बाबरी मस्जिद सुनवाई के आखिरी दिन हिन्दू और मुस्लिम पक्षों ने जानें क्या दी दलील?

   

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्‍या मामले की सुनवाई बंद हो गई है। 6 अगस्‍त से लगातार चली सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों ने कई तरह की दलीलें दीं, जिनपर सुप्रीम कोर्ट ने गौर किया।

जागरण डॉट कॉम के अनुसार, यह पूरा मामला करीब 2.77 एकड़ की विवादित जमीन के मालिकाना हक को लेकर है।आगे बढ़ने से पहले ये भी बताना जरूरी होगा कि वर्ष 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस बाबत दिए अपने फैसले में अयोध्या की विवादित जमीन को तीन भांगों में बांटने का फैसला सुनाया था।

फैसले के तहत जमीन का एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा रामलला विराजमान देने को कहा गया था। लेकिन इस फैसले पर सभी पक्षों ने एतराज जताया था और बाद में इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गई थीं।

आज की सुनवाई में रखे गए दलीलें
हिंदुओं ने इस पूरी विवादित जमीन के मालिकाना हक पाने के पक्ष में दलील दी थी कि बीते सौ से अधिक वर्षों में यह जमीन उनके पास है। हालांकि मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध करते हुए यह भी दलील दी थी कि इसका मालिकाना हक जताने वाले निर्मोही अखाड़ा 19 मार्च 1949 को रजिस्‍टर्ड हुआ था। ऐसे में उसके पास इतने वर्षों से इसका हक कैसे है। इस पर अखाड़े की तरफ से कहा गया कि भले ही यह रजिस्‍टर्ड 1949 में हुआ था, लेकिन इसका वजूद इससे काफी पहले का है।
हिंदू पक्ष का कहना था कि मुस्लिम पक्ष कहीं भी नमाज पढ़ सकते हैं, अयोध्‍या में करीब 80 मस्जिद हैं। लेकिन भगवार राम का जन्‍मस्‍थान बदला नहीं जा सकता है।

हिंदू पक्ष का कहना था कि दूसरे की जमीन पर अवैध कब्‍जा कर बनाई जाने वाली मस्जिद गैर-इस्‍लामिक होती है। ऐसे में वहां पर यदि नमाज की जाती है तो वह भी कबूल नहीं होती है।

सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड ने हिंदुओं की उस दलील को गलत बताया जिसमें इस जमीन के मालिकाना हक की बात कही गई थी। बोर्ड का कहना था हिंदुओं के राम पूजनीय हैं, लेकिन वो किसी जमीन पर मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकते हैं। उनका तर्क था कि हिंदू सूर्य की पूजा करते हैं, लेकिन उस पर मालिकाना हक नहीं जताया जा सकता है।

मुस्लिम पक्ष का ये भी कहना था कि इस विवादित स्‍थल पर रामलला की मूर्तियां रखने के करीब एक दशक बाद अखाड़े ने इसके मालिकाना हक को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जबकि नियमानुसार इसकी मियाद पहले ही खत्‍म हो गई थी।

हिंदू पक्ष का कहना था कि 1934 के बाद यहां पर पांचों वक्‍त की नमाज पढ़ना बंद हो गया था। वहीं 1949 के बाद से यहां पर शुक्रवार को होने वाली नमाज भी होनी बंद हो गई थी।

इसका जवाब देते हुए मुस्लिम पक्ष ने हिंदु पक्ष की दलील को गलत बताते हुए कहा कि हिंदू वहां पर आकर स्‍थल की परिक्रमा करते थे, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वही स्‍थान राम जन्‍मभूमि है। बाद में यह परिक्रमा भी बंद कर दी गई थी। उनकी दलील थी कि जिस जगह को हिंदु पक्ष गर्भगृह बताता रहा है वहां पर मूर्ति पूजा का भी कोई सुबूत नहीं है।

हिंदू पक्ष ने कोर्ट में कहा कि विवादित जगह पर किसने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाई इसको लेकर कुछ भ्रम की स्थिति है। इस पक्ष की तरफ से यह भी कहा गया कि यहां पर नमाज केवल यहां का मालिकाना हक पाने के लिए पढ़ी जाती रही।

मुस्लिम पक्ष का कहना था कि यहां पर मंदिर होने की बात 1980 के बाद सामने आई। उन्‍होंने इस बाबत गवाहों के बयानों को भी मानने से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि जिसे गर्भगृह का नाम दिया जाता है वहां कभी कोई मूर्ति नहीं थी, लेकिन केवल इसके सुबूत के तौर पर एक फोटो को जरूर पेश किया गया।

इस पक्ष के मुताबिक पहले चबूतरे पर मूर्ति पूजा होती थी जो 1949 में अंदर होने लगी। इसके बाद ही वहां के मालिकाना हक की बात हिंदू पक्ष ने करनी शुरू की।

इस मामले में राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति ने कोर्ट को बताया था कि शिलालेखों के मुताबिक मस्जिद की नींव 935 हिजरी में रखी गई। उनके मुताबिक यहां पर बना मंदिर बाबर ने नहीं बल्कि औरंगजेब ने तोड़ा था।

इस बाबत मुस्लिम पक्ष का कहना था कि इस मस्जिद को बाबर के आदेश पर उसके एक सिपाहसलार मीर बाकी ने तामीर करवाया था। शिलालेखों में भी इसका ही जिक्र सामने आता है। उस दौरान आए विदेशी लोगों ने भी अपने दस्‍तावेजों में इसी बात का जिक्र किया है।