भारतीय सेना में देश की सेवा कर रहे 3 सगे भाइयों को नागरिकता साबित करने के लिए कहा गया

,

   

गुवाहाटी : असम के बारपेटा जिले के तीन भाईयों और उनकी मां को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने अपनी नागरिकता साबित करने को कहा है। तीन भाईयों में से दो सेना में है जबकि एक सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स (सीआईएसएफ) में है। तीन भाईयों में से सबसे बड़ा साहिदुल इस्लाम सेना में सूबेदार है और कोलकाता में तैनात है। दूसरा दिलबर हुसैन नायक है और लखनऊ में पोस्टेड है।

सबसे छोटा मिजानुर रहमान सीआईएसएफ में कांस्टेबल है और चेन्नई में तैनात है। उनकी मां खुदेजा बेगम को भी इसी तरह का नोटिस मिला है। सभी को पिछले साल अक्टूबर में नोटिस मिले थे। ये नोटिस असम पुलिस की बॉर्डर पुलिस यूनिट की शिकायत के आधार पर भेजे गए थे। नवंबर में सभी दस्तावेजों के साथ फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में पेश हुए। अगली सुनवाई 18 मार्च को होगी। साहिदुल ने एक समाचार पत्र से बातचीत में कहा, जब अक्टूबर में नोटिस आया तो बॉर्डर पुलिस के अधिकारियों ने हमें बताया कि गलती हो गई है। ट्रिब्यूनल में नागरिकता संबंधी दस्तावेज पेश करने के बाद हमारा केस सुलझा लिया जाएगा लेकिन चार माह बीतने के बावजूद कुछ नहीं हुआ।

गौरतलब है कि असम में करीब 100 फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल्स हैं। इन ट्रिब्यूनल्स ने जिनको विदेशी घोषित किया है, उन्हें 6 हिरासत केन्द्रों में रखा गया है। फिलहाल इनमें 938 बंदी हैं। पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र व असम सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि इन बंदियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए और इन्हें हिरासत केन्द्रों में कम से कम वक्त के लिए रखा जाए। साहिदुल के
मुताबिक उनके पिता व दादा के नाम 1951 में बने एनआरसी में शामिल किए गए थे। साथ ही वोटर लिस्ट में भी उनके नाम हैं।

बकौल साहिदुल, हमने कई सालों तक देश की सेवा की लेकिन हमें नागरिकता साबित करने के लिए परेशान किया जा रहा है। चार माह बाद हमने मीडिया के पास पहुंचे क्योंकि हमारा केस आगे नहीं बढ़ रहा और सुनवाई के दौरान पेश होने के लिए बार बार छुट्टियां लेना संभव नहीं है। ऐसा पहली बार नहीं है जब असम में सर्विंग या रिटायर्ड डिफेंस पर्सनल्स को नागरिकता साबित करने के लिए फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल्स ने
नोटिस जारी किए हैं। पिछले दो साल में इस तरह के करीब 6 मामले सामने आ चुके हैं। बारपेटा में बॉर्डर पुलिस के अधिकारियों के मुताबिक परिवार के खिलाफ 2003 में केस बनाया गया और पिछले साल अक्टूबर में फैमिली को नोटिस जारी किए गए। एक अधिकारी ने कहा कि केस इसलिए शुरू किया गया क्योंकि परिवार उसी जिले में अपने पुराने निवास स्थल संबंधी दस्तावेज पेश नहीं कर पाया। उनका केस अभी भी ट्रिब्यूनल में लंबित है और हम उनकी मदद की कोशिश कर रहे हैं।