। अगर आरक्षण का आंकड़ा इसे पार करता है तो मामला न्यायिक समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट के सामने जाएगा। वहां इस फैसले का टिकना मुश्किल है। कानूनी जानकार बताते हैं कि देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में इंदिरा साहनी फैसले (मंडल जजमेंट कहा जाता है) में क्या व्यवस्था दी है। सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच ने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी को पार नहीं सकती। कोर्ट के अनुसार, ‘संविधान का अनुच्छेद-16 (4) कहता है कि पिछड़ेपन का मतलब सामाजिक पिछड़ेपन से है। शैक्षणिक और आर्थिक रूप से कमजोर होना सामाजिक पिछड़ेपन के कारण हो सकते हैं। फैसले के अनुसार अगर रिजर्वेशन में कोई सरकार 50 फीसदी की सीमा पार करती है तो वह जूडिशल स्क्रूटनी के दायरे में होगा। यानी मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था में मोदी सरकार के फैसला का टिक पाना मुश्किल है।

कानूनी जानकार बताते हैं कि ‘पहले भी कई बार राज्य सरकारों ने आरक्षण के मसले पर 50 फीसदी की सीमा को पार किया था। राजस्थान सरकार ने स्पेशल बैकवर्ड क्लास को कोटा देते हुए 50 फीसदी की सीमा को पार किया था। तब मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया और आरक्षण खारिज हो गया। इसी के साथ दिसंबर 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया, जिसमें हाई कोर्ट ने मराठाओं को नौकरी और शिक्षा में 16 फीसदी कोटा देने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले पर रोक लगा दी थी। राज्य सरकार के इस फैसले से भी 50 फीसदी कोटे की सीमा पार हो रही थी।

संवैधानिक मामलों के जानकार और लोकसभा के रिटायर्ड सेक्रेटरी जनरल पीडीटी अचारी ने कहा, ‘संविधान में अनुच्छेद-16 के तहत समानता की बात करते हुए सबको समान अवसर देने की बात है। यह संविधान की मूल भावना है। हो सकता है कि सरकार संविधान में संशोधन करके 50 फीसदी की लिमिट पार करके कोटा दे। या फिर मामले को 9वीं अनुसूची में रखकर उसे न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर करने की कोशिश करे। लेकिन फिर भी यह केस न्यायिक समीक्षा के दायरे में आएगा। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि 9वीं अनुसूची में रखकर कोई ऐसा फैसला नहीं लिया जा सकता, जो संविधान की मूल भावना के ही खिलाफ हो।

क्या है आरक्षण का नियम
संविधान के अनुसार, आरक्षण का पैमाना सामाजिक असमानता है। किसी की आय और संपत्ति के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, कोटा किसी समूह को दिया जाता है और किसी व्यक्ति को नहीं। अपने फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आर्थिक आधार पर कोटा दिया जाना समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने कोटा देने की सीमा 50 फीसदी तय कर रखी है।