कोविड-19 के बीच भारत में हाथियों पर मंडरा रहा है ‘जूनोटिक’ का खतरा

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कोरोना वायरस संक्रमण के बीच भारत में हाथियों पर जूनोटिक रोगों का खतरा मंडरा रहा है। एक पशु अधिकार संगठन ने केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को इस बारे में आगाह किया है।

 

संगठन की ओर से कहा गया है कि हाथियों को प्रदर्शन के लिए दी जाने वाली ट्रेनिंग पर रोक लगाई जाए। संगठन का कहना है कि हाथी में तपेदिक का प्रसार ज्यादा हो रहा है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा हो सकता है।

 

पीपुल ऑफ एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल (PETA) ने केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री को भी इस बारे में आगाह किया है। संस्था द्वारा गिरिराज सिंह को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि जूनोटिक रोग एक ऐसी बीमारी है जो हाथियों से मनुष्यों में आसानी से पहुंच सकती है।

 

पत्र में कहा गया है, “देश के कई बंदी हाथी टीबी से पीड़ित हैं। पेटा का कहना है कि टीबी से पीड़ित बंदी हाथियों को जयपुर के पास आमेर किले में सवारी के लिए इस्तेमाल किया जाता है और कुछ लोग सर्कस, त्योहारों, परेडों के जरिए हाथियों के संपर्क में आते हैं।

 

पेटा इंडिया के सीईओ और पशु चिकित्सक डॉ. मणिलाल वलियते का कहना है कि कोविड-19 से हमें ये सीखना चाहिए कि हमें जूनोटिक रोगों को गंभीरता से लेने की जरूरत है।

 

उन्होंने कहा, ये सही समय है जब हमें बंदी हाथियों को प्रकृति के हिसाब से जीने देना चाहिए। सर्कस, टीवी और अन्य स्थानों पर हाथियों के प्रदर्शन पर रोक लगानी चाहिए, जिसके जरिए तपेदिक से हम आम लोगों की रक्षा कर सकेंगे।

 

पत्र में कहा गया है, मंत्रालय भारत के आधिकारिक राजपत्र में एक केंद्रीय अधिसूचना जारी कर सकता है कि हाथियों के प्रदर्शन और प्रशिक्षण पर प्रतिबंध लगाया।

 

बता दें कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित, हाथियों को अनुचित रूप से केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध से बाहर रखा गया है, जो प्रदर्शन के लिए भालू, बंदर, बाघ, पैंथर और शेर सहित विभिन्न वन्यजीव प्रजातियों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाते हैं।

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जूनोटिक रोगों को संक्रामक रोगों में रखा गया है। ये एक ऐसी बीमारी है जो जानवरों के जरिए इंसानों में आसानी से फैल सकती है।

 

साभार- न्यूज़ 18