अमरीका ने ईरान की पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स को आतंकी संगठन घोषित किया तो इसे ईरान के ख़िलाफ़ हर तरफ़ से उत्तेजक क़दम उठाने की अमरीकी रणनीति का एक भाग माना जाएगा।
अमरीका आने वाले मई महीने में ईरान पर दूसरे चरण के प्रतिबंध लगाने की तैयारी में है क्योंकि अमरीका चाहता है कि ईरान का तेल निर्यात पूरी तरह बंद हो जाए। