नागरिकता क़ानून: बिहार का गया शहर बना एक और ‘शाहीन बाग़’

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शाहीन बाग़। यानी नागरिकता क़ानून के विरोध की पहचान। शाहीन बाग़ यानी बुर्के और घूँघट में भी महिलाओं का सामने आना। सरकार की बेहिसाब ताक़त का सामना करना। कड़कड़ाती ठंड में भी डटे रहना। शालीनता से प्रदर्शन। न तो हिंसा और न ही उकसावे की भाषा। बस, एक ही ज़िद। नागरिकता क़ानून वापस लो। ज़िद कि ‘अमित शाह एक इंच पीछे नहीं हटेंगे तो हम आधा इंच भी नहीं’। वैसे, शाहीन बाग़ तो दिल्ली में है, लेकिन शाहीन बाग़ वाला ऐसा प्रदर्शन देश में कई और जगहों पर चल रहा है। लेकिन उन पर कैमरे की नज़र नहीं है। वैसे, दिल्ली के शाहीन बाग़ पर भी मुख्य धारा के मीडिया की वैसी रिपोर्टिंग न के बराबर ही है। लेकिन प्रदर्शन की तसवीर बरबस ही आंदोलन जैसी है। तो क्या शाहीन बाग़ एक आंदोलन की ज़मीन तैयार कर रहा है?

शाहीन बाग़ से जिस प्रदर्शन की शुरुआत हुई वह एक के बाद एक शहर में फैलते जा रहा है। दरअसल, शाहीन बाग़ के प्रदर्शन में बात ही कुछ ख़ास है। संविधान निर्माता डॉ. आम्बेडकर, ज़ाकिर हुसैन, महात्मा गाँधी, अबुल कलाम आज़ाद, अशफाकउल्ला ख़ान की तसवीरें लगी हैं। इनकलाब ज़िंदाबाद के नारे हैं। संविधान की प्रस्तावना लिखी हुई टंगी है। तिरंगा झंडा है। स्वयंसेवक प्रदर्शन की व्यवस्था संभालने में लगे हैं। भड़काऊ बयानबाज़ी, पोस्टर या अन्य सामग्री नहीं। कोई अराजक तत्व प्रदर्शन को हिंसात्मक न बना दे, इसके लिए भी वॉलिंटियर्स लगे हुए हैं। ग़जब का प्रदर्शन। क़रीब एक महीना हो गया और यह शांतिपूर्ण तरीक़

कैमरे से दूर गया में धरना

गया में क़रीब दो हफ़्ते से प्रदर्शन चल रहा है। शहर के शांति बाग़ इलाक़े में हो रहे इस धरने में सैकड़ों लोग शामिल होते हैं। धरना स्थल पर प्रवेश मार्ग की एक तरफ़ महात्मा गाँधी की तसवीर है तो दूसरी तरफ़ आम्बेडकर की तसवीर। बीच में तिरंगा झंडा फहरा रहा है। लोग बीच-बीच में इन्क़लाब ज़िंदाबाद और संविधान ज़िंदाबाद के नारे लगते रहते हैं। हालाँकि यह प्रदर्शन संविधान बचाओ मोर्चा की ओर से आयोजित किया गया है लेकिन इसमें महिलाओं की बड़ी भागीदारी है। इसमें विपक्षी दलों के कई नेता भी अलग-अलग समय पर शामिल होने आते रहे हैं।

‘टीओआई’ की रिपोर्ट के अनुसार रविवार को प्रदर्शन के दौरान स्नातक में पढ़ने वाली छात्रा बिलक़िस निशत के भाषण पर तब ख़ूब तालियाँ बजीं जब उन्होंने कहा, ‘अपने भारत की हिफाज़त को उतर आए हैं, देख दिवाने शहादत पे उतर आए हैं’।

रिपोर्ट के अनुसार बिलक़िस और मरियम फरहाद के अलावा, गया कोर्ट में वकील पूनम कुमारी, गृहिणी राजेश्वरी देवी प्रदर्शन में अलग-अलग कारणों से आम तौर पर हर रोज़ आती हैं। पूनम कहती हैं कि संविधान निर्माता आम्बेडकर के विचार से खेला जा रहा है। राजेश्वरी देवी कहती हैं कि उनके पास कोई दस्तावेज़ नहीं है वह कैसे राष्ट्रीयता सिद्ध कर पाएँगी।

नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों में महिलाओं का बढ़चढ़ कर भाग लेना, शाहीन बाग़ जैसे प्रदर्शन को जारी रखना और इसका लगातार बढ़ते जाना कोई सामान्य बात नहीं है। यह समाज में बदलाव की कहानी भी है। यह महिलाओं की जागरूकता की कहानी है। समाज में हमेशा पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण हावी रहा है। लगता है कि महिला सशक्तीकरण नाम के लिए ही हुआ है। चाहे वह हिंदू महिलाओं का मामला हो या मुसलिम महिलाओं का। लेकिन महिलाएँ अब सड़कों पर आ रही हैं। कठपुतलियों की तरह नहीं। आज़ाद आवाज़ बनकर। उन्हें पता है कि नागरिकता क़ानून, एनआरसी और एनपीआर से सबसे ज़्यादा महिलाएँ ही प्रभावित होंगी। वह अपने हक़ के लिए लड़ रही हैं और दूसरे लोग भी उसमें जुड़ते जा रहे हैं। ऐसे जैसे आंदोलन बढ़ रहा हो।