अयोध्या भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने बुधवार को नौवें दिन सुनवाई की।
न्यूज़ ट्रैक पर छपी खबर के अनुसार, रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि कानून की तय स्थिति में भगवान हमेशा नाबालिग होते हैं और नाबालिग की संपत्ति नहीं छीनी जा सकती है, ना ही उस पर प्रतिकूल कब्जे का दावा किया जा सकता है।
जमीन केवल भगवान की है। वह भगवान राम का जन्मस्थान है, इसलिए कोई वहां मस्जिद बना कर उस पर कब्जे का दावा नहीं कर सकता है। अपने बयान में वैद्यनाथन ने कहा कि जब संपत्ति भगवान में निहित होती है तो कोई भी उसे ले नहीं सकता है. कब्जा करके ईश्वर का हक नहीं छीना जा सकता।
ऐसी संपत्ति पर एडवर्स पजेशन का कानून लागू नहीं होगा। लोगों की जन्मभूमि के प्रति आस्था ही काफी है। मूर्ति रखना उस स्थान को पवित्रता देता है। अयोध्या के भगवान रामलला नाबालिग हैं। ऐसे में नाबालिग की संपत्ति को न तो बेचा जा सकता है और न ही छीना जा सकता है।
मंगलवार को आठवें दिन रामलला विराजमान की ओर से दलीलें रखी गई थीं। वैद्यनाथन ने एएसआइ की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए कहा था कि इसमें प्रमाण हैं कि विवादित ढांचे से पहले वहां हिंदू मंदिर था।
साकेत मंडल के राजा गोविन्द चंद्र ने 11वीं शताब्दी में अयोध्या में विष्णु हरि का मंदिर बनवाया था। विवादित ढांचे की जगह मंदिर होने की पुष्टि वहां से मिले एक शिलालेख से होती है। इस पर मंदिर के निर्माण का उल्लेख है।
सोमवार को सातवें दिन मामले की सुनवाई नहीं हो पाई थीं क्योंकि पांच जस्टिस वाले बेंच में से एक जस्टिस बोबडे अस्वस्थ होने के कारण कोर्ट नहीं आ सके थे।
इससे पहले की सुनवाई में रामलला विराजमान की ओर से कहा गया था कि विवादित स्थल पर देवताओं की अनेक आकृतियां मिली हैं। इसके साथ ही उन्होंने विवादित स्थल का निरीक्षण करने के लिए अदालत द्वारा नियुक्त कमिश्नर की रिपोर्ट का हवाला दिया था।