KOVID-19: सरकार ने राहत के लिए किया बड़ा ऐलान!

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कोरोनोवायरस के प्रसार को रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए राष्ट्रव्यापी बंद के कारण, कई दैनिक ग्रामीण बिना किसी आजीविका के चले गए। इसे ध्यान में रखते हुए, सरकार ने कुछ राहत उपायों की घोषणा की।

 

यहां अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा संकलित राहत उपायों की सूची दी गई है:

लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के तहत लाभार्थियों को तीन महीने तक प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलो अतिरिक्त अनाज मिलेगा। उन्हें तीन महीने के लिए प्रति माह 1 किलो दाल भी मिलेगी।

पीएम किसान योजना के तहत, लाभार्थियों को रु। अप्रैल के 1 सप्ताह के दौरान 2000।

राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी सार्वजनिक या निजी क्षेत्र का नियोक्ता कामगारों को न लौटाए या तालाबंदी के कारण कम वेतन दे।

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत, लाभार्थियों को अप्रैल और जून 2020 के बीच तीन मुफ्त गैस सिलेंडर मिलेंगे।

COVID-19 रोगियों का उपचार करते समय यदि कोई स्वास्थ्य सेवा पेशेवर किसी दुर्घटना से मिलता है, तो उसे रु। मुआवजे के रूप में 50 लाख।

महिलाओं को रु। उनके पीएमजेडीवाई में 500 प्रति माह अगले तीन महीनों के लिए हैं।

NSAP के तहत, पेंशनरों, दिव्यांग और विधवाओं को रु। 1000 दो किस्तों में।

जमींदारों को निर्देश दिया जाता है कि वे एक महीने के लिए प्रवासी श्रमिकों से किराए की मांग न करें।

 

सरकार की तरफ से रोजगार मुहैया करवाने वाले कॉर्पोरेट सैक्टर और फैक्टरियों के मालिकों को लॉकडाऊन दौरान अपने कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के दिए गए निर्देश न तो डिजास्टर मैनेजमैंट एक्ट के नियमों अधीन आते हैं और न ही एपीडैमिक डिजीजिज एक्ट के दायरे में तथा न ही इन निर्देशों को किसी तरह की कानूनी मान्यता हासिल है।

 

नवोदय टाइम्स पर छपी खबर के अनुसार, केन्द्र और राज्य सरकारों ने देश के कॉर्पोरेट सैक्टर को लॉकडाऊन दौरान अपने पक्के कर्मचारियों के अलावा कच्चे और कांट्रैक्ट पर काम कर रहे कर्मचारियों को भी पूरा वेतन देने का निर्देश दिया है।

 

हालांकि यदि मानवता के आधार पर ऐसी बात की जा रही है तो इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि कर्मचारियों को वेतन मिलना चाहिए परन्तु यह वेतन क्या सिर्फ प्राइवेट सैक्टर अदा करेगा या सरकार इसकी अदायगी करेगी, इस पर विचार जरूर होना चाहिए।

 

केन्द्र सरकार ने डिजास्टर मैनेजमैंट एक्ट 2005 के प्रबंधों तले पूरे देश में 14 अप्रैल तक लॉकडाऊन किया है और राज्य सरकारें एपीडैमिक डिजीजिज एक्ट 1897 के कुछ नियमों का इस्तेमाल करके नियम/निर्देश तथा गाइडलाइन जारी कर रही हैं परन्तु अपने कर्मचारियों को पूरा वेतन देने का नियम न तो डिजास्टर मैनेजमैंट एक्ट अधीन है और न ही एपीडैमिक डिजीजिज एक्ट 1897 के नियमों अधीन आता है।

 

आम हालात में कोई भी फैक्टरी मालिक बिना पैसे अदा किए अपने कर्मचारियों की छंटनी कर सकता है और यदि कर्मचारियों को छंटनी पर एतराज हो तो वे इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट के नियमों के अंतर्गत इसे चुनौती दे सकते हैं।

 

