अयोध्या के राम जन्मभूमि-विवादित ढांचा जमीन विवाद मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘यह निजी संपत्ति का विवाद नहीं है। यह काफी विवादास्पद हो गया है। हम मध्यस्थता पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। यहां तक कि अगर केवल 1% मौका है, तो यह किया जाना चाहिए।’
मध्यस्थता के लिए मुस्लिम पक्ष कमोबेस तैयार दिखा, निर्मोही अखाड़े ने भी इसके लिए हामी भर दी है,लेकिन हिन्दू पक्ष इसके लिए तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि पहले इसकी कोशिश हुई थी पर यह असफल रही। कोर्ट अब मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करेगा।
Ayodhya Ram Janmabhoomi-Babri Masjid land dispute case: Supreme Court says it will pass order on next Tuesday on whether the case may be sent for court-monitored mediation to save time. pic.twitter.com/8R7iHb8AeE
— ANI (@ANI) February 26, 2019
कोर्ट ने पक्षकारों से कहा कि वे यूपी सरकार की ओर से दाखिल किए गए अनुवाद को छह सप्ताह मे जांच ले साथ ही इस बीच आठ सप्ताह मे मध्यस्थता के प्रयास किए जाएं।
जागरण डॉट कॉम पर छपी खबर के अनुसार, पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपीलों पर सुनवाई की रूपरेखा तय करेगी।
Supreme Court to make Ayodhya case schedule today https://t.co/uHuD6KA7Uy#AyodhyaHearing pic.twitter.com/Uyt66OWNPP
— Hindustan Times (@htTweets) February 26, 2019
इसके अलावा पूजा अर्चना के मौलिक अधिकार का दावा करने वाले भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी भी मंगलवार को कोर्ट में रह कर अपनी याचिका पर शीघ्र सुनवाई की मांग करेंगे। अयोध्या भूमि अधिग्रहण कानून 1993 को चुनौती देने वाली याचिका भी सुनवाई के लिए कोर्ट के सामने लगी है।
हालांकि विवादित भूमि को छोड़ कर अधिगृहित जमीन का अतिरिक्त भाग भूस्वामियों को वापस लौटाने की अनुमति मांगने वाली केन्द्र सरकार की अर्जी फिलहाल सुनवाई सूची मे शामिल नहीं है। इसका कारण शायद यह है कि वह अर्जी अयोध्या राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक के मुख्य मुकदमें में दाखिल नहीं की गई थी बल्कि पहले से निस्तारित हो चुके असलम भूरे मामले मे दाखिल की गई है, जो कि एक अलग केस है।
इस मामले पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर की पीठ सुनवाई करेगी। इससे पहले कोर्ट अयोध्या राम जन्मभूमि मालिकाना हक मुकदमें से संबंधित अपीलों पर 29 जनवरी को सुनवाई करने वाला था लेकिन जस्टिस एसए बोबडे के उपलब्ध न होने के कारण सुनवाई टल गयी थी। इसके बाद 20 फरवरी को सुनवाई की नयी तिथि 26 फरवरी तय हुई थी।
सोमवार को सुब्रमण्यम स्वामी ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष अपनी रिट याचिका का जिक्र करते हुए गुहार लगाई कि उनकी याचिका पर भी मुख्य मामले के साथ ही मंगलवार को सुनवाई की जाए।
मुख्य न्यायाधीश ने स्वामी से कहा कि वह मंगलवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद रहें। स्वामी ने याचिका में कहा है कि जमीन पर अधिकार से बड़ा मौलिक अधिकार पूजा अर्चना का है। उन्हें अबाधित पूजा अर्चना का अधिकार मिलना चाहिए।
इस बीच शिशिर चतुर्वेदी सहित सात लोगों ने स्वयं को रामभक्त और सनातन धर्म अनुयायी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट मे नयी रिट याचिका दाखिल कर 1993 के अयोध्या भूमि अधिग्रहण कानून को चुनौती दी है। नयी याचिका मे कहा गया है कि संसद को राज्य की जमीन के अधिग्रहण के बारे में कानून पास करने का अधिकार नहीं है। यह कानून हिन्दुओं को अनुच्छेद 25 में प्राप्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
मांग की गई है कि कोर्ट केन्द्र व उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दे कि वह अधिगृहित जमीन पर स्थित मंदिरों विशेषकर राम जन्मभूमि न्यास, मानस भवन, संकट मोचन मंदिर, राम जन्मस्थान मंदिर, जानकी महल और कथा मंडप में स्थिति मंदिरों में पूजा दर्शन व रीतिरिवाज करने से न रोके।
गत 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को भी मुख्य मामले के साथ सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया था। हालांकि बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट इस्माइल फारुकी केस में 1994 में अयोध्या भूमि अधिग्रहण को सही ठहरा चुका है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में रामलला, निर्मोही अखाड़ा और मुस्लिम पक्षकारों में बांटने का आदेश दिया था। रामलला सहित सभी पक्षकारों ने फैसले के खिलाफ कुल 13 अपीलें दाखिल की हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल मामले में यथास्थिति कायम है।
इस बीच मस्जिद को नमाज के लिए इस्लाम का अभिन्न हिस्सा न मानने वाले फैसले की पुनर्समीक्षा की मुस्लिम पक्षों की मांग कोर्ट ने ठुकरा दी थी। गत वर्ष 27 सितंबर के उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि मुख्य मामले की सुनवाई में पहले ही काफी देर हो चुकी है और मामले को अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में सुनवाई के लिए लगाया जाए। उसके बाद जस्टिस दीपक मिश्रा सेवानिवृत हो गए। तब से कई तारीखें लग चुकी हैं, लेकिन नियमित सुनवाई अभी भी शुरू नहीं पाई है।