भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-कानपुर (आईआईटी-के) ने एक समिति गठित की है, जो यह तय करेगी कि क्या फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की कविता ‘हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे’ हिंदू विरोधी है।
नवजीवन पर छप खबर के अनुसार, फैकल्टी सदस्यों की शिकायत पर यह समिति गठित की गई है। फैकल्टी के सदस्यों ने कहा था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने यह ‘हिंदू विरोधी गीत’ गाया था।
The #students alleged that the professor translated two lines – when all idols will be removed only Allah’s name will remain – literally, but out of context. #CAAprotests #IITKanpur https://t.co/fFvFjqPJXB
— The Logical Indian (@LogicalIndians) December 27, 2019
समिति इसकी भी जांच करेगा कि क्या छात्रों ने शहर में जुलूस के दिन निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया, क्या उन्होंने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट की और क्या फैज की कविता हिंदू विरोधी है।
कविता इस प्रकार है, “लाजिम है कि हम भी देखेंगे, जब अर्ज-ए-खुदा के काबे से। सब भूत उठाए जाएंगे, हम अहल-ए-वफा मरदूद-ए-हरम, मसनद पे बिठाए जाएंगे। सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख्त गिराए जाएंगे। बस नाम रहेगा अल्लाह का। हम देखेंगे।” इसकी अंतिम पंक्ति ने विवाद खड़ा कर दिया है।
यह कविता फैज ने 1979 में सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक के संदर्भ में लिखी थी और पाकिस्तान में सैन्य शासन के विरोध में लिखी थी। फैज अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण जाने जाते थे और इसी कारण वे कई सालों तक जेल में रहे।
IIT Kanpur has set up a panel to decide whether the poem ‘Hum dekhenge lazim hai ki hum bhi dekhenge’, penned by Faiz Ahmad Faiz, is anti-Hindu.
All lunacy must end someday in the churn of history. This too shall pass. Hum dekhenge. https://t.co/r0hCmZf34m
— Rituparna Chatterjee (@MasalaBai) January 1, 2020
गौरतलब है कि आईआईटी-के के छात्रों ने जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के समर्थन में 17 दिसंबर को परिसर में शांतिमार्च निकाला था और मार्च के दौरान उन्होंने फैज की यह कविता गायी थी।
आईआईटी के उपनिदेशक मनिंद्र अग्रवाल के अनुसार, “वीडियो में छात्रों को फैज की कविता गाते हुए देखा जा रहा है, जिसे हिंदू विरोधी भी माना जा सकता है।”