सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई बंद हो गई है। 6 अगस्त से लगातार चली सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों ने कई तरह की दलीलें दीं, जिनपर सुप्रीम कोर्ट ने गौर किया।
ALERT: News Broadcasters Association sends Advisory on Ayodhya hearing coverage:
– Do not speculate court proceedings
– Ascertain facts of hearing
– Do not use mosque demolition footage
– Do not broadcast any celebrations
– Ensure no extreme views are aired in debatesMore👇 pic.twitter.com/QQfXoyBSB3
— GoNewsIndia (@GoNews_India) October 16, 2019
जागरण डॉट कॉम के अनुसार, यह पूरा मामला करीब 2.77 एकड़ की विवादित जमीन के मालिकाना हक को लेकर है।आगे बढ़ने से पहले ये भी बताना जरूरी होगा कि वर्ष 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस बाबत दिए अपने फैसले में अयोध्या की विवादित जमीन को तीन भांगों में बांटने का फैसला सुनाया था।
Ahead of Supreme Court verdict on Ayodhya Uttar Pradesh cancels leave of all field officershttps://t.co/qtxKlyUJtI pic.twitter.com/KC4nqYgGhP
— Hindustan Times (@htTweets) October 16, 2019
फैसले के तहत जमीन का एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा रामलला विराजमान देने को कहा गया था। लेकिन इस फैसले पर सभी पक्षों ने एतराज जताया था और बाद में इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गई थीं।
Ayodhya Case: Decades old dispute to end? Watch #Newstrack with @rahulkanwal #ITLivestream https://t.co/y1x80eJDSz
— IndiaToday (@IndiaToday) October 16, 2019
आज की सुनवाई में रखे गए दलीलें
हिंदुओं ने इस पूरी विवादित जमीन के मालिकाना हक पाने के पक्ष में दलील दी थी कि बीते सौ से अधिक वर्षों में यह जमीन उनके पास है। हालांकि मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध करते हुए यह भी दलील दी थी कि इसका मालिकाना हक जताने वाले निर्मोही अखाड़ा 19 मार्च 1949 को रजिस्टर्ड हुआ था। ऐसे में उसके पास इतने वर्षों से इसका हक कैसे है। इस पर अखाड़े की तरफ से कहा गया कि भले ही यह रजिस्टर्ड 1949 में हुआ था, लेकिन इसका वजूद इससे काफी पहले का है।
हिंदू पक्ष का कहना था कि मुस्लिम पक्ष कहीं भी नमाज पढ़ सकते हैं, अयोध्या में करीब 80 मस्जिद हैं। लेकिन भगवार राम का जन्मस्थान बदला नहीं जा सकता है।
#BREAKING | Sunni Wakf Board’s proposal:
-Giving up claim
-Places of Religious Worship Act 1991 be made watertight
-Govt should take over maintenance of around 22 mosques in Ayodhya.
-SC should form a committee to check into status of other religious places under ASI’s control. pic.twitter.com/0mDs50opp8— News18 (@CNNnews18) October 16, 2019
हिंदू पक्ष का कहना था कि दूसरे की जमीन पर अवैध कब्जा कर बनाई जाने वाली मस्जिद गैर-इस्लामिक होती है। ऐसे में वहां पर यदि नमाज की जाती है तो वह भी कबूल नहीं होती है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने हिंदुओं की उस दलील को गलत बताया जिसमें इस जमीन के मालिकाना हक की बात कही गई थी। बोर्ड का कहना था हिंदुओं के राम पूजनीय हैं, लेकिन वो किसी जमीन पर मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकते हैं। उनका तर्क था कि हिंदू सूर्य की पूजा करते हैं, लेकिन उस पर मालिकाना हक नहीं जताया जा सकता है।
CJI Ranjan Gogoi heading five judge bench hearing Ayodhya land dispute said the hearing will conclude today, on October 16, that is the 40th day of arguments. pic.twitter.com/a7SrVp2wjq
— The Times Of India (@timesofindia) October 16, 2019
मुस्लिम पक्ष का ये भी कहना था कि इस विवादित स्थल पर रामलला की मूर्तियां रखने के करीब एक दशक बाद अखाड़े ने इसके मालिकाना हक को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जबकि नियमानुसार इसकी मियाद पहले ही खत्म हो गई थी।
Ayodhya case: Both Masjid & Mandir sides will make their final submissions before the SC today. The apex court wouldn’t entertain any more interventions in this case.
TIMES NOW’s Aditi & Madhavdas with details. Listen in. pic.twitter.com/YhJxnTIcfx
— TIMES NOW (@TimesNow) October 16, 2019
हिंदू पक्ष का कहना था कि 1934 के बाद यहां पर पांचों वक्त की नमाज पढ़ना बंद हो गया था। वहीं 1949 के बाद से यहां पर शुक्रवार को होने वाली नमाज भी होनी बंद हो गई थी।
इसका जवाब देते हुए मुस्लिम पक्ष ने हिंदु पक्ष की दलील को गलत बताते हुए कहा कि हिंदू वहां पर आकर स्थल की परिक्रमा करते थे, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वही स्थान राम जन्मभूमि है। बाद में यह परिक्रमा भी बंद कर दी गई थी। उनकी दलील थी कि जिस जगह को हिंदु पक्ष गर्भगृह बताता रहा है वहां पर मूर्ति पूजा का भी कोई सुबूत नहीं है।
हिंदू पक्ष ने कोर्ट में कहा कि विवादित जगह पर किसने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाई इसको लेकर कुछ भ्रम की स्थिति है। इस पक्ष की तरफ से यह भी कहा गया कि यहां पर नमाज केवल यहां का मालिकाना हक पाने के लिए पढ़ी जाती रही।
मुस्लिम पक्ष का कहना था कि यहां पर मंदिर होने की बात 1980 के बाद सामने आई। उन्होंने इस बाबत गवाहों के बयानों को भी मानने से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि जिसे गर्भगृह का नाम दिया जाता है वहां कभी कोई मूर्ति नहीं थी, लेकिन केवल इसके सुबूत के तौर पर एक फोटो को जरूर पेश किया गया।
इस पक्ष के मुताबिक पहले चबूतरे पर मूर्ति पूजा होती थी जो 1949 में अंदर होने लगी। इसके बाद ही वहां के मालिकाना हक की बात हिंदू पक्ष ने करनी शुरू की।
इस मामले में राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति ने कोर्ट को बताया था कि शिलालेखों के मुताबिक मस्जिद की नींव 935 हिजरी में रखी गई। उनके मुताबिक यहां पर बना मंदिर बाबर ने नहीं बल्कि औरंगजेब ने तोड़ा था।
इस बाबत मुस्लिम पक्ष का कहना था कि इस मस्जिद को बाबर के आदेश पर उसके एक सिपाहसलार मीर बाकी ने तामीर करवाया था। शिलालेखों में भी इसका ही जिक्र सामने आता है। उस दौरान आए विदेशी लोगों ने भी अपने दस्तावेजों में इसी बात का जिक्र किया है।