समाचार चैनलों और अखबार के पन्नों पर आए दिन फतवा को लेकर खबर रहती है। कभी अंग्रेजी गाना न सुनने तो कभी किसी महिला के दूसरे धर्म शादी करने को लेकर मौलवी व इमाम के फतवे की चर्चा शुरू हो जाती है। इन दिनों भी फतवा का मामला चल रहा है । मामला टीएमसी सांसद नुसरत जहां को लेकर है जिसमें दो दिनों से ऐसी ख़बरें चल रही है कि नुसरत जहां की शादी और पहनावे के खिलाफ दारुल उलूम देवबंद ने कहा है कि ऐसा इस्लाम के नियमों के खिलाफ है.
मीडिया के मुताबिक़, देवबंदी उलेमा मुफ़्ती असद कासमी ने कहा, “अभिनेत्री नुसरत जहां को सिर्फ किसी मुसलमान से शादी करनी चाहिए थी. वे फिल्म में अभिनय करने के दौरान इस्लाम के तमाम नियम को ताक पर रख रही थीं, लेकिन गैर-मुस्लिम से विवाह करने का उनका फैसला तो बेहद चौंकाने वाला है. इस्लाम कहता है कि मुसलमान सिर्फ मुसलमान से शादी कर सकता है, किसी और धर्म में नहीं.”
सोशल मीडिया पर और बाकी जगहों पर बहस होने लगीं कि नुसरत जहां के ख़िलाफ़ फतवा जारी हो गया. इस पर बवाल हुआ तो नुसरत जहां ने ट्विटर पर बयान जारी करते हुए कहा,“मैं सभी धर्मों का सम्मान करती हूं. लेकिन मैं अभी भी एक मुस्लिम हूं. और किसी को भी इस पर कमेन्ट नहीं करना चाहिए कि मैं क्या पहनती हूं. आस्था कपड़ों से परे है.”
वहीँ फतवे को लेकर ललनटॉप न्यूज़ वेबसाइट ने मीडिया की पोल खोल दी
ललनटॉप न्यूज़ ने दारुल उलूम देवबंद से बात की, तो उन्होंने कहा कि ऐसा तो कुछ है ही नहीं. पहले दारुल उलूम देवबंद के जनसंपर्क अधिकारी रह चुके अशरफ उस्मानी इस समय प्रशासनिक विभाग के डेवलपमेंट और आर्गेनाईजेशन विभाग के असिस्टेंट इंचार्ज के पद पर कार्यरत हैं. अशरफ उस्मानी काफी गुस्से में बात करते हुए बताते हैं कि हर बयान को दारुल उलूम देवबंद से जोड़ना सही नहीं है. उन्होंने कहा,
“देवबंद ने नुसरत जहां के खिलाफ या उनके नाम से कोई भी फ़तवा जारी नहीं किया है. इस मामले में हमारे नाम से कुछ भी चल रहा है तो देवबंद उसका खंडन करता है.”
अशरफ़ उस्मानी ने कहा कि हर उलेमा या मौलवी का बयान दारुल उलूम देवबंद का आधिकारिक बयान नहीं दे सकता है,
“आजकल चलन है कि किसी भी दाढ़ी और टोपी वाले को पकड़कर उसको देवबंदी उलेमा करार दे दो. लोगों को ये भी नहीं पता कि उलेमा बहुवचन होता है, जबकि आलिम एकवचन होता है. किसी की बात को देवबंद का फ़तवा कह देना सरासर गलत है. किसी को नहीं असल में नहीं पता कि फ़तवा होता क्या है?”
तो फ़तवा होता क्या है?
हमने पहले भी बताया है. आज फिर से बता रहे हैं. “फ़तवा” शब्द सुनते ही मन में आता है कोई आदेश, जिसका पालन करना ज़रूरी है. लेकिन नहीं. ऐसा कुछ नहीं है. आसान भाषा में बताएं तो फ़तवा का अर्थ होता है ‘राय’. और ये राय किसी को भी तब दी जाती है, जब अगला राय मांगने पहुंचता है.
