गुजरात निकाय चुनाव में ओवैसी की पार्टी AIMIM का शानदार प्रदर्शन!

, , ,

   

गुजरात के स्थानीय निकायों के चुनाव में आम आदमी पार्टी के बाद असदुद्दीन ओवैसी की आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने अपने प्रदर्शन से सबको चौंका दिया है।

टीवी 9 हिन्दी डॉट कॉम पर छपी खबर के अनुसार, मंगलवार को घोषित हुए नगरपालिका, जिला और तालुका पंचायत के नतीजों में एआईएमआईएम ने गुजरात के तीन जिलों अरवल्ली के मोडासा, गोधरा और भरूच में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है।

पार्टी के बेहतरीन प्रदर्शन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मोडासा नगरपालिका में चुनाव लड़ रहे 12 में से एआईएमआईएम के 9 उम्मीदवारों ने ना सिर्फ जीत दर्ज की है, बल्कि कांग्रेस से मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा भी छीन लिया है।

इसी तरह 2002 के सांप्रदायिक दंगों की वजह से चर्चा में आए गोधरा में भी कांग्रेस के वोट में सेंध लगाते हुए एआईएमआईएम ने 7 सीटों पर फतेह कर ली है।

गोधरा में लगातार कांग्रेस जीतती रही है, लेकिन इस बार नतीजों ने उसे बड़ा झटका दिया है। ओवैसी ने मोडासा और गोधरा में दो जनसभा को संबोधित किया था, जिसका असर चुनाव नतीजों में देखा जा सकता है।

हालांकि एआईएमआईएम ने आदिवासी बहुल भरूच में भी अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, लेकिन यहां पार्टी को महज एक सीट पर ही कामयाबी हासिल हुई है।

एमआईएम ने गुजरात की अहमदाबाद, राजकोट, सूरत, जूनागढ़, भावनगर और जामनगर महानगरपालिकाओं के अलावा 81 नगरपालिकाओं, 31 जिला पंचायतों और 231 तालुका पंचायत चुनावों के लिए आदिवासी नेता छोटू वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी के साथ गठबंधन किया था।

गुजरात मे ओवैसी ने अपनी पार्टी की परंपरा को तोड़ते हुए मुस्लिमों के अलावा हिंदुओं और खासतौर पर दलितों को भी प्रमुखता से उम्मीदवार बनाया।

स्थानीय निकायों के इस चुनाव में गठबंधन का ये प्रयोग आंशिक तौर पर सफल साबित हुआ है। ऐसे में माना जा रहा है कि अगले साल दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में यही गठबंधन आदिवासी-मुस्लिम-दलित गठजोड़ के साथ कांग्रेस को बड़ी चुनौती दे सकता है।

कांग्रेस के लिए अभी गुजरात मे आगे खाई और पीछे कुआं वाली स्थिति बन गई है।

2015 के पाटीदार आंदोलन की वजह से इस समाज का बड़ा वर्ग उसके करीब आया था और इसका प्रभाव उसी साल हुए निकाय के चुनावों और उसके बाद दिसंबर 2017 के विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिला था, लेकिन लंबे समय तक कांग्रेस पाटीदारों को भी साधने में नाकाम साबित हो रही है और इसका फायदा आम आदमी पार्टी को मिलता दिख रहा है।

दूसरी तरफ उसके पारंपरिक मुस्लिम, आदिवासी और दलित वोटर भी उससे छिटक कर ओवैसी-बीटीपी गठबंधन की ओर मुखर हो रहे हैं।

साभार- टीवी 9 हिन्दी डॉट कॉम