जर्मनी: क्या वहां रह रहे मुसलमानों को काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है?

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लगभग दस साल पहले जर्मन राष्ट्रपति क्रिस्टियान वुल्फ ने कहा था कि इस्लाम पूरी तरह जर्मन समाज का हिस्सा है।

 

उस समय उनके इस बयान से तीखी बहस छिड़ गई थी। लेकिन जर्मन दस साल बाद क्या स्थिति है?

 

डी डब्ल्यू हिन्दी पर छपी खबर के अनुसार, क्रिस्टियान वुल्फ का बयान तो छोटा था लेकिन उसका असर बहुत बड़ा हुआ। जर्मन एकीकरण की 20वीं वर्षगांठ पर तत्कालीन राष्ट्रपति ने इस्लाम को जर्मनी का हिस्सा करार दिया था।

 

उनके इस दावे ने देश में इस्लाम की भूमिका पर देशव्यापी बहस छेड़ दी थी। और यह बहस आज तक चल रही है। 2010 में दिए गए वुल्फ के बयान ने कई लोगों को क्रोधित किया तो कइयों को उनकी ये बात अंदर तक छू गई।

 

आज दसियों लाख मुसलमान जर्मनी को अपना घर कहते हैं। कई परिवार इस देश में दो, तीन और चार पीढ़ियों से रह रहे हैं। लेकिन कुछ लोगों के लिए जर्मन समाज की मुख्यधारा में शामिल होना, अपनी स्वीकार्यता हासिल करना आसान नहीं रहा है।

 

गोएटिंगन यूनिवर्सिटी में इस्लाम पर काम करने वाली रीम श्पीलहाउस कहती हैं कि वुल्फ के बयान से बहुत से लोगों ने सहमति जताई।

 

वह बताती है कि यह बयान दिए जाने के बाद के सालों में मुसलमानों के एकीकरण और उनकी स्वीकार्यता को लेकर काफी प्रगति हुई।

 

लेकिन 2016 आते आते यह प्रक्रिया ठहर गई। श्पीलहाउस बताती हैं, और जो प्रगति हुई, कुछ हद तक उसे हमने गंवा दिया।

 

यह प्रगति कहां पर हुई है? और किन क्षेत्रों में अभी प्रगति की जरूरत है? श्पीलहाउस कहती हैं कि जर्मन सरकार के पास शायद ही ऐसी कोई शक्ति है जिससे वह देशव्यापी बदलावों के लिए दबाव डाल सके, जैसे कि जर्मन सेना में मुस्लिम इमामों को नियुक्त करना।

 

वह कहती हैं कि जर्मनी के विभिन्न राज्यों में ऐसे कानूनी प्रावधान किए गए हैं जिनके जरिए मुसलमानों को समाज में मुनासिब जगह दी जा सके।

 

इसमें कब्रिस्तानों का इंतजाम करना, इस्लामी छुट्टियों के दिन समय देना, अस्पतालों और जेलों में आध्यात्मिक देखभाल की सुविधा मुहैया कराना और यूनिवर्सिटियों में इस्लामी धर्मशास्त्र की पढ़ाई का प्रबंध करना शामिल है।

 

लेकिन जब बात स्कूलों में इस्लाम की शिक्षा देने की आती है तो जर्मन राज्यों का इस बारे में रुख बहुत अलग अलग है।

 

साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी