मुसलमानों के लिए मोदी सरकार के इस फैसले का साधू- संतो ने किया विरोध!

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काशी के साधु-संतों ने सरकार से एक नई मांग कर दी है. अखिल भारतीय संत समिति ने अल्पसंख्यक के नाम पर 5 करोड़ मुसलमानों को स्कॉलरशिप देने के केंद्र सरकार के फैसले का विरोध किया है। संत समाज का कहना है कि देश के 8 ऐसे राज्य हैं, जहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं। तो क्या इन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक माना जाएगा और उन्हें अल्पसंख्यकों वाले अधिकार मिलेंगे?

आज तक पर छपी खबर के अनुसार, संत समाज ने बाकायदा केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखकर अल्पसंख्यक की परिभाषा साफ करने को कहा है। ईद के मौके पर 5 करोड़ अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं को छात्रवृति के रूप में देने का केंद्र सरकार का तोहफा काशी के संत समाज को रास नहीं आ रहा है।

इसलिए काशी के संत समाज ने केंद्र सरकार सहित संबंधित विभाग-मंत्रालय को पत्र लिखकर अल्पसंख्यक की परिभाषा पूछी है, क्योंकि 8 राज्यों में हिंदू भी बतौर अल्पसंख्यक गुजर-बसर कर रहे हैं।

अल्पसंख्यक वोटों को साधने के लिए बीजेपी सरकार के मन में अल्पसंख्यकों के प्रति उमड़े प्रेम का ही नतीजा था कि ईद के दिन अल्पसंख्यक समुदाय के 5 करोड़ छात्रों को स्कॉलरशिप (छात्रवृति) देने का ऐलान किया गया।

सरकार की इसी मंशा पर अखिल भारतीय संत समिति ने अपने पत्र के जरिए सवाल खड़ा किया है, जिसमें उन्होंने न केवल मौजूदा सरकार से अल्पसंख्यक की परिभाषा पूछी है।

प्रधानमंत्री, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय, गृह मंत्रालय और अल्पसंख्यक आयोग को 9 बिंदुओं पर पत्र लिखने वाले अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ही एक जन एक राष्ट्र की भावना की बात कही गई है। इसलिए अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा कहीं से संविधान में तो नहीं है।

दिसंबर 1992 में कांग्रेस सरकार द्वारा पहली बार अल्पसंख्यक आयोग का गठन संसद में प्रस्ताव लाकर किया गया और यह संविधान की मूल अवधारणा के विरुद्ध था। ऐसे में सवाल है कि भारत में अल्पसंख्यक कौन हैं?