इस कानून के कई सैक्शनों के अंतर्गत कर्मचारियों की छंटनी पर उनको मुआवजा देने का नियम है जबकि कई नियम फैक्टरी मालिकों को छंटनी करने से रोकते भी हैं। इस कानून का सैक्शन 2 (केकेके) छंटनी के नियम को परिभाषित करता है।

 

इसके अंतर्गत यदि प्राकृतिक आपदा समय फैक्टरी मालिक छंटनी करता है तो उसे इस कानून की धारा 25-सी के अंतर्गत कर्मचारियों को उनके वेतन का 50 प्रतिशत हर्जाने के तौर पर देना पड़ता है।

 

इसी कानून की धारा 25-एम के अंतर्गत 100 से अधिक कर्मचारियों वाली किसी भी कम्पनी में छंटनी से पहले मंजूरी लेनी पड़ती है। हालांकि प्राकृतिक प्रकोप की हालत में मंजूरी की जरूरत नहीं होती।

 

देश में पैदा होने वाली किसी भी तरह की आपदा पर काबू पाने के लिए डिजास्टर मैनेजमैंट एक्ट 2005 के अंतर्गत नैशनल डिजास्टर मैनेजमैंट अथॉरिटी और स्टेट डिजास्टर मैनेजमैंट अथॉरिटी बनाने का प्रबंध है।

 

इन दोनों समितियों के अधिकार भी कानून के अंतर्गत परिभाषित किए गए हैं। अगर इन अधिकारों को ध्यान के साथ पढ़ा जाए तो यह बात सामने आती है कि अधिकारों के अंतर्गत न तो केन्द्र सरकार को और न ही राज्य सरकार को ऐसा कोई अधिकार दिया गया है जिसके अंतर्गत वे अथॉरिटी कॉर्पोरेट सैक्टर या फैक्टरियों के मालिकों को बिना काम किए भी उनके पास काम कर रहे कर्मचारियों को पूरा वेतन देने का निर्देश जारी कर सकें।

 

कानून के अंतर्गत अथॉरिटी के पास आपदा पर काबू पाने के लिए योजना तैयार करने का अधिकार ही दिया गया है।

 

इसी तरह 1897 दौरान बम्बई (अब मुम्बई) में फैली प्लेग की बीमारी के चलते एपीडैमिक डिजीजिज एक्ट अस्तित्व में आया था और इस कानून का मकसद बीमारी को फैलने से रोकना था।

 

इस कानून के अंतर्गत भी केन्द्र और राज्य सरकारों को बीमारी का प्रसार रोकने के लिए अधिकार दिए गए हैं। इस कानून का सैक्शन 2 केन्द्र और राज्य सरकार को कई तरह की अस्थायी पाबंदियां लगाने के अधिकार देता है।

 

सैक्शन 2 के अंतर्गत यह परिभाषित किया गया है कि सरकार बीमारी की रोकथाम के लिए किस तरह के कदम उठा सकती है परन्तु इसमें भी निजी कर्मचारियों को बिना काम पूरा वेतन देने बारे कोई जिक्र नहीं है।

 

मौजूदा सरकार इन 2 कानूनों को आधार बना कर ही प्राइवेट फैक्टरियों को अपने कामगारों को पूरे पैसे देने का निर्देश दे रही है जबकि यह कानूनी तौर पर सही नहीं है।

 

कोरोना वायरस के संकट के चलते दुनिया भर की सरकारों ने फैक्टरी मालिकों पर पडऩे वाले आॢथक बोझ को ध्यान में रखते हुए बड़े आॢथक पैकेज जारी किए हैं।

 

डेनमार्क की सरकार ने कर्मचारियों को दिए जाने वाले वेतन का 75 प्रतिशत हिस्सा देने की बात कही है जबकि कनाडा ने वेज सबसिडी स्कीम का ऐलान किया है।

 

इंगलैंड की तरफ से भी 80 प्रतिशत तक का वेतन सरकार की तरफ से देने का ऐलान किया गया है। मलेशिया में 4,000 आर.एम. से कम कमाने वाले कर्मचा

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