बिहार की राजनीति- पाँचों चरण के मतदान का आंकलन!

   

पाँच चरण के चुनाव पूरे हो चुके है। बिहार की 24 लोकसभा सीटों पर मतदान हो चुका है। अब अगले दो चरण में 16 सीटों पर मतदान होना बाक़ी है। चूंकि अभी बिहार के एक बड़े हिस्से में मतदान बाक़ी है इसलिए बिहार का रुझान स्पष्ट नहीं दिख रहा है। क्योंकि राजधानी पटना सहित उत्तरप्रदेश और बिहार की सीमा से जुड़ें वाल्मिकीनगर, गोपालगंज, सीवान, महाराजगंज, बक्सर, सासाराम इत्यादि सीटों पर अभी मतदान होना बाक़ी है।

यह ऐसे सीट है जिसका प्रभाव लोकसभा चुनाव मे उत्तरप्रदेश की कई सीटों पर पड़ता है और उत्तरप्रदेश का प्रभाव भी इन सीटों पर पड़ता है। लेकिन अभी तक जिन सीटों पर मतदान हुए है उसके आधार पर आंकलन बहुत कठिन है। मगर इतना स्पष्ट है की भाजपा के घटक दलों को भारी नुक़सान उठाना पड़ सकता है।

महागठबन्धन की बनावट ने बिहार में भाजपा और उसकी घटक दलों को काफ़ी नुकसान किया है। बिहार के चुनाव मे सामाजिक न्याय के नाम पर जातियों की गोलबंदी होती रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में ऊँची जातियों और वैश्य के साथ-साथ कुशवाहा, मल्लाह और पासवान जाति का एकमुश्त वोट भाजपा के साथ था। लेकिन 2019 में मामला सीधा उलट है।

बिहार मे मुसलमान और यादव जाति के बाद सबसे अधिक संख्या कुशवाहा जाति का है। महागठबंधन ने कुशवाहा और मल्लाह मतदाताओं में सेंध लगा दिया है।

प्रथम चरण में औरंगाबाद, गया, नवादा, जमुई में मतदान हुआ। यह चारों सीट आपस में जुड़ी हुई है। इन क्षेत्रों में मुसलमान, यादव, कुशवाहा, माँझी, पासी जाति की अच्छी आबादी है और समीकरण के आधार पर इन जातियों का मत महागठबंधन के साथ है।

महागठबंधन ने औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से कुशवाहा, गया(सुरक्षित) सीट से माँझी, नवादा से यादव और जमुई(सुरक्षित) सीट से पासी जाति के नेताओं को टिकट दिया है। इस तरह से जातीय गठजोड़ को देखते हुए समीकरण के सभी जातियों ने अपनी जाति की एक सीट बचाने के लिए एक-दूसरे क्षेत्र में जाकर खूब प्रचार किया।

दूसरी तरफ़ जमुई और गया की दोनों सुरक्षित सीट को छोडकर औरंगाबाद और नवादा दोनों सीटों पर एनडीए ने उच्च जाति से उम्मीदवार उतारा था। इसलिए अगड़ी और पिछड़ी जाति की इस संघर्ष में यह समझा जा रहा है की औरंगाबाद, नवादा और जमुई की सीट महागठबंधन के हिस्से में जा रही है।

जब्कि पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम माँझी की खुद की सीट गया की स्थिति स्पष्ट नहीं दिख रही है। दूसरे चरण में भागलपुर, बाँका, कटिहार, पुर्णिया और किशनगंज में मतदान हुआ था। भागलपुर, बाँका, किशनगंज और कटिहार की सीट पहले से भी महागठबंधन के पास जब्कि पुर्णिया सीट जदयु के पास थी।

जदयु ने बड़ी चालाकी से भागलपुर में बोलो मण्डल के विरुद्ध अजीत मण्डल और बाँका में राजद के सांसद जयप्रकाश यादव के सामने गिरिधारी यादव को उम्मीदवार बनाया था।

नितीश कुमार के दिमाग में यह बातें चल रही थी की भाजपा के परंपरागत मतदाताओं के साथ-साथ उच्च जाति और महादलित मतदाताओं को गोलबंद करके मण्डल के मतों मे बिखराव करते हुए भागलपुर और यादव मतदाताओं में बिखराव करके बाँका की सीट पर कब्ज़ा किया जा सकता है।

मगर नितीश कुमार की यह रणनीति भागलपुर और बाँका दोनों में सफ़ल होती नहीं दिख रही है। पूर्व सांसद और दिग्गज समाजवादी नेता स्वर्गीय दिग्विजय सिंह की पत्नी पुतुल सिंह के निर्दलीय नामांकन ने बाँका में जयप्रकाश यादव के लिए जीत लगभग आसान कर दिया है।

