बीजेपी नेता ने मदरसे को मुस्लिम लीग की विरासत बताया!

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असम सरकार राज्य में सरकार की ओर से चलाए जा रहे सभी मदरसों और संस्कृत विद्यालयों को बंद करने जा रही है। इस सिलसिले में अधिसूचना नवंबर में जारी की जाएगी।

 

डेली न्यूज़ पर छपी खबर के अनुसार, असम के शिक्षा मंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने कहा कि मदरसे देश की आजादी से पहले के काल में खोले गए थे। ये ‘मुस्लिम लीग’ की विरासत हैं।

 

शिक्षा मंत्री ने कहा कि इनमें से कुछ मदरसे 50 साल से अधिक पुराने हैं और सर सैयद मोहम्मद सादुल्ला की विरासत हैं, जो ब्रिटिश शासन के तहत असम के पहले प्रधानमंत्री थे। असम में मुस्लिम लीग सरकार ने तब इन मदरसों की स्थापना की थी।

 

असम के शिक्षा मंत्री हिमंत बिस्व सरमा कहा कि तब कुछ ऐसे मदरसे थे, जो बाद में कांग्रेस सरकारों के शासनकाल में संख्या में बढ़े। आज उनमें से 610 हैं और 300 अन्य रजिस्ट्रेशन की प्रतीक्षा में हैं।

 

अगर हमने इन्हें बंद करने का फैसला नहीं लिया होता तो इनकी संख्या अब तक लगभग 1,000 हो जाती। उन्होंने आगे कहा कि राज्य इन 610 मदरसों पर सालाना 260 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है।

 

सर सैयद मोहम्मद सादुल्ला की अगुवाई वाली असम प्रांतीय मुस्लिम लीग 1937 और 1938, 1939 और 1941 और 1942 से 1946 के बीच राज्य में सत्ता में रही।

 

राज्य के शिक्षा मंत्री ने कहा कि राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड को भंग कर दिया जाएगा और सरकार की ओर से संचालित सभी मदरसों को उच्च विद्यालयों में तब्दील कर दिया जाएगा।

 

मौजूदा छात्रों को नियमित छात्रों के तौर पर नये सिरे से दाखिले लिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि अंतिम वर्ष के छात्रों को उत्तीर्ण होकर वहां से निकलने की अनुमति दी जाएगी, लेकिन इन स्कूलों में अगले साल जनवरी में प्रवेश लेने वाले सभी छात्रों को नियमित छात्रों की तरह पढ़ाई करनी होगी।

 

मंत्री ने कहा कि संस्कृत विद्यालयों को कुमार भास्करवर्मा संस्कृत विश्वविद्यालय के सुपुर्द कर शिक्षण और अध्ययन केन्द्रों में तब्दील किया जाएगा, जहां भारतीय संस्कृति, सभ्यता और राष्ट्रवाद का अध्ययन कराया जाएगा।

 

उन्होंने कहा कि यह कदम इसलिए उठाया गया है, ताकि इन छात्रों को भी असम माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सेबा) के तहत नियमित शिक्षा मिल सके। सरमा ने कहा कि हालांकि उन्हें बोर्ड परीक्षा में शामिल होने वालों के समान माना जाता है।

 

जानकारी के मुताबिक, मदरसों और संस्कृति विद्यालयों से पढ़ाई करने वाले छात्रों को नियमति विद्यालयों के समान भारांश (वेटेज) दिया जाना 1990 के दशक में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने शुरू किया था और तब से यह जारी था।

 

मंत्री से जब पूछा गया कि क्या यह फैसला अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर लिया गया है, तो उन्होंने कहा कि यह चुनावी मुद्दा कैसे हो सकता है।

 

हम केवल सरकार की ओर से संचालित मदरसों को बंद कर रहे हैं, न कि निजी मदरसों को। सरमा ने कहा कि असम में सरकार की ओर से संचालित 610 मदरसे हैं, जिन पर सरकार के सालाना 260 करोड़ रुपये खर्च होते हैं।