पूर्व सांसद एहसान जाफरी की बेटी ने लिखा श्वेता भट्ट को खत, कहा- लड़ाई के रास्ते में आप बिल्कुल तनहा हैं

   

(2002 के गुजरात दंगे में मारे गए पूर्व सांसद एहसान जाफरी की बेटी निशरीन जाफरी हुसैन ने पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट को एक पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने मौजूदा भारत और उसके लोगों की स्थितियों की नंगी सच्चाई का बयान किया है। उन्होंने कहा है कि लड़ाई के इस रास्ते में आपका कोई साथ नहीं देने वाला है लिहाजा आपको अकेले चलना पड़ेगा। पढ़िए उनका अंग्रेजी में लिखा गया पूरा पत्र जिसे यहां हिंदी अनुवाद करके दिया जा रहा है-संपादक)

प्रिय श्वेता संजीव भट्ट,

भारत में न्याय और मानवाधिकारों के लिए लड़ाई एक लंबी और अकेली लड़ाई है।

एक बार तीस्ता सीतलवाड़ ने एक साक्षात्कार में इस बात का जिक्र किया था और फिर उनके वाक्य की गहराई को समझने के लिए मैंने हफ्तों प्रयास किया। मैं यह अकेलापन पहले दिन से ही महसूस करने लगी थी लेकिन मैं नहीं जानती थी कि कैसे इसको जाहिर करूं। इसलिए मुझे बताने दीजिए कि आपके पति ने जो रास्ता चुना है वह कितना अकेला है और आगे यह आपके, आपके बच्चों और परिवार के लिए कितना लंबा, अकेला और कठिन होगा। केवल इस स्थिति में अगर आप ने इसका आकलन नहीं किया है।

मेरी मां केवल 23 साल की थीं जब किसी समय 1960 में वह अहमदाबाद में पहुंचीं थीं और फिर 2002 में 60 साल की उम्र में उस रात उसी साड़ी में घर से बाहर सड़क पर निकलीं जिसे उन्होंने 28 फरवरी की सुबह पहन रखा था। वह उसी सड़क पर थीं जिस पर वह 40 से ज्यादा सालों तक चली थीं लेकिन चमनपुरा के उनके घर से गांधीनगर के रास्ते तक कोई एक दरवाजा नहीं था जो उनके लिए खुला हो। आखिर में एक पारिवारिक मित्र का घर खुला हुआ था और उसने उनका खुली बांहों से स्वागत किया।

आप सोचती हैं शहर, जिसे आप अपना घर कहती हैं और लोग जिन्हें आप मेरे देशवासी कहकर बुलाती हैं। क्या वो इस बात की परवाह करते हैं कि आप किन हालातों से गुजर रही हैं?

अहमदाबाद में रहने वाले बड़े-बड़े लोगों और मेरे पिता के लंबे समय तक रहे मित्रों में से कोई भी उनके लिए नहीं आया। यहां तक कि वो जिन्होंने किचेन में बैठ कर मेरे पिता के साथ मीट करी और बिरियानी खायी थी, दसियों लाख लोग रहे होंगे अहमदाबाद में मेरे पिता ने जिनके साथ काम किया था, चुनाव लड़े, कोर्ट के मुकदमे लड़े, रैलियों में साथ चले, विरोध प्रदर्शनों में धरने पर बैठे, होली खेली, ईद और दीवाली मनायी और ढेर सारी चीजें एक साथ आयोजित की। यहां तक कि जब वह गांधीनगर में थीं और मेरे पिता समेत उनके समुदाय के सैकड़ों लोगों की बर्बर हत्या की खबर फैल गयी थी। क्या आप सोचती हैं क्योंकि आपके पति का काम इस राज्य और शहर में रहा है, आपके पति की शिक्षा और सेवा, अपने देश की सेवा का उनका सपना, ईमानदारी और समर्पण पर यहां विचार होने वाला है और ये लोग आपकी लड़ाई में शामिल हो जाएंगे?

