ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को भारत नहीं आने के लिए किसानों ने लिखा पत्र!

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किसान यूनियनें सरकार के साथ वार्ता को लेकर न सिर्फ अपनी पुरानी जिद पर कायम हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव बनाने के लिहाज से अब ब्रिटिश सांसदों को भी पत्र लिखकर उनसे आग्रह करने की योजना है कि गणतंत्र दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री बोरिस जानसन को आने से रोकें।

जागरण डॉट कॉम पर छपी खबर के अनुसार, संकेत साफ है कि मामला अभी लंबा खिंचेगा और देर सबेर कोर्ट के आदेश पर ही कोई राह निकलने की गुंजाइश है।संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक बेनतीजा समाप्तमंगलवार को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक सुबह 10.30 बजे से शाम छह बजे तक चली, फिर भी वे किसी सर्वसम्मत समाधान पर नहीं पहुंच सके।

बताते हैं कि कुछ संगठन चाहते हैं कि बातचीत होनी चाहिए। ऐसे संगठनों का मानना था कि वार्ता के बुलावे को स्वीकार कर अपने मुद्दों को जोर-शोर से उठाना चाहिए।किसान नेता सरकार को चिट्ठी का जवाब आज देंगेमामला कोर्ट में पहुंच चुका है और ऐसा नहीं लगना चाहिए कि हम बातचीत के लिए तैयार ही नहीं हैं।

बहरहाल, अब सरकार को उसकी चिट्ठी का जवाब बुधवार को भेजा जाएगा। इसे तैयार करने में कुछ कानूनविदों और वकीलों की मदद ली जाएगी।

कानूनों को रद करने और नया कानून लाने की मांग बैठक में फिर उठीबैठक में इन कानूनों को रद करने और संसद का विशेष सत्र बुलाकर नया कानून लाने की मांग फिर उठी। सरकार की चिट्ठी के मजमून को गुमराह करने की कोशिश बताया गया।

उधर, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने मंगलवार को कहा, उन्हें उम्मीद है कि आंदोलन कर रहीं किसान यूनियनें सरकार के साथ वार्ता करने के लिए जल्द ही आएंगी।

यूनियनों की अंदरूनी बैठक में कुछ ऐसा फैसला हो जाएगा जिससे समस्या के समाधान की तरफ बढ़ने में मदद मिलेगी। तोमर ने कहा कि सरकार ने उन्हें खुले मन से बातचीत के लिए आमंत्रित किया है।

वे अपनी सहूलियत के हिसाब से वार्ता की तिथि बता सकते हैं। कृषि मंत्रालय ने आंदोलन कर रहीं यूनियनों को रविवार को पत्र लिखकर सरकार के भेजे प्रस्तावों पर अपनी दिक्कतें बताने के लिए वार्ता में शामिल होने का न्योता भेजा है।

किसान यूनियनों की मंगलवार को हुई बैठक में कृषि मंत्रालय के पत्र का जवाब तैयार करने और वार्ता के प्रस्ताव को स्वीकार अथवा खारिज करने पर विचार-विमर्श हुआ, लेकिन कोई फैसला नहीं हो सका।

किसान यूनियनों की दिक्कतों को दूर करने के लिए सरकार के साथ पांच दौर की वार्ता के बावजूद किसान नेताओं की जिद के चलते किसी समाधान तक नहीं पहुंचा जा सका है।

यूनियनों ने कृषि सुधार कानूनों को रद करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी की मांग पर अड़ियल रुख अपनाए रखा।