कोटा के कोचिंग विद्यार्थी घर जा सकते हैं। उनके लिए यूपी सरकार 300 बसों की व्यवस्था कर रही है (देखें नीचे दूसरा चित्र)। लेकिन मज़दूरों के लिए बसें नहीं चलाई जा सकतीं। उनको आना है तो पैदल आएँगे, सड़कों पर लाठियाँ खाएँगे, सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर ज़िंदा बचे तो शायद घर पहुँच जाएँगे।
252 buses for free for the rich: Nothing except lathis for starving migrant workers – another brutal reminder of how BJP has all along benefitted rich cronies at the expense of the many who need essentials. They bailed out rich borrowers by ₹7.76 lakh crores – ₹0 for the poor pic.twitter.com/nimjQWe0qU
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) April 18, 2020
कोटा के कोचिंग छात्रों के प्रति इस अनुकंपा के दो कारण हैं। पहला – लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने उन छात्रों के लिए पहल की है (नीचे पहली ख़बर पढ़ें) क्योंकि वे उनके चुनाव क्षेत्र से आते हैं। दूसरा, वे मध्य और उच्च मध्य वर्ग से आते हैं और अपनी बात सरकार और मीडिया तक पहुँचाने की क्षमता रखते हैं।
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ध्यान दीजिए। मध्य और उच्च मध्य वर्ग के लोग आज बेहतर स्थिति में हैं। वे अपने बच्चों को ऑनलाइन पैसा ट्रांसफ़र कर सकते हैं। उन बच्चों के लिए कोटा में रहना उतना मुश्किल नहीं है जितना किसी मज़दूर के लिए किसी शहर में रहना। मज़दूरों के पास न काम है, न पैसा है, न ही रहने का ठिकाना। लेकिन ओम बिरला या दूसरे मंत्रियों को उनकी चिंता नहीं है।सरकारी पक्षपात और भेदभाव का इससे बेहतर उदाहरण क्या होगा। और प्रधानमंत्री कहते हैं कि उनको ग़रीबों की सबसे ज़्यादा चिंता है।