H1बी वीजा को लेकर चौंकाने वाले आंकड़ें आए हैं। दरअसल ट्रम्प प्रशासन की सख्त नीतियों के कारण एच-1 बी आवेदनों को खारिज किए जाने की दर 2015 के मुकाबले इस साल बहुत अधिक बढ़ी हैं।
Between 2015 and 2019, the #H1b denial rate jumped from 4% to 41% for #TechMahindra, from 6% to 34% for #TCS, from 7% to 53% for #Wipro and from just 2% to 45% for #Infosys, the study showed https://t.co/D0f6olTJAf
— Firstpost (@firstpost) November 6, 2019
गुड रिटर्न डॉट इन पर छपी खबर के अनुसार, एक अमेरिकी थिंक टैंक की तरफ से किए गए अध्ययन में यह भी सामने आया है कि नामी गिरामी भारतीय आईटी कंपनियों के एच -1 बी आवेदन सबसे ज्यादा खारिज किए गए हैं।
ये आंकड़ें उन आरोपों को एक तरह से बल देते हैं कि मौजूदा प्रशासन अनुचित तरीके से भारतीय कंपनियों को निशाना बना रहा है।
आपको बता दें कि नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी की ओर से किए गए इस अध्ययन के अनुसार 2015 में जहां छह प्रतिशत एच -1 बी आवेदन खारिज किए जाते थे, वहीं मौजूदा वित्त वर्ष में यह दर 24 प्रतिशत हो गई है। यह रिपोर्ट अमेरिका की नागरिकता और आव्रजन सेवा यानि USCIS से प्राप्त आंकड़ों पर आधारित है।
इसे इस तरह से समझें, उदाहरण के लिए 2015 में अमेजन, भारत, इंटेल और गूगल में नौकरी करने वाले के लिए दायर एच -1 बी आवेदनों में महज एक प्रतिशत को खारिज किया जाता था। वहीं 2019 में यह दर क्रमश: छह, आठ, सात और तीन प्रतिशत हो गई है। हालांकि Apple के लिए यह दर दो प्रतिशत ही रही।
आपको बता दें कि रिपोर्ट में कहा गया है कि इसी अवधि में टेक महिंद्रा के लिए यह दर चार प्रतिशत से बढ़कर 41 प्रतिशत हो गई, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के लिए 6 प्रतिशत से बढ़कर 34 प्रतिशत से अधिक, विप्रो के लिए सात से बढ़कर 53 प्रतिशत और इन्फोसिस के लिए महज 2 प्रतिशत से बढ़कर 45 प्रतिशत से पर पहुंच गई।
तो वहीं रोजगार जारी रखने के लिए दायर एच -1 बी आवेदनों को खारिज किए जाने की भी दर भारतीय आईटी कंपनियों के लिए सबसे ज्यादा थी।