पुर्णिया में लड़ाई बहुत कठिन है। जदयु प्रत्याशी सांसद संतोष कुशवाहा महागठबंधन के वोटों में सेंध लगाने में सफल दिख रहे है। लेकिन पुर्णिया में मुसलमानों की बड़ी आबादी है और मुसलमानों और यादवों का एकमुश्त वोट काँग्रेस उम्मीदवार पप्पू सिंह को मिला है। कटिहार में सांसद तारिक अनवर को चुनाव जीतने के लिए काफ़ी संघर्ष करना पड़ रहा है।

सबसे रोमांचल लड़ाई किशनगंज में है। ओवेसी की पार्टी के उम्मीदवार पूर्व विधायक अखतरुल ईमान ने जदयु और काँग्रेस दोनों का नींद हराम कर दिया है। काँग्रेस का परंपरागत वोट काँग्रेस प्रत्याशी डॉ जावेद को मिला है जब्कि गैर-मुस्लिम वोट एकतरफ़ा जदयु के महमूद अशरफ को मिलता नज़र आरहा है। यहाँ की लड़ाई त्रिकोणीय है और इस त्रिकोणीय लड़ाई में अखतरुल ईमान चुनाव जीत सकते है।

तीसरे चरण में झंझारपुर, सुपौल, अररिया, मधेपुरा, खगड़िया में मतदान हुआ था। यह सभी सीट यादव बेसिन में है। 2014 के लोकसभा चुनाव में पाँच में से तीन सीट महागठबंधन के पास थी। बाद में मधेपुरा सांसद पप्पू यादव को पार्टी से निस्कासित कर दिया गया था। इसबार मधेपुरा में तीन यादवों के बीच में लड़ाई है।

मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने चुनाव प्रचार के लिए एक सप्ताह तक मधेपुरा में कैंप किया था। राजद से शरद यादव, जदयु से दिनेश चन्द्र यादव और वर्तमान सांसद पप्पू यादव उम्मीदवार है। लड़ाई मुख्यतः शरद यादव और दिनेश चंद्र यादव के बीच में है।

पूर्व में शरद यादव के चुनाव प्रबंध की पूरी ज़िम्मेदारी दिनेश चंद्र यादव के पास रहती थी। इसलिए शरद यादव के सभी सूत्र उनके पास भी थे। लेकिन मधेपुरा के यादव में लालू यादव के प्रति दीवानगी होती है और साथ ही शरद यादव की छवि मण्डल मसीहा की रही है।

इसलिए यादव मतों के साथ-साथ अन्य पिछड़ी जातियो का मत भी शरद यादव के पास आया है। अंततः मधेपुरा सीट भी महागठबंधन के हिस्से में जाती हुई दिख रही है। अररिया सीट भी राजद के पास ही रहने की संभावना है। झंझारपुर पर एनडीए मजबूत दिख रही है। चुनाव से ठिक पहले पूर्व सांसद मंगनीलाल मण्डल और देवेन्द्र यादव का राजद से बागी रुख नुक़सान पहुंचाया है।

सुपौल में काँग्रेस सांसद रंजीता रंजन की स्थिति कमज़ोर पड़ रही है। इसका मुख्य कारण राजद के नेताओं का भीतरघात है। खगड़िया सीट पर एनडीए के घटक दल लोजपा के महबूब अली क़ैसर सांसद है। इसबार उनका मुक़ाबला सन ऑफ मल्लाह मुकेश साहनी से है। 2014 लोकसभा चुनाव में भी मुसलमानों ने महबूब अली क़ैसर को खुलकर मतदान किया था।

मगर इसबार मुसलमान मतदाताओं की महागठबंधन की तरफ़ खामोश मतदान मुकेश साहनी के लिए फ़ायदेमंद है। चौथे चरण में बेगूसराय, दरभंगा, उजियारपुर, समस्तीपुर और मुंगेर सीट पर चुनाव हुआ था। बेगूसराय सीट पर पूरे भारत की नज़र थी। जेएनयू के छात्रनेता कन्हैया कुमार और गिरिरराज सिंह चुनाव आमने-सामने है। मीडिया की नज़र में लड़ाई गिरिराज बनाम कन्हैया है।

मगर इन दोनों के बीच में राजद प्रत्याशी डॉ० तनवीर हसन को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। जब्कि जमीनी सच्चाई अलग है। मतदान के बाद लड़ाई गिरिराज सिंह और डॉ तनवीर हसन में दिख रही है जब्कि कन्हैया कुमार तीसरे स्थान पर जाते दिख रहे है। कन्हैया मुसलमानों का वोट काटने में सफल रहे है मगर भूमिहारों के वोट में सेंध नहीं लगा सके।

जब्कि डॉ तनवीर हसन के साथ मुसलमानों का लगभग साठ प्रतिशत के साथ-साथ महागठबंधन के समीकरण का कुशवाहा, मल्लाह, मुसहर और दलित का वोट जुड़ गया है। भूमिहार सहित अन्य उच्च जातियों के साथ-साथ वैश्य, पासवान और कुर्मी का वोट जुड़ गया है।

इसलिए बेगूसराय की लड़ाई भाजपा और राजद के बीच फंसी हुई है। दरभंगा ब्राह्मण बहुल क्षेत्र है और ब्राह्मणों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया है। राजद के अब्दुलबारी सिद्दीकी के पक्ष में यादव और मुसलमान ही मजबूती के साथ खड़े रहे है।

मल्लाहों के वोटों में भाजपा बिखराव करने मे सफ़ल रही है। इसलिए दरभंगा की लड़ाई भाजपा के गोपाल ठाकुर और अब्दुलबारी सिद्दीकी में फँसता हुआ दिख रहा है। समस्तीपुर में काँग्रेस अशोक राम लोजपा के रामचन्द्र पासवान पर भारी पड़ रहे है।

लेकिन सुरक्षित सीटों पर एनडीए के प्रत्याशियों को उच्च जाति से मिलने वाले समर्थन का फ़ायदा मिलता है। मुंगेर में भूमिहार जाति के दो दिग्गज नेता आपस में ही भीड़ गए है। भूमिहार मतों में इस बिखराव का फ़ायदा महागठबंधन प्रत्याशी को मिलता हुआ दिख रहा है।

पांचवें चरण में सीतामढ़ी, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, सारण, हाजीपुर की सीटों पर चुनाव हुआ था। सीतामढ़ी से पूर्व घोषित जदयु उम्मीदवार ने सिम्बल वापस कर दिया था जिस कारण जदयु की मोरली कमज़ोर थी। यादव और मुसलमान मतदाता ही अपने दम पर महागठबंधन को जीत दिलाने के लिए सीतामढ़ी में सक्षम है।

मधुबनी में पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ शकील अहमद के निर्दलीय प्रत्याशी बनने से महागठबंधन को नुकसान उठाना पड़ा है। मगर इसके बावजूद महागठबंधन ने एक्सपेरिमेंट के रूप में पूर्वे जाति के नेता को उम्मीदवार बनाया है। पूर्वे वैश्य समुदाय की नीचली जातियों में अति है। यह भाजपा का परंपरागत वोट बैंक रहा है।

लेकिन पहली बार तेली और पूर्वे भाजपा से अलग होकर महागठबंधन को मतदान किया है। भाजपा से यादव प्रत्याशी होने के बावजूद यादव का बहुसंख्यक तबक़ा राजद के साथ खड़ा रहा है। ब्राह्मण मतदाताओं में बहुत उत्साह नहीं था। इसलिए भाजपा और डॉ शकील अहमद में वोट बँटता हुआ दिख रहा है।

डॉ शकील मुस्लिम मतदाताओं पर कुछ ख़ास असर नहीं डाल सके। कुल मिलाकर मधुबनी सीट भी महागठबंधन के हिस्से में आती दिख रही है। सारण सीट लालू यादव की पारंपरिक सीट रही है। वह 1977 से लगातार इस सीट से चुनाव जीते है। उनको हार का भी सामना करना पड़ा है। यादव और राजपूत का दबदबा रहा है।

इसबार लालू यादव के समधी और पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा राय के पूत्र परसा विधायक पूर्व मंत्री चंद्रिका राय उम्मीदवार है। इसबार यादव, मुसलमान और दलित वोटों के सहारे राजद के चंद्रिका राय की जीत निश्चित समझी जा रही है। हाजीपुर रमविलस पासवान की पारंपरिक सीट है। उनके भाई पशुपति कुमार पारस एनडीए के उम्मीदवार है।

राजद ने मजबूत दलित नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शिव चन्द्र राम को अपना उम्मीदवार बनाया है। शिवचन्द्र राम की स्थिति शुरुआत में अच्छी बतायी जा रही थी मगर अंत-अंत तक रमविलस पासवान के समर्थन में लोगों ने माहौल मे परिवर्तन ल दिया साथ ही भाजपा समर्थित सवर्ण मतों का ध्रुवीकरण एनडीए के पक्ष में हुआ। इसलिए हाजीपुर पर स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है।

बिहार में विधानसभा या लोकसभा का चुनाव में शुरुआत से ही सांप्रदायिक रँग चढ़ा दिया जाता था। लेकिन अभी तक पाँच चरण के मतदान होने के बावजूद सांप्रदायिक रँग नहीं दिया जा सका है। इसके पीछे प्रमुख कारण विपक्षी दलों की गोलबंदी और महागठबंधन का निर्माण है। महागठबंधन के निर्माण ने मुसलमानों को बहुसंख्यक समाज के साथ लाकर खड़ा कर दिया है।

साथ-साथ विपक्षी दल के नेता तेजस्वी यादव ने अपने चुनाव प्रचार का प्रमुख मुद्दा संविधान के मूल्यों के साथ हो रही छेड़छाड़ तथा दलित एवं पिछड़ों के अधिकारों पर केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे प्रहार को बनाया है। संविधान के साथ किए जा रहे छेड़छाड़ को मुद्दा बनाकर ही सत्ताधारी दल को घेर दिया गया है जिस कारण लाख कोशिशों के बावजूद भी सांप्रदायिकता को मुद्दा बनाने मे सफ़ल नहीं हुआ है।

-तारिक अनवर चंपारणी