मसलन, आपको अगर लगता है कि किसी का मुस्लिम का हिन्दू धर्म में शामिल करना सही है या गलत? तो आप दारुल उलूम देवबंद को ख़त लिखेंगे. पूछेंगे कि ऐसा करना सही है या गलत? या शादी कर सकते हैं या नहीं?
अब इस प्रश्न का जो जवाब आपको दिया जाएगा? उसे कहा जाएगा फ़तवा. ये फ़तवादारुल उलूम देवबंद की तरफ से दिया जाता है. इस पर मुहर लगती है, दस्तख़त किया जाता है. और दस्तावेज की तरह सम्हालकर रख लिया जाता है. अब तो डिजिटल ज़माना है, ऐसे में फतवे की डिजिटल कॉपी को दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट दारुल इफ्ता पर अपलोड भी किया जाता है.
इस बारे में अशरफ़ उस्मानी ने भी कहा,
“दारुल उलूम देवबंद कभी भी “सुओ मोटो” (यानी स्वतः संज्ञान से) फ़तवा जारी नहीं करता है. आप प्रश्न पूछेंगे तो जवाब दिया जाएगा कि ऐसा करना इस्लाम के मुताबिक़ है या नहीं?”
अशरफ उस्मानी ने आगे कहा,
“लोग हमसे पूछ रहे हैं और पहले भी पूछते रहे हैं कि किसी मुस्लिम को गैर-इस्लाम धर्म से जुड़े व्यक्ति से शादी करनी चाहिए या नहीं? अब इस्लाम में ऐसी राय है तो हम कहते ही हैं कि ऐसा नहीं कर सकते. लेकिन ये सिर्फ एक राय तक सीमित होता है.”
मुद्दा कहां से उठा?
एक मदरसे के संचालक हैं मुफ्ती असद कासमी. कई बार ऐसे दीनी मसलों (मतलब धर्म से जुड़े मसलों) पर अपनी राय देते रहते हैं. देवबंद से तालीम हासिल की है. लेकिन दारुल उलूम देवबंद से मुफ्ती साहब का कोई भी आधिकारिक संबंध नहीं है.
नुसरत जहां के मामले पर मुफ्ती साहब के कई बयान आए.और इन्हीं बयानों से नुसरत जहां के फतवे का मुद्दा उठा. मुफ्ती साहब बताते हैं कि उनके बयानों को फ़तवा बताकर पेश किया गया.
Days after newly elected TMC MP Nusrat Jahan applied sindoor and wore Mangalsutra for the swearing-in ceremony, Deoband clerics have issued a fatwa to the actor turned neta and said that Muslim marry only Muslims. | #NusratVsClerics pic.twitter.com/M6F9SDhcUZ
— TIMES NOW (@TimesNow) June 29, 2019
मुफ़्ती असद कासमी कहते हैं,
“लोगों को पता नहीं कि बयानों को फ़तवा कहा जा रहा है. बयान बयान होते हैं. मैंने कहा था कि मुस्लिम किसी गैर-मुस्लिम से शादी नहीं कर सकता. लेकिन मैंने यह भी कहा है कि ये किसी भी इंसान का ज़्यादती फैसला है. और इस्लाम किसी के ज़्यादती फैसले में दख़ल करने की इजाज़त नहीं देता है.”
अब नुसरत जहां के फ़तवे के ख़िलाफ़ मोर्चेबंदी हो रही है. बयान जारी हो रहे और समर्थन की राजनीति होने की भी खबरें आ रही हैं. लेकिन सच तो यही पता चल रहा कि, अब तक, दारुल उलूम देवबंद ने कोई फ़तवा नहीं जारी किया है.
साभार- ललनटॉप .कॉम