क्या एर्दोगन की आक्रामक रणनीति से सऊदी अरब और मिस्र है परेशान?

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यूरोपीय संघ के साथ तुर्की की नहीं बन रही। तुर्की की सेना सीरिया के भीतर घुसी हुई है. इराक में भी हाल कुछ ऐसा ही है।

 

डी डब्ल्यू हिन्दी पर छपी खबर के अनुसार, तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान की सैन्य रणनीति से मिस्र और सऊदी अरब जैसे देश भी परेशान हैं।

 

करीब पांच दशकों तक इस्लामिक जगत का मुखिया बनने की कुछ अनकही शर्तें थीं। पहली इस्राएल का विरोध और बहिष्कार। दूसरी, दुनिया में जहां भी मुसलमान परेशान हों, वहां नैतिक और हथियारों की मदद।

 

तीसरी शर्त थी, हर सामाजिक आंदोलन को पश्चिम की साजिश करार देना। चौथी शर्त, धर्म का सख्ती से पालन करना और कराना। लेकिन इन सब शर्तों को पूरा करने के लिए खूब पैसा भी चाहिए। और अब तेल के खेल में वह पुरानी बात नहीं रही।

 

यह एक बड़ा कारण है कि बीते दस साल में सुन्नी जगत के सबसे प्रभावशाली देश सऊदी अरब और यूएई इस फॉर्मूले से हट चुके हैं। पेट्रोलियम आधारित अर्थव्यवस्था को ज्यादा विविध बनाने के लिए इन देशों ने नए रास्ते अपनाए हैं।

 

रूढ़िवादी सऊदी और अमीरात राजशाहियां अब नागरिक अधिकारों के मामले में उदार नजर आने लगी हैं। लेकिन क्या फॉर्मूले से दूर होने पर इस्लामिक जगत में नेतृत्व की कमी हो रही है? और क्या तुर्की उसे भरने की कोशिश कर रहा है?

 

कूटनीतिक तौर पर इस्राएल और यूएई की डील का ईरान और तुर्की ने मुखर विरोध किया है। ऐतिहासिक डील के तहत संयुक्त अरब अमीरात और इस्राएल पूर्ण कूटनीतिक रिश्तों की बहाली करने जा रहे हैं।

 

कोरोना वायरस पर रिसर्च और टेस्टिंग के लिए साझेदारी के साथ दोनों पक्षों ने इसकी शुरुआत कर दी है. ईरान का विरोध नया नहीं है. लेकिन हैरान तुर्की की प्रतिक्रिया करती है।

 

नाटो का सदस्य और इस्राएल से भौगोलिक रूप से काफी दूर। यह तुर्की का इस्लामिक जगत को संदेश है।

 

जमीन पर तुर्की की सेना सीरिया के भीतर 30 किलोमीटर तक जा चुकी है।

 

उत्तरी सीरिया के साथ लगने वाले 145 किलोमीटर लंबी सीमा में तुर्की सीरिया का काफी हिस्सा अपनी सैनिक चौकियों में तब्दील कर चुका है। इराक के कुर्द बहुल इलाकों में घुसकर भी तुर्की ने सैन्य चौकियां बनाई है।

 

साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी