मुसी नदी बाढ़ ने तेलंगाना की तस्वीर बदल कर रख दिया है!

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हैदराबाद शहर की इस बार तस्वीर बिल्कुल अलग है। सड़क पर बहती गाड़ियां, पानी में डूबे मकान और घरों में कैद लोग पिछले कुछ समय से शहर की सच्चाई बन गए हैं।

 

साक्षी खबर पर छपी खबर के अनुसार, हैदराबाद में आई बाढ़ ने मानों पूरे शहर का नक्शा ही बदल दिया है। क्या आप जानते हैं कि प्रकृति के इस कोप की वजह कोई और नहीं बल्कि हम खुद हैं।

हैदराबाद में आई विनाशकारी बाढ़ से जुड़ी उन बातों को समझने की कोशिश करते हैं, जिसकी वजह से ऐसा नजारा हमारे सामने है।

तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में 13 अक्टूबर से ही जोरदार बारिश हो रही है। सबसे ज्यादा खराब हालत हैदराबाद की है।

तेलंगाना सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, हैदराबाद के 72 इलाकों की 144 कॉलोनियों में 20,540 मकान पानी में डूब गए और 35 हजार से अधिक परिवार प्रभावित हुए हैं।

 

शहर के एलबी नगर, चारमीनार, सिकंदराबाद, खैरताबाद जोन में बाढ़ का ज्यादा असर है।

 

हैदराबाद में 14 मकान पूरी तरह और 65 मकानों को आंशिक रूप से नुकसान पहुंचा है। दूसरी तरफ, राज्यभर में भारी बारिश के कारण अब तक 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।

 

प्रभावित परिवारों की मदद के लिए सरकार ने पांच लाख रुपए का मुआवजा पहले ही घोषित कर दिया है।

 

अब तक इस बात का जिक्र कई जगह किया जा चुका है कि हैदराबाद में बाढ़ की वजह क्या है। नदियों के आसपास बढ़ता अतिक्रमण, झीलों का समाप्त होना और बेकार ड्रेनेज सिस्टम के कारण ये हालात पैदा हुए है।

 

इसके लिए जितने दोषी शासन और अधिकारी हैं, उतने ही दोषी हम भी हैं। लोगों ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपना भविष्य दांव पर लगा दिया।

 

राज्य कोई भी हो, बाढ़ की विपदा सलाना है। ज्यादातर राज्य हर साल बाढ़ के हालात से दो-चार होते हैं। हैदराबाद में बारिश और फिर बाढ़ ने भले ही सिस्टम पर सवाल खड़े करने का मौका दे दिया है, लेकिन बात पिछले कई दशकों की करें तो आंकड़े बताते हैं कि कैसे लोगों ने खुद इस प्राकृतिक आपदा को निमंत्रण दिया है।

 

साल 1908 में बादल फटने की वजह से आई बाढ़ से हैदराबाद में 15 हजार लोगों की मौत हो गई थी। उस वक्त ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए हैदराबाद में दो जलाशय बनाए गए जिन्हें उस्मान सागर और हिमायत सागर के नाम से जानते हैं।

 

शहर में पानी इकट्ठा न हो, इसके लिए एक मॉडर्न ड्रेनेज सिस्टम भी बनाया गया था, हालांकि जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ ड्रेनेज सिस्टम को अपग्रेड नहीं किया गया।

 

साल 1950 के दशक में हैदराबाद में 500 झीलें हुआ करती थीं। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इस समय हैदराबाद में सिर्फ 191 झीलें ही बची हैं। स्पष्ट है कि बीते 70 साल में करीब 309 झीलों पर कब्जा किया जा चुका है।

 

विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र की 2016 में आई रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2004 से 2016 के बीच हैदराबाद के 3245 हेक्टेयर वेटलैंड्स खत्म हो चुके हैं।

 

बीते 5 दशक में हैदराबाद के आस-पास कृषि के लिए काम आने वाली जमीन पर शहर बसाया गया, जिसकी वजह से पानी निकलने की जगह अब शहर में ही जमा हो जाता है।

 

सवाल है कि इतने बड़े स्तर पर अतिक्रमण हो जाना, नदियों और झीलों का खत्म हो जाना, क्या इससे शासन-प्रशासन बेखबर है। आखिर किसलिए समय रहते कोई कार्रवाई नहीं हुई।

 

जानकार बताते हैं कि नेताओं के दबाव के चलते अधिकारी इस तरह की बातों पर आंख मूंद लेते हैं। नेता भी लोगों को खुश करने के लिए उनके अतिक्रमण को जायज बना देते हैं और किसी भी तरह की कार्रवाई से अधिकारियों को रोक देते हैं।

 

वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए सरकार इस तरह के गलत कामों को मौन स्वीकृति देती रहती है, जिसका परिणाम इस तरह की त्रासदी के रूप में सामने आता है।

 

शहर में बाढ़ से मचे हाहाकार पर सरकार एक्शन में है। तत्काल प्रभावित लोगों को सहायता राशि के साथ-साथ आवश्यक सामग्री मुहैया कराई गई है। इसके अलावा अधिकारी दिनरात हालात सामान्य करने के लिए जुटे हुए हैं।

 

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव ने बाढ़ से प्रभावित लोगों की मदद करने की घोषणा की है। मकान गंवा चुके लोगों को एक लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी जाएगी तथा जबकि आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त मकान मालिकों को 50-50 हजार रुपए की तत्काल सहायता राशि दी जाएगी।

 

सवाल यह है कि क्या सरकार ऐसी कोई ठोस रणनीति बनाएगी कि आगे से ऐसे हालात शहर में न बनें। अगले साल होने वाली बारिश से हैदराबाद की ऐसी दुर्दशा न हो इसके लिए क्या सरकार कोई मास्टर प्लान तैयार करेगी।

 

जानकारों की राय है कि सरकार मुआवजा राशि के साथ-साथ लोगों को इस बात के लिए भी समझाए कि नदियों और नालों के पास अतिक्रमण करना उनके लिए ही खतरनाक है।

 

अगर बाढ़ का पानी नदियों और नालों से बाहर निकल जाता तो यह त्रासदी नहीं आती, लेकिन अतिक्रमण के चलते पानी शहर से बाहन निकला नहीं और फिर सड़कों पर ही पानी जमा हो गया।