निर्भया के दोषियों को फांसी: दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में किया गया पोस्टमार्टम!

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निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्याकांड के चारों दोषियों को तिहाड़ जेल में शुक्रवार सुबह ठीक 5.30 बजे फांसी दे दी गई।

 

इसके साथ ही तिहाड़ में पहली बार एक साथ चार लोगों को फांसी दी गई है। इन चारों दोषियों को दुष्कर्म के एक मामले में फांसी की सजा दी गई। निर्भया के दोषियों को अदालत द्वारा दिए गए मृत्युदंड के फैसले को क्रियान्वित करने का काम पवन जल्लाद ने किया।

 

खास खबर पर छपी खबर के अनुसार, पवन का परिवार कई पीढ़ियों से जल्लाद का काम करता आ रहा है। पवन के पर-दादा लक्ष्मण, दादा कालू जल्लाद और पिता मम्मू जल्लाद भी फांसी की सजा को क्रियान्वित करने का काम किया करते थे।

 

डॉक्टरों ने चारों दोषियों के शवों को पोस्टमार्टम कर दिया है। अब थोडी देर में परिजनों को शव सौंप दिया जाएगा।

 

चारों दोषियों के शवों का पोस्टमार्टम के लिए दीनदयाल उपाध्याय हॉस्पिटल भेज दिया गया है। वहां पांच सदस्यीय मेडिकल टीम पोस्टमार्टम करेगी। इसके बाद शवों को परिजनों को सौंप देंगे।

 

पवन ने चार दोषियों को एक साथ फांसी पर लटकाकर आजाद भारत में तिहाड़ जेल में हुई फांसियों को लेकर अपना नाम इतिहास में दर्ज करा लिया है।

 

यहां एक ही अपराध के लिए चार दोषियों को एक साथ फांसी देने का यह रिकॉर्ड अब पवन के नाम है। वहीं, डीजी जेल दोषियों की फांसी से पहले 24 घंटे तक जागते रहे और जेल के भीतर ही मौजूद रहे।

 

जेल नंबर तीन के सुपरिटेंडेंट सुनील, एडिशनल आईजी (जेल) राजकुमार शर्मा और जेल के लीगल ऑफिसर पूरी रात जागते रहे। दूसरी ओर फांसी के बाद पवन जल्लाद को कड़ी सुरक्षा के बीच तिहाड़ जेल से मेरठ के लिए रवाना कर दिया गया है।

 

हालांकि, भारत में यह पहली बार नहीं है, जब चार दोषियों को एक साथ फांसी की सजा दी गई हो। इससे पहले भी देश में चार लोगों को पुणे की यरवदा जेल में एक साथ फांसी दी जा चुकी है।

 

27 नवंबर 1983 को जोशी अभयंकर मामले में दस लोगों का कत्ल करने वाले चार लोगों को एक साथ फांसी दी गई थी।

 

गौरतलब है कि जनवरी 1976 और मार्च 1977 के बीच पुणे में राजेंद्र जक्कल, दिलीप सुतार, शांताराम कान्होजी जगताप और मुनव्वर हारुन शाह ने जोशी-अभयंकर केस में दस लोगों की हत्याएं की थीं।

 

ये सभी हत्यारे अभिनव कला महाविद्यालय, तिलक रोड में व्यावसायिक कला के छात्र थे, और सभी को 27 नवंबर 1983 को उनके आपराधिक कृत्य के लिए एक साथ यरवदा जेल में फांसी दी गई थी।