देश की राजधानी में डॉक्टरों की हड़ताल की वजह से मरीजों को पूरा इलाज नहीं मिला। मरीजों ने दम तक तोड़ दिया। परिजनों का आरोप है कि सोमवार को सफदरजंग अस्पताल में 3 मरीजों की मौत इलाज में कमी की वजह से हो गई। दम तोड़ते मरीजों के परिजनों ने बताई अपनी तकलीफ।
‘यह कैसा शहर है, मेरे बेटे को खा गया। दिल्ली ने मेरे बच्चे को मार दिया। डॉक्टर इसे कहते हैं? मेरे बच्चे का इलाज होता तो बच सकता था, लेकिन डॉक्टरों ने इलाज ही नहीं किया। मेरे बच्चे को खा गए।’ बेटे किशन मुरारी की मौत के बाद रोती-बिलखती मां ने कहा कि अगर प्राइवेट में गए होते तो मेरा बच्चा जिंदा होता।
बड़ी उम्मीद लेकर आए थे, लेकिन यहां के डॉक्टरों ने सब छीन लिया। किशन की मौत से पूरा परिवार सदमे में है। एक तरफ मां बिलख रही है तो दूसरी तरफ बहन। परिजनों ने बताया कि 18 साल का किशन मुरारी अपनी बुआ के साथ गुड़गांव में रहता था।
शनिवार को किशन का ऐक्सिडेंट हो गया था, जिसके बाद उसे सफदरजंग लाया गया था। इमरजेंसी में न्यूरो सर्जरी विभाग में एडमिट था, लेकिन स्ट्राइक की वजह से सही इलाज नहीं हो पा रहा था। परिजनों ने कहा कि हमने डॉक्टरों से रिक्वेस्ट भी की कि किशन को कहीं और रेफर कर दो, लेकिन उन लोगों ने हमारी एक नहीं सुनी।
मीडिया की भीड़ देखकर उसकी बहन ने नाराज होकर कहा कि क्या बार-बार फोटो ले रहे हो? कुछ कर तो पाते नहीं? इस शहर ने मेरे भाई को छीन लिया।
कुछ कर सकते हो तो इलाज शुरू करवा दो, ताकि बाकी लोग बच जाए। बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी किशन का परिवार सोमवार को ही तड़के दिल्ली पहुंचा था। यहां आते ही उन लोगों को किशन की मौत की सूचना मिली।
ब्रेन में पानी भरने की वजह से प्रिंस का इलाज सफदरजंग के न्यूरो सर्जरी में चल रहा था। प्रिंस को पहले चाचा नेहरू अस्पताल में ऐडमिट किया गया था, वहां से सफदरजंग रेफर किया गया। प्रिंस के चाचा राहुल ने बताया कि यहां पर डॉक्टर ने उसके ब्रेन से पानी भी निकाला। लेकिन उसके बाद पता नहीं क्या इलाज कर रहे थे, कुछ बताते ही नहीं थे। जब पूछते थे तो डांट देते थे।
एक बार मैंने डॉक्टर से इलाज के बारे में पूछा तो हमें गाली देने लगे और कहा कि तुम्हारा बच्चा तीन दिन से ज्यादा नहीं बचेगा और दूसरे दिन ही प्रिंस की मौत हो गई। प्रिंस के परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल था। मां रोते-रोते बेहोश हो गई। एक के बाद एक मौत से अस्पताल परिसर में सन्नाटा पसरा हुआ था।
राहुल ने कहा कि परसों वह मुंह हिला रहा था, इशारा कर रहा था। हमें लगा कि बच्चा ठीक हो रहा है। लेकिन जबसे स्ट्राइक हुई, तबसे इलाज एक तरह से बंद ही हो गया था। डॉक्टर तो किसी की सुनते नहीं, हमेशा डांटकर बात करते हैं।
न ही मरीज से मिलने देते हैं। हमने डॉक्टरों की लापरवाही की वजह से बच्चा खोया है। अगर इलाज ठीक से होता तो शायद मेरा बच्चा आज जिंदा होता। परिजनों ने कहा कि यहां की नर्स अच्छी थी, वे ठीक से अपना काम कर रही थीं। लेकिन डॉक्टर किसी की बात नहीं सुन रहे थे।
साभार- ‘नवभारत टाइम्स’