वैवाहिक संबंधों में सुधार की गुंजाइश न होना तलाक़ का आधार नहीं हो सकता- हाईकोर्ट

   

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि वैवाहिक संबंधों में सुधार की गुंजाइश न होना मात्र तलाक का आधार नहीं हो सकता है, विशेषकर जब ऐसा दोनों में से किसी एक पक्ष के द्वारा कहा जा रहा है।

कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 में इस आधार को शामिल नहीं किया है। अदालतें स्वविवेक से परिस्थितियों का परीक्षण करने के उपरांत वैवाहिक संबंध मृत पाने की स्थिति में तलाक का आदेश पारित करती हैं। मगर सुप्रीमकोर्ट ने ऐसे मामलों में कहा है कि ऐसे आदेश नजीर नहीं हो सकते हैं।

मेरठ की डॉ. सरिता की प्रथम अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति राजीव मिश्र की खंडपीठ ने कहा कि वैवाहिक संबंध में सुधार की कोई गुंजाइश न बचे होने के आधार पर तलाक दिए जाने का नियम एक्ट में शामिल नहीं किया गया है, हालांकि सुप्रीमकोर्ट ने सरकार को इसे कानून में शामिल करने के लिए धारा 13 में संशोधन का सुझाव दिया है।

अमर उजाला पर छपी खबर के अनुसार, विष्णुदत्त शर्मा बनाम मंजू शर्मा केस में सुप्रीमकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यह तलाक का आधार हो सकता है, मगर यदि अदालत ऐसे कोई आदेश देती है तो इसका अर्थ होगा एक्ट में संशोधन करना जोकि संसद का काम है अदालत का नहीं।

कोर्ट ने डॉ. सरिता की अपील स्वीकार करते हुए उसके विरुद्ध पारित तलाक की डिक्री को रद् कर दिया है। सरिता के पति डॉ. विकास कनौजिया ने मेरठ प्रधान पारिवारिक न्यायाधीश की अदालत में तलाक की अर्जी दाखिल की थी।

पारिवरिक न्यायाधीश ने क्रूरता और वैवाहिक संबंध में सुधार की गुंजाइश बचे न होने को आधार बनाते हुए तलाक मंजूर कर लिया।

हाईकोर्ट ने इसे रद्द करते हुए कहा कि मानसिक क्रूरता को सही तरीके से साबित नहीं किया गया और सुधार की गुंजाइश बचे न होने का आधार पति द्वारा लिया गया है, जबकि उसने स्वयं अपनी पत्नी के साथ रहने से मनाकर दिया है। ऐसी स्थिति में इस आधार पर तलाक की डिक्री नहीं दी जा सकती है।