हिंदुस्तान और इस्लामी दुनिया की जानी पहचानी शख्सियत और दिल्ली माइनरिटी कमीशन के चेयरमैन डाक्टर जफरुल इस्लाम के खिलाफ़ दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने 30 अप्रैल को ताजीरात हिंद (जाबता फौजदारी की धाराआें 124 अ (बागियाना सरगर्मी और 153 अ (फिर्का वाराना नफ़रत फैलाना वगैरा के तहत एक केस दर्ज किया है, जिस पर मानव अधिकारों के संगठनों और सैंकड़ों जाने माने लोगों ने सख़्त प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पुलिस ने यह कार्यवाही डाक्टर साहब के एक ट्वीट पर ट्रोल के बाद की है, शुरू में भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा का टवीट आया। लगता है कि पुलिस की इस कार्रवाई का मक़सद मुस्लिम विरोधी सोच की मुँह भराई है और सच्चाई की आवाज़ को दबाना है।
व्यक्तित्व
डाक्टर साहब मदरसातुल इस्लाह सराय मीर, नदवतुल उलमा लखनऊ और जामिया अज़हर, क़ाहिरा में पढ़े हैं। उन्होंने मानचेस्टर यूनीवर्सिटी, बर्तानिया से इस्लामियात में पीएचडी किया। अरबी और अंग्रेजी में कई बड़ी किताबों के लेखक, प्रसिद्ध अख्बार ’मिल्ली गज़ट’ समेत कई मेगज़ीन्स के सम्पादक रहे हैं। सय्यद शहाबुद्दीन के समय में मुस्लिम मज्लिस मुशावरत के कार्यकारी सदर और बाद में दो मुद्दत सदर रहे। बेशुमार आलमी कॉन्फ्रेंसों और सीमीनारों में शिरकत की। देश और विदेशों के लिबरल बुद्धिजीवियों, लोकतांत्रिक मूल्यों के मानने वालों, साम्प्रदायिक सौहार्द क ध्वजावाहक व्यक्तित्वों और समाजिक कार्यकर्तओं में सम्मान से देखे जाते हैं।
उनकी एक बात जो कई बार खटकती है, यह है कि अवसरवादिता को किनारे रख कर जो उनको ठीक लगे साफ साफ कह देते हैं। यह बात पिछले तीन साल में, जब से वह दिल्ली माइनरिटी कमीशन के चेयरमैन हैं, खूब उभर कर सामने आई है और सत्ताधारियों की आँखों में खटकी है। चुनांचे उनके खिलाफ केस दर्ज होने की खबर मिली तो हैरानी नहीं हुई।
कानून की दो धाराएं
ज़फर साहब के खिलाफ केस दो धाराआें के तहत दर्ज हुआ है। पहली फौजदारी क़ानून की वह धारा है जिस को अंग्रेज शासकों ने आज़ादी के आन्दोलन को कुचलने के लिए 1880 में में जोडी थी। खुद फौजदारी का यह क़ानून 1857 में हिंदुस्तान की आज़ादी की तहरीक को बेरहमी से कुचलने के बाद 1862 में लागू़ किया था। इस में यह धारा 124 अ खास तौर से ब्रिटिश सामराज्य के खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने और सामराज्य की हिफाजत के लिए दाखिल की गई, जिसके तहत गांधी जी और लोकमान्य तिलक जैसी लीडर भी मुजरिम बना कर जेल भेजे गए। इस दफा के मुताबिक, अगर कोई आदमी सरकार के खिलाफ कुछ लिखता या बोलता है या उसकी ताईद करता है, या किसी कौमी निशानी का अपमान करता है तो उसपर बगावत, गद्दारी ;ेमकपजपवदद्ध का केस चलाया जाएगा। मुजरिम करार दिए जाने पर तीन साल से आजीवन कै़द की सज़ा दी जा सकती है। उसका पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया जाएगा, वह किसी संवैधानिक या सरकारी पद पर काम नहीं कर सकेगा।
यह कानून अगरचे अभी तक ज़ाबता फौजदारी का हिस्सा है, लेकिन संविधान की आत्मा और उसके शब्दों़ से टकराता है। हमारा संविधान विचारों की आज़ादी और हुकूमत से सवाल का हक़ देता है। यह कानून सरकार की आलोचना को बग़ावत कहता है। हमने आज़ादी के बाद ब्रिटिश सामराज्य की जगह कांग्रेसी सामराज्य और 2014 मैं भाजपाई सामराज्य कायम नहीं किया था। बल्कि 26 जनवरी 1950 को एक लोकतांत्रक राज्य कायम किया है। सामराजयी और लोकतांत्रिक राज्य में फर्क यह है कि सामराजी हुकूमत जाबिर, ज़ालिम और अपने को बचाने के लिए इन्सानों की क़ातिल हो सकती है, जब कि जम्हूरी हुकूमत अवाम को उत्तरदायी होती है। इस का मतलब यह है कि हर शख़्स हुकूमत पर आलोचना करने और उससे सवाल करने के लिए आज़ाद है।
इस आजादी का गला घोंटा जाए तो हर नागरिक का फर्ज है कि बगुला भगत न बन जाए बल्कि अपनी आवाज़ उठाए। डाक्टर जफरुल इस्लाम खान यही कर रहे हैं, मगर इस आवाज़ को दबाने की साज़िश की जा रही है। यह दब गई तो हजारों का हौसला पस्त हो जाएगा और उन पर वही भय छा जाएगा जो डिक्टेटरशिप में होता है, जो जून 1975 में लागू एमरजेंसी में हमने देखा। खेद की बात यह है, एक तरफ वह वे लोग आज़ाद हैं जो एक अल्पसंख्यक वर्ग, एक राजनीतिक दल, एक माँ जैसी बुजुर्ग महिला और एक 75 साल के राष्ट्र हितेषी के खिलाफ उलटा सीधा बकते हैं।
एक ऐसे व्यक्ति को जो लाखों गरीब मजदूरों पर आरोप लगाए, बुजुजर्ग महिला का अपमान करने को सहन किया जाता है, एक पूरे वर्ग के खिलाफ दुष्ट भावना फेला सकता है, लेकिन किसी ने सरकार और उस की गोद में पलने वालों पर उंगली उठाई तो उस पर गद्दारी का इल्ज़ाम लगा दिया? क्या ऐसा ही होता है राम राज? हरगिज नहीं
यह एफ आई आर
मासूम मुरादाबादी ने सही सवाल किया है, आखि़र डाक्टर जफर उल-इस्लाम खान का कुसूर क्या है? लेकिन आगे बढ़ने से पहले दफ़ा 153 अ को और देख लें। यह धारा कहती है, मज़हब, नसल, जन्म स्थान, रिहाइश, बोली वगैरा की आधार पर किन्ही दो समूहों के बीच जो आदमी दुश्मनी और नफ़रत फैलाएगा, तो पाँच साल तक की सजा होगी। डाक्टर जफर उल-इस्लाम खान के खिलाफ एफ आई आर वसंत कुंज के एक नागरिक की शिकायत पर दर्ज की गई है, जिसमें कहा गया है कि डाक्टर खान का ट्वीट जान बूझ कर, किया गया भडकाई, और बाग़ियाना है। नीयत जान-बूझ कर समाज में मन मिटाओ पैदा करना और फूट डालना है। इस टवीट में उन लोगों का सचेत किया गया है जो मुस्लिम विरोधी प्रचार करते हैं जिसका प्रभाव अब हमारे विदेशी सम्बंधों पर भी पड रहा है।
तो साहब, हमारी हुकूमत की इंसाफ पसंदी और दिल्ली पुलिस की फर्ज शनासी देखिए। एक नागरिक ने शिकायत की तो तत्काल डाक्टर खान के खिलाफ केस दर्ज हो गया, लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 मार्च को कहा कि उन भाजपा लीडरों के खिलाफ केस दर्ज किया जाए जिन्हों ने दो साम्प्रदायिक नफरत के ब्यान दिए हैं, जिस पर आज तक कुछ नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने यह दलील दी गई कि अभी उचित समय नहीं। यह बताने की जरूरत नहीं खान के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज क्यों हो गई और कैमरे पर ’गोली मॉरो सालों को’ ’मस्जिदें गिरा देंगे, मां बहनों की आबरू लूट ली जाएगी जैसे बयान देने वालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई हालाँकि इन का नतीजा ट्रम्प की मौजूदगी में दिल्ली में हिंसा में देख लिया गया।
जिस व्यक्ति ने यह शिकायत दर्ज की वह हड्डियों के एक बडे सर्जन डाक्टर कौशल कुमार मिश्रा हैं, जो भाजपा के लिए वह काम करते हैं जो पार्टी ख़ुद अपने प्लेटफार्म से नहीं कर सकते। जैसे एस सी, एस टी और ओ बी सी रिजर्वेशन के खिलाफ माहौल बनाने के लिए आन्दोलन और अदालती कार्रवाई।
शतरंज के खेल में जो मुहरे होते हैं वह ख़ुद नहीं चलते। उनको चलाने वाला कोई और हाथ होता है। इस एफ आई आर के साथ भाजपा कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के एल जी से मांग की कि डाक्टर खान को हटा दिया जाए। हाईकोर्ट में एक पिटीशन भी दाखि़ल भी कर दी।
वास्तव मं डाक्टर खान के खिलाफ यह कार्रवाई मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत कर उसी मुहिम का हिस्सा जिसकी पूरे जगत में चर्चा है और कई महत्वपूर्ण संगठनों ने जिस पर पकड की है। प्रसिद्ध सामाजिक र्काकर्ता रवी नायर ने ठीक ही कहा की है कि डाक्टर खान ने पिछले तीन साल में अल्पसंख्यकों के खिलाफ कई साजिशों को बेनक़ाब किया है। यह केस एक साजिश है ताकि जुलाई में उनकी अवधि पूरी होने पर दूसरी मुद्दत के लिए नियुक्ति न मिले। यह बात तो जग जाहिर है कि दिल्ली पुलिस यह सब कुछ ख़ुद नहीं करती। बल्कि उसके लिए जिम्मेदार सरकार है। पुलिस इसी के अंडर में है।
कमीशन के कुछ काम
दिल्ली असम्बली चुनाव से कुछ पहले भाजपा एम पी प्रवेश वर्मा ने एलजी को लिखा कि दिल्ली मे ं68 मस्जिदे, कब्रिस्तान, मदरसे और इमाम बाड़े सरकारी ज़मीनों पर नाजायज़ कबजे करके क़ायम हैं। इसपर अल्प संख्यक कमीशन ने फौरन एक जांच कमेटी बिठाई जिसने बड़ी मुस्तेदी से तफसीली रिपोर्ट दस्तावेजात के साथ तैयार कर दी और कमीशन ने एलजी को बता दिया कि वर्मा का इल्जाम झूठा है।
दिल्ली में मुस्लिम विरोधी हिंसा के बाद डाक्टर खान ने प्रभावित इलाकों का दौरा किया और तथ्यें के आधार पर कहा कि यह हिंसा, जिसमें 40 मुस्लिम और 13 दूसरे लोग मारे गए, एक साजिश से हुआ। इसमें बड़ा रोल इन गुंडों का था जो बाहर से लाए गए थे और अल्पसंख्यकों को बेरहमी से निशाना बनाया।
कमीशन ने चेयरमैन डाक्टर खान और सदस्य श्री करतार सिंह कोचर के दस्तखतों से 16 अप्रैल को होम मिनिस्टर अमित शाह को एक खत लिखा जिसकी कापी तमाम राज्य सरकारों को भेजी जिसमें तब्लीगी जमात के हवाले से करोना वायरस के फैलावे के लिए मुस्लिमों को दोषी बनाने की मुहिम पर ध्यान दिलाया गया और उसे बंद कराने का मुतालबा किया गया। इसके अतिरिक्त और भी बहुत से काम है। जाहिर है कमीशन के चेयरमैन की यह ऐसी कार्यवाहियां हैं जो शासकों को अच्छी नहीं लग सकतीं। डाक्टर खान के खिलाफ यह एफ आई आर वास्तव हिन्दुत्वा प्रमियों की ज़ो ज़बरदस्ती, इस्लाम विरोधी प्रोपेगंडे का प्रोत्साहन और उनके खिलाफ उठने वाली आवाज़ को दबाने के लिए की गई है।
अमरीकी रिपोर्ट की ताईद
हुकूमत की इन कार्यवाहियों से उन आरोपों का समर्थन होता है जो धार्मिक आज़ादी के बारे में अमरीकी कमीशन की रिपोर्ट में बताए गए हैं। होना यह चाहीए था कि सरकार इस रिपोर्ट पर ध्यान देती और उन दाग धब्बों को धोती जो सैकूलर, लिबरल हिंदुस्तान की छबि पर लग गए हैं। मगर हो उल्टा रहा है।
रहा यह एतराज कि डाक्टर खान ने हिंदुस्तान में मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा पर उठने वाली एक बाहरी आवाज़ का शुक्रिया अदा किया, तो सवाल यह है कि नागरिकता कानून में हमने जिन तीन देशों के हिन्दुओं से हमदर्दी जताई है, यदि वह हमारी सरकार का शुक्रिया करें तो उनको क्या कहेंगे?
अगर मौजूदा हुकूमत अंग्रेज हुकमरानों की तरह हिंदुस्तानी नागरिकों के संयम और देश प्रेम को प्रास्त करना चाहती है तो उसको जलियानवाला के शहीदों, भगत सिंह, सुखदेव और इशफाकुल्लाह की कुर्बानीयों, टीपू सुलतान, लक्ष्मी बाई के साहस, तिलक, लाला लाजपत राए, गांधी जी, पटेल और नेहरू की जीवनी पढ़ लेनी चाहीए।
सय्यद मंसूर आगा, नई दिल्ली