कोविड-19: एक बार फिर चेतावनी जारी!

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कोरोना महामारी के कारण लागू लॉकडाउन के बाद देश अब अनलॉक की प्रक्रिया से गुजर रहा है।

 

जागरण डॉट कॉम पर छपी खबर के अनुसार, चरणबद्ध तरीके से तमाम प्रतिबंधों से छूट दी जा रही है, लेकिन इसके साथ ही कोरोना महामारी के दूसरे दौर यानी दूसरी लहर की आशंका भी बलवती होने लगी है।

 

भले ही महामारी की दूसरी लहर पूरे देश को अपनी गिरफ्त में न ले, लेकिन सघन व बड़ी आबादी वाले महानगरों को इसका खतरा ज्यादा है।

 

सरकार तो इस संकट से निपटने की व्यवस्था कर ही रही है और जरूरत के अनुरूप उसमें इजाफा भी करेगी, लेकिन आम लोगों को भी अपने स्तर पर एहतियाती कदम उठाने की जरूरत है।

 

सिनेमा हॉल, स्र्वींमग पुल, एंटरटेनमेंट पार्क व थिएटर (मुक्ताकाश को छोड़कर) के अलावा अनलॉक में करीब-करीब सभीसार्वजनिक गतिविधियों की कुछ शर्तों के साथ अनुमति दे दी गई है।

 

इन शर्तों में मास्क पहनना, शारीरिक दूरी, निजी साफ-सफाई शामिल हैं, लेकिन समस्या यह है कि लोग इन एहतियाती उपायों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।

 

सार्वजनिक स्थानों पर शारीरिक दूरी व मास्क पहनने के नियमों का सख्ती से पालन नहीं किया जा रहा है। इसके कारण कोरोना संक्रमण के बढ़ने की आशंका ज्यादा हो गई है।

 

देश में कोरोना मरीजों के रोजाना आने वाले आंकड़े चौंकाने वाले हैं। ऐसा माना जा रहा था कि कोरोना चरम पर पहुंच गया है और जल्द ही मामलों में कमी आने लगेगी, लेकिन, महाराष्ट्र, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल व ओडिशा जैसे राज्यों में कोरोना के पुष्ट मामलों में तेजी से इजाफा महामारी की दूसरी लहर का संकेत देता है।

 

समस्या यह भी है कि कोरोना संक्रमण अब इन राज्यों के ग्रामीण इलाकों में तेजी से फैल रहा है। गत दिनों एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया भी कोरोना की दूसरी लहर की आशंका जता चुके हैं।

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार प्रति एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर की उपलब्धता होनी चाहिए। भारत में 1,596 लोगों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो स्थिति और भी खराब है।

 

वहां तो एक एलोपैथिक डॉक्टर के पास करीब 11 हजार लोगों के इलाज का जिम्मा है। आंकड़े बताते हैं कि कोरोना से पहले ही भारत में पांच लाख डॉक्टरों की कमी थी।

 

आपदा प्रबंधन कानून-2005 के तहत सरकार ने निजी अस्पतालों व प्रतिष्ठानों को कोरोना संक्रमितों के इलाज के लिए अधिगृहीत किया है। हालांकि, आबादी के मुकाबले ये इंतजाम भी नाकाफी हैं।