अगर इसी तरह की और इतने बड़े स्तर की कोई घटना कनाडा में घटती और संसद का एक पूर्व सदस्य इतनी बुरी तरीके से जलाया जाता और फिर उसकी हत्या होती जिसमें उसके साथ 169 दूसरे लोग होते तो पीएम ट्रुडो और उनकी पूरी कैबिनेट पूरी संसद को बंद कर देते और हर पीड़ित की सहायता में खड़े हो जाते।

ज्यादातर बड़े व्यवसायी गुलबर्ग सोसाइटी और दूसरे इलाकों पर काम शुरू कर देते और मकानों को फिर से बनाने और बेघरों को फिर से बसाने के काम में लग जाते। 2002 में और यहां तक कि अभी भी भारत के तीन सबसे दौलतमंद व्यवसायी गुजरात से हैं यहां तक कि उस परिवार की महिलाएं जो चैरिटी के काम पर गर्व करती हैं वो भी सहायता के लिए आगे नहीं आयीं या फिर अपनी एकता और प्यार दिखाने के लिए दूसरी धनी और मशहूर महिलाओं को भी एकत्रित नहीं कीं। आप सोचती हैं क्योंकि आप एक साड़ी पहनती हैं और अपने माथे पर एक सुंदर बिंदी लगाती हैं इसलिए वो आपको एक इंसान समझेंगे और एक मां, एक पत्नी और एक पुत्री के रूप में आप पर क्या गुजर रही है उसके बारे में सोचेंगे और आपकी लड़ाई में शामिल हो जाएंगे?

हमारे शहरों, कस्बों और गांवों में 10 लाख से ज्यादा भारतीय महिलाएं रोजाना सुबह मंदिरों में जाती हैं लेकिन उनमें से किसी ने उस दिन नहीं सोचा कि शहर जिसे वो दूसरों के साथ साझा करती हैं, उसका एक पूरा समुदाय सड़क पर है और युवा बच्चों और बुजुर्ग माता-पिताओं के साथ बैठने और सोने के लिए एक स्थान की तलाश कर रहा है।

जब एक समुदाय का एक हिस्सा न केवल अपने घरों से बाहर फेंक दिया गया था बल्कि उनमें से कुछ अपने घायल बच्चों या माता-पिता को उन्हीं कपड़ों में कई दिनों तक ढोते फिर रहे थे, कुछ हजारों की संख्या में जले पड़े शवों में अपनों की तलाश कर रहे थे और कुछ मुस्लिम इलाकों के स्कूलों के फर्शों पर बैठे हुए थे और सोने की कोशिश कर रहे थे जिन्हें अब शरणार्थी शिविरों में तब्दील कर दिया गया था और या फिर कुछ ऐसे जो स्थानों की तलाश करते हुए कब्रिस्तान के बगल में एडजस्ट कर रहे थे उसी समय शिक्षकों से भरे गुजरात के स्कूल, कालेज और महिला प्रोफेसरों से भरे विश्वविद्यालय, कामकाजी महिलाओं से भरे व्यवसाय में सभी अपने रूटीन में काम कर रहे थे।

आप सोचती हैं कि जब आपके पति फासिस्टों के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए जेल में हैं तब यही लोग आप किन स्थितियों से गुजर रही हैं उसकी चिंता करेंगे?

किसी दूसरे युग या फिर देश में न केवल आईपीएस आफिसर्स बल्कि सभी सरकारी अफसर वह भी न केवल गुजरात के बल्कि पूरे भारत के हड़ताल पर चले गए होते और मांग करते कि उस प्रताड़ना को तत्काल समाप्त किया जाए जिससे संजीव जी गुजर रहे हैं।

लेकिन आप भारत में हैं मेरी दोस्त; यहां हमको बड़ा ही किया जाता है बहुत सारी चीजों में घृणा के कुछ डोज के साथ जो हमें विभाजित करने का काम करते हैं। और अगर आपदा हम पर हमला करती है तो हम प्रार्थना करते हैं कि यह एक प्राकृतिक आपदा है न कि धार्मिक या फिर राजनीतिक जो घृणा की आपदा पर आधारित है। केवल वही जो इस घृणा के पीड़ित हैं सच में यह जानते हैं कि यह रास्ता कितना तनहा है। पूरे प्यार के साथ, आप और आपके दृढ़ निश्चयी पति संजीव भट्ट के लिए प्रार्थना करती हूं।

सच में आपकी

निशरीन जाफरी हुसैन