ओवैसी के साथ गठबंधन: बिहार चुनाव में कितना असरदार?

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चुनाव के समय जो गठबंधन बनते हैं, चुनाव के बाद लंबे समय तक अगर वह टिके नहीं रहते, तो अगले चुनाव में उनके जीतने की संभावना खत्म हो जाती है।

 

जागरण डॉट कॉम पर छपी खबर के अनुसार, बिहार में कुछ ऐसा ही होता रहा है। इस चुनाव में बिहार में पांच मोर्चे खुल गए हैं। दो नए गठबंधन बने हैं। दो पुराने गठबंधन थे।

 

लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) समेत कई पार्टियां अकेले लड़ रहीं। सवाल यह भी है कि चुनाव बाद इन गठबंधनों का क्या होगा? छोटी सफलता मिलती है, तब तो निश्चित तौर पर इनका अस्तित्व खत्म हो जाएगा।

 

बड़ी सफलता ही गठबंधनों की पार्टियों को एकजुट रखती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण महागठबंधन है। पिछली बार कांग्रेस 41 सीटों पर चुनाव लड़ी थी।

 

उसे 27 सीटों पर सफलता मिली। अन्य दल इधर-उधर हो गए लेकिन हाल के वर्षोंं में सबसे बड़ी जीत हासिल करने वाली कांग्रेस राजद (RJD) के साथ बनी रही।

 

इस चुनाव में पहली बार बिहार में पांच मोर्चे खुले हैं। इनकी परीक्षा तो चुनाव में होगी, लेकिन परिणाम चुनाव बाद दिखेगा।

 

लोकसभा चुनाव में एक सीट पर सिमट गए महागठबंधन ने इस बार भारतीय जनता पार्टी एवं जनता दल यूनाइटेड की सरकार को सत्ता से हटाने हेतु वामपंथी दलों को भी अपने पाले में किया है।

 

वामपंथी पार्टियां राज्य में राजनीतिक जमीन बचाने के लिए सक्रिय हो गई हैं। ऐसा अक्सर होता है कि वामपंथी पार्टियां चुनाव के समय गठजोड़ कर लेती हैं, लेकिन चुनाव बाद उनके कार्यक्रम और राह बिल्कुल अलग होती है।

 

राष्‍ट्रीय जनांत्रिक गठबंधन ने विकासशील इनसान पार्टी के मुकेश सहनी और हिंदुस्‍तानी अवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी को अपने पाले में किया है।

 

ये दोनों दल दूसरी बार एनडीए से जुड़े हैं। असफलता मिलते ही स्थान बदलने के लिए ही दोनों दल जाने जाते हैं।

 

एनडीए के लिए चुनाव थोड़ा अलग इसलिए भी है कि इससे अलग होकर एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान बागी नेताओं के भरोसे चुनावी मैदान में हैं।

 

नतीजे से साबित होगा कि उन्होंने सही फैसला लिया या गलती की? चुनाव के बाद वह भी इधर-उधर हो सकते हैं।

 

सीमांचल-कोसी अंचल की राजनीति पर असर छोड़ने वाले असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम ने राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी के उपेंद्र कुशवाहा, समाजवादी जनता दल के देवेंद्र यादव, बहुजन समाज पार्टी की मायावती, जनवादी पार्टी सोसलिस्ट पार्टी के डॉ. संजय चौहान और सोहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ मोर्चा बनाया है।

 

इस मोर्चा में कितना दमखम है, इसकी परीक्षा यह चुनाव लेगा। चुनाव में इन्हें आशातीत सफलता नहीं मिलती है, तो इन अगले चार साल फिर इन दलों की राह अलग-अलग ही दिख सकती है।

 

जन अधिकार पार्टी के पप्पू यादव ने भी छोटे दलों के साथ गठबंधन बनाकर चुनाव में ताल ठोक रखा है। पप्पू यादव लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अलग-अलग खेमे और गुट में आते-जाते रहे हैं।

 

उनके लिए दक्षिणपंथी और समाजवादी खेमा अलग नहीं है। सुविधा के अनुसार स्थान बदलते रहते हैं। चुनाव की सफलता इनके गठबंधन के बने और खत्म होने पर निर्भर रहेगी।