तरक्की की मशाल की जिंदा चिंगारी है ‘तनुजा रशीद’!

   

“तेरे माथे पे ये आँचल तो बहुत खूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था।”

उर्दू के मशहूर शायर असरार उल हक़ ‘मजाज’ की लिखी इन पंक्तियों में औरतों को खुद की बेहतरी के लिए संघर्ष करने, रूढ़ियों को तोड़कर नई शुरुआत करने और गैर बराबरी को मिटाने की भावनाएं एक साथ मौजूद हैं।

दरअसल शायर ने ‘आँचल’ को ‘परचम’ बना लेने का जो आहवान किया है उसे एक संकल्प के रूप में महिला आंदोलनों, नारी सशक्तिकरण के कार्यक्रमों में बहुत ही जोर शोर से उठाया जाता है। हक़ीक़त में ऐसी कई मिसालें भी मिलती हैं जिनसे पता चलता है कि औरतों ने अपने आँचल को न केवल आँचल की तरह बल्कि उसे अपने नये सबेरे की आगाज के लिए एक परचम(झंडे) की तरह भी इस्तेमाल किया।

उन्हीं बहादुर औरतों में एक मिसाल तनुजा रशीद की है। मूल रूप से बिहार के कटिहार जिला के बरारी प्रखंड स्थित सिक्कट गाँव की रहने वाली तनुजा की कहानी किसी संघर्ष गाथा से कम नहीं। बहुत ही कम उम्र (, 17) में शादी होने से पढाई तो छुटी ही, शादी के चौथे ही साल पति की असामयिक मृत्यु ने उन्हें दोराहे पर ला खड़ा किया।

जब उनकी उम्र अपने होशो हवास में दुनिया को जानने, समझने की हुई तो वे ऐसे दुर्भाग्य का शिकार हो गयीं जिसने उनके सारे अरमान और सपने लगभग मिटा दिये। अब वे एक निराश्रित होकर ससुराल में अपनी जिंदगी काट रही थीं। उन दिनों को याद करती हुई तनुजा बताती हैं, -“मैं हमेशा से अपनी जिंदगी किसी मकसद के लिए जीना चाहती थी, समाज की बेहतरी में योगदान करना चाह रही थी।

लेकिन वक़्त के इस मोड़ पर मैं असहाय हो रही थी। लेकिन मेरा जज्बा अभी जिंदा था और उसीकी बदौलत मैंने अपने सपनों को साकार करना शुरू किया। मैंने बच्चों को ट्यूशन देना शुरू किया। किसी से जबरदस्ती कोई पैसा नहीं मांगा जितना मिला रख लिया। फिर कुछ दिनों बाद एक स्कूल में पढाना शुरू किया और साथ ही अपनी पढाई भी शुरू कर दी। ”

इन तकलीफ देह दिनों में उन्होंने ससुराल की यंत्रणाएँ सहीं, उर्दू शिक्षक की परीक्षा तो पास कर ली लेकिन ससुराल वालों की नपसंदगी की वजह से मिली हुई सरकारी नौकरी छोड़ने को मजबूर हुईं। यहाँ से उनकी जिंदगी में असली बदलाव आना शुरू हुआ। वे मायके चली आईं और लड़कियों को जागरूक, आर्थिक रूप से संपन्न करने के अपने मिशन को अपनी जिंदगी का लक्ष्य बना लिया।

ट्यूशन और स्कूल की कमाई से कुछ पैसे बचाकर उन्होंने एक सिलाई मशीन खरीदा और आसपास की बच्चियों को निःशुल्क सिलाई का प्रशिक्षण देना शुरू किया। कुछ ही महीनों में उनके पास दर्जनों लड़कियां आने लगीं तो अब मशीन की कमी उनके आड़े आ गयी। इसके लिए उन्होंने अपने समाज के लोगों से चंदा मांगकर मशीनें खरीदीं।

जिन गांवों से लड़कियों को उनके माँबाप दूर के गाँव में नहीं जाने देते थे उन गांवों में तनुजा खुद पहुंचकर उन्हें कटाई, सिलाई में प्रशिक्षित करने लगीं। इसी बीच तनुजा ने खुद ब्यूटिशियन का प्रशिक्षण लिया और अब लड़कियों को मेहंदी, दुल्हन मेक अप आदि कामों में भी प्रशिक्षित कर उन्हें आर्थिक रूप से स्व निर्भर बनाया। लगभग एक साल की इस कड़ी मेहनत और लगन से तनुजा ने आत्मनिर्भर लड़कियों की बड़ी जमात तैयार कर दी, ये ऐसी लड़कियां हैं जो आत्मविश्वास से लबरेज हैं और हर चुनौती से जूझने को तैयार हैं।

कटिहार और उसके आसपास के जिलों में तनुजा आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। महिला अधिकारों और नारी सशक्तिकरण की मुखर आवाज तनुजा ने गरीब, असहाय लोगों के को वस्त्र और भोजन उपलब्ध कराने की मुहिम भी छेड़ी है। इसके लिए वे लोगों से पुराने कपड़े और भोजन सामग्री चंदे के रूप में इकट्ठा कर उनका वितरण करती हैं। सामाजिक कुरीतियों -दहेज, बाल विवाह, घरेलू हिंसा, छुआ छूत आदि के खात्मे के लिए भी वो सतत संघर्षरत हैं। दर्जनों पीड़ितों को उन्होंने अब तक न्याय दिलाने की सार्थक पहल की है।

अपने कार्यों को व्यवस्थित रूप देने के लिए तनुजा ने हाल ही में grow and shine welfare society नामक संस्था की स्थापना की है। इसके माध्यम से वे सामाजिक बदलाव की मुहिम को चहुंमुखी रफ्तार देना चाहती हैं। बकौल तनुजा, -“मैं नहीं चाहती कि कोई भी लड़की हालात से मजबूर होकर जुल्म सितम सहे और एक बोझिल जिंदगी दूसरों पर निर्भर होकर गुजारे।

हमारा इलाका काफी पिछड़ा है, शिक्षा, जागरूकता की बहुत कमी है। मुस्लिम समाज गरीबी की वजह से तंग तबाह है। ऐसे में लड़कियों, महिलाओं की बेहतरी के लिए काम करना बहुत चुनौतीपूर्ण है लेकिन मुझे खुद पर और समाज के अच्छे लोगों पर पूरा भरोसा है कि सबकी मदद से हालात बहुत बेहतर होंगे।

अपने सामाजिक कार्यों के लिए तनुजा को कई बड़े सम्मान और पुरस्कार तो मिले ही हैं, सरकारी तौर पर भी उन्हें खूब प्रशंसा मिली है आज तनुजा महिलाओं पर यौन उत्पीड़न खत्म करने के लिए बनी सरकारी कमिटी की सदस्य बनाई गयी हैं।

बिहार के सुदूर इलाके में सामाजिक जड़ता को तोड़ने की जिस महान कार्य को तनुजा अंजाम दे रही हैं वो वाक़ई समय की शिला पर अपनी मुकम्मल छाप छोड़ ही रहा है साथ ही साथ इस बहादुर महिला की निः स्वार्थ समर्पित प्रयासों से आज पूरा समाज सकारात्मक परिवर्तन की इस यात्रा में सहभागी भी बन रहा है।