हर्षमंदर का नाम पुलिस रिपोर्ट में शामिल करने की बुद्धिजीवियों ने की निंदा, कहा-फर्जी है कहानी

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देश के करीब 50 से अधिक जाने-माने बुद्धिजीवियों ने राजधानी में हिंसा की घटना में प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं पूर्व आईएएस अधिकारी हर्ष मंदर का नाम दिल्ली पुलिस की अंतिम रिपोर्ट में शामिल किए जाने की कड़ी निंदा की है और उसे वापस लेने की मांग की है।

बयान में कहा गया है की श्री हर्ष मंदर एक जाने माने मानवाधिकार रक्षक, एक लेखक और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वह एक सिविल सर्वेंट रह चुके हैं जिन्होंने 2002 में गुजरात हिंसा के मद्देनजर अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था और समाज में प्रेम और शांति बनाने के लिए आगे आकर काम किया। उन्होंने दूसरों के बीच धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए, विशेषाधिकारों के लिए पहल की। उन्होंने अमन बिरादरी और करवन-ए-मोहब्बत की स्थापना की, दोनों संगठनों ने भारतीय समाज की बेहतरी में अहम योगदान दिया है। कोरोना लॉकडाउन के मद्देनजर श्रमिकों की मदद करने के लिए सराहनीय कार्य किया है।

मशहूर लेखिका नयन तारा सहगल, प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा, फिल्म अभिनेता नसीरूद्दीन गुहा, अपर्णा सेन, मृणालिणी साराभाई, अरूणा रे, सईदा हमीद, योगेंद्र यादव, जोया हसन, प्रभात पटनायक समेत कई बुद्धिजीवियों ने सोमवार को बयान जारी कर इसकी निंदा की है।

उन्होंने कहा है कि हर्षमंदर एक जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता, मानवाधिकार रक्षक और लेखक हैं। वह सरकारी अफसर रह चुके हैं और उन्होंने 2002 में गुजरात हिसा के मद्देनजर सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था और समाज में भाईचारा  और शांति बनाने के लिए बढ़ चढ़कर काम किया।

उन्होंने दूसरों के बीच धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए, विशेषाधिकारों के लिए पहल की। उन्होंने अमन बिरादरी और करवन-ए-मोहब्बत की स्थापना की। दोनों संगठनों ने भारतीय समाज की बेहतरी में योगदान दिया है। कोरोना लॉकडाउन में मजदूरों की मदद के लिए सराहनीय काम किया है।

हर्षमंदर की याचिका को दे दिया नया मोड़

बुद्धिजीवियों ने कहा है कि  दिल्ली हिंसा (20 फरवरी) के मद्देनजर, हर्ष मंदर ने सुप्रीम कोर्ट में उन राजनीतिक नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए याचिका दर्ज की थी जिनके भड़काऊ के कारण हिंसा भड़क गई, नतीजजन 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। अदालत ने याचिका पर विचार करने की अनुमति देने के बजाय, भारत के सॉलिसिटर जनरल ने इस प्रकरण को यह कहकर मोड़ दिया कि मंदर ने वास्तव में सुप्रीम कोर्ट के प्रति अवमानना की है और उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में 16 दिसंबर को भाषण देकर हिंसा को उकसाया। यह भाषण, सार्वजनकर रूप से दिया गया और इसका वीडियो रिकॉर्ड किया गया था, जबकि इसमें प्यार और संवैधानिक अधिकारों की बात की गई थी।

16 दिसंबर को भड़काऊ भाषण देने का आरोप

उन्होंने कहा कि पुलिस ने जो चार्जशीट दायर की है उसमें फर्जी कहानी गढ़ी है। बिंदु 17 पैरा 4 में नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के दंगों का घटनाक्रम है जिसमें गया है कि हर्षमंदर ने 16 दिसंबर को साइट पर गए और प्रदर्शनकारियों को भड़काया। सुप्रीम कोर्ट में न्याय पाने के बजाय सड़क पर अपनी लड़ाई लड़ी। हालांकि, उन्होंने अपने भाषण के एक हिस्से में शांति के एक पहलू का इस्तेमाल किया। बुद्धिजीवियों ने कहा कि इससे ज्यादा हास्यास्पद कुछ नहीं हो सकता जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज में शांति और सद्भाव के लिए समर्पित किया है।

ये दिया था भाषण

उन्होंने कहा कि उनके भाषण के मुख्य अंश ने हिंसा को तेज करने और गांधीवाद को अपनाने का अर्थ आंदोलन में अहिंसा को बताया। ह्रर्षमंदर ने अपने भाषण में कहा था, ‘इस देश का भविष्य क्या होगा? आप सब नौजवान हैं। आप अपने बच्चों के लिए किस क़िस्म का मुल्क छोड़कर जाना चाहेंगे? यह फ़ैसला करना होगा? एक तो यह सड़कों पर होगा, हम सब सड़कों पर हैं। लेकिन सड़कों से भी आगे एक और जगह है जहाँ यह सब कुछ तय होगा। वह कौन सी जगह है जहाँ आख़िरकार इस संघर्ष का निर्णय होगा? वह हमारे दिलों में है, आपके दिलों में। हमें जवाब देना होगा। वे हमारे दिलों को नफ़रत से मार डालना चाहते हैं। अगर हम भी नफ़रत से जवाब देंगे तो वह और गहरी ही होगी।’

कही थी अहिंसा की बात

हर्षमंदर ने कहा था, ‘अगर कोई इस मुल्क को अँधेरा करना चाहता है और हम भी उससे मुक़ाबला करने को वही करें तो अँधेरा और गहरा ही होगा। अँधेरा हो तो उससे मुक़ाबला दिया जलाकर ही किया जा सकता है। उनकी नफ़रत का हमारे पास एक ही जवाब है मुहब्बत।’ उन्होंने कहा था, ‘अगर वे हिंसा करते हैं, वे हमें भी हिंसा के लिए उकसाएँगे लेकिन हम कभी हिंसा का रास्ता नहीं चुनेंगे। आपको समझना ही चाहिए कि उनकी साज़िश आपको हिंसा के लिए उकसाना है, ताकि अगर आप 2% हिंसा करें तो वे 100% से जवाब दें। हमने गाँधीजी से सीखा है कि हिंसा और नाइंसाफ़ी का जवाब कैसे दिया जाता है। हम अहिंसा के सहारे लड़ेंगे। जो भी आपको हिंसा या नफ़रत के लिए उकसाता है, वह आपका दोस्त नहीं है।

रोक लगाने की मांग

बुद्धिजीवियों का कहना है कि इन शब्दों में क्या हिंसा को भड़काने वाली बात है लेकिन पुलिस इसे हिंसा की साजिश बता रही है। उन्होंने कहा कि हम एक न्यायपूर्ण समाज के प्रति प्रतिबद्धता वाले व्यक्ति की प्रेरित, समझौता की गई जाँच और अभद्रता की कड़ी निंदा करते हैं और मांग करते हैं कि इस पर जल्द ही रोक लगाई जाए।