वित्त मंत्री बोली- ‘केंद्र सरकार ऋण ले कर खर्च चला रही है’

,

   

जीएसटी क्षतिपूर्ति के मामले में केंद्र सरकार के फार्मूले को गैर भाजपाई राज्य सरकारें स्वीकार नहीं कर रही हैं तो इसके पीछे निश्चित तौर पर राजनीति काम कर रही है लेकिन एक हकीकत और भी है।

 

यह हकीकत है कि राज्य कोविड काल के पहले यानी चालू वित्त वर्ष के पहले के दो वर्षो में इतना ज्यादा बाजार से कर्ज ले चुके हैं कि उनके लिए अब किसी भी तरह के अतिरिक्त कर्ज को वहन करना मुश्किल हो सकता है।

 

जागरण डॉट कॉम पर छपी खबर के अनुसार, आरबीआइ डाटा के मुताबिक जीएसटी जुलाई, 2017 में लागू किया गया था और उस वर्ष सभी राज्यों ने संयुक्त तौर पर 4.21 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लिया था जो वर्ष 2019-20 में 47.7 फीसद बढ़ कर 6.22 लाख करोड़ रुपये हो गया है। चालू वित्त वर्ष में इसमें और जबरदस्त बढ़ोतरी होना तय है।

 

उधर, गैर भाजपाई राज्यों की तरफ से जीएसटी क्षतिपूर्ति के लिए तैयार नहीं होने की वजह से इस मामले के फिर से जीएसटी काउंसिल में जाना तय है।

 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी शुक्रवार को अनुपूरक मांगों पर लोकसभा में जवाब देते हुए कहा कि, ”केंद्र सरकार ऋण ले कर खर्च चला रही है फिर भी राज्यों को फंड मुहैया कर रही है।

 

केंद्र का राजस्व संग्रह 100 रुपये का हुआ है लेकिन 107 रुपये राज्यों को दिया गया है। हमने जो विकल्प दिया है अगर राज्यों को वह पसंद नहीं आता है तो इस पर जीएसटी काउंसिल फैसला करेगी।”

 

वित्त मंत्रालय को यह फैसला इसलिए करना पड़ा है कि भाजपा शासित या समर्थित 16 राज्यों ने तो जीएसटी क्षतिपूर्ति के लिए दिए गए फार्मूले को स्वीकार कर लिया लेकिन बाकी अन्य राज्य इसके लिए तैयार नहीं है।

 

ये राज्य किसी भी सूरत में बाजार से और कर्ज लेने को तैयार नहीं है। भले ही केंद्र उन्हें इस कर्ज के भुगतान के लिए ज्यादा समय तक कंपनसेशन टैक्स वसूलने की छूट दे रहा है फिर भी।

 

इस बीच शुक्रवार को आरबीआइ की तरफ से पूरी इकोनोमी पर जो आंकड़े जारी किये गये हैं वह राज्यों की माली हालत की भी कलई खोलते हैं।

 

जीएसटी लागू होने के बाद राजस्व संग्रह बढ़ने की आस में उत्साहित राज्यों की तरफ से जम कर बाजार से कर्ज उठाया गया। सिर्फ दो वित्त वर्षो में इनकी बाजार उधारी 47.74 फीसद बढ़ कर 6,22,087 करोड़ रुपये हो गई है। चालू वित्त वर्ष के दौरान इसमें और ज्यादा इजाफा होने की जमीन तैयार हो गई है।

 

एसबीआइ की इकोनोमी पर जारी रिपोर्ट (इकोरैप) के मुताबिक केंद्र सरकार ने कोविड महामारी से लड़ने के लिए जो आत्मनिर्भर पैकेज घोषित किया था उसके तहत राज्यों को 4.28 लाख करोड़ रुपये का कर्ज देने की इजाजत दी गई है।

 

25 अगस्त, 2020 तक राज्यों ने इसमें से 2.69 लाख करोड़ रुपये का कर्ज ले भी लिया था। इसके अलावा इन्हें जीएसटी क्षतिपूर्ति के तहत 2.34 लाख करोड़ रुपये और कर्ज लेने को कहा जा रहा है।

 

सरकार का कहना है कि जीएसटी कंपनसेशन के लिए ली गई अतिरिक्त उधारी को वित्तीय नियमन व बजट प्रबंधन कानून के तहत नहीं माना जाएगा।

 

इसके बावजूद राज्यों का तर्क है कि उन्हें भविष्य में इस पर देय ब्याज का बोझ उठाना ही पड़ेगा। यह वजह है कि अर्थविद भी राज्यों बढ़ते कर्ज बोझ को सही मान रहे।

 

अब जबकि जीएसटी क्षतिपूर्ति का मामला फिर से जीएसटी काउंसिल में जाने वाला है तो सवाल यह भी उठता है कि अब और क्या विकल्प हैं? गैर भाजपाई राज्यों की तरफ से यह दबाव बनाया जा रहा है कि केंद्र सरकार ही क्षतिपूर्ति की पूरी राशि बाहर से कर्ज ले कर उन्हें उपलब्ध कराये।

 

दूसरा विकल्प यह है कि केंद्र सरकार नेशनल सोशल सिक्यूरिटी फंड (एनएसएसएफ) से केंद्र सरकार एक विशेष फंड बनाये और इससे लंबी अवधि के कर्ज राज्यों को दिए जाए। लेकिन इसके लिए कानूनी बदलाव करने होंगे।

 

बताते चलें कि यह सारी स्थिति इसलिए पैदा हुई है कि आर्थिक मंदी की वजह से केंद्र व राज्यों का राजस्व काफी घट चुका है। काम चलाने के लिए केंद्र व राज्यों को कर्ज लेना पड़ रहा है।