मज़हबी देश को जवाब है CAA: बीजेपी

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भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय प्रवक्ता व सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) की जरूरत का सवाल पूछने वालों को जवाब देते हुए कहा कि नागरिकता संशोधन कानून हमारे संविधान की भावना की अभिव्यक्ति है और यह हमारे क्षेत्र की मजहबी हुकूमतों को लोकतांत्रिक भारत का जवाब है।

 

खास खबर पर छपी खबर के अनुसार, भाजपा के सीएए को लेकर चलाए जा रहे जन जागरण अभियान के तहत यहां संवाददाताओं से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि लोग पूछते हैं कि नागरिकता संशोधन कानून की जरूरत क्या थी?

सवाल करने वालों को यह समझना चाहिए कि भारत एक वैश्विक महाशक्ति है, क्षेत्रीय महाशक्ति है।

एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य होने के नाते हमारा यह कर्तव्य है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में जहां-जहां, जो-जो लोग धार्मिक प्रताडऩा के शिकार हो रहे हैं, उन्हें संरक्षण दिया जाए।

यह कानून हमारे संविधान की भावना की अभिव्यक्ति है और यह हमारे क्षेत्र की मजहबी हुकूमतों को लोकतांत्रिक भारत का जवाब है।

डॉ. त्रिवेदी ने सीएए को लेकर भडक़ी हिंसा पर दुख जताते हुए कहा कि सीएए के विरोध में जिस तरह की हिंसा, आगजनी, तोडफ़ोड़ और राष्ट्रीय मर्यादा को तार-तार करने वाले काम हो रहे हैं, वह खेदजनक है। जो लोग इस कानून का विरोध कर रहे हैं, उनमें तीन तरह के लोग शामिल हैं।

पहले, वे राजनीतिक दल हैं जो सत्ता से बाहर हो चुके हैं और किसी भी कीमत पर फिर सत्ता में वापसी चाहते हैं, चाहे इसके लिए कुछ भी अनैतिक क्यों न करना पड़े।

दूसरी, वे राष्ट्रविरोधी और हिंसक ताकतें हैं, जो विदेशों से संचालित होती हैं। तीसरे, ऐसे नेता हैं जो मोदी की लोकप्रियता से ईष्र्या में जल रहे हैं। कोई भी बात हो, उन्हें तो मोदी का विरोध करना ही है।

त्रिवेदी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि ये तीनों तरह के लोग जो काम कर रहे हैं, वे देश की एकता, अखंडता और सामाजिक सौहाद्र्र को ध्वस्त करने वाले हैं।

कांग्रेस सहित अन्य दलों को दलित विरोधी करार देते हुए डॉ. त्रिवेदी ने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के बाद पाकिस्तान से आए जिन लोगों को भारत की नागरिकता मिलनी है, उनमें से 90 प्रतिशत दलित हैं।

लेकिन यह दुखद है कि स्वयं को दलितों का मसीहा बताने वाले नेता और राजनीतिक दल भी इसका विरोध कर रहे हैं। डॉ. त्रिवेदी ने कहा कि यह पहला मौका नहीं है, जब पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यकों के बारे में सोचा गया हो।

देश के विभाजन के समय सितंबर, 1947 में महात्मा गांधी ने कहा था कि जो हिंदू, सिख, पाकिस्तान से आना चाहते हैं, उन्हें शरण देना ही नहीं, बल्कि इनकी आजीविका का प्रबंध और इन्हें जीवन स्तर सुधारने का अवसर देना भारत सरकार का प्रथम कर्तव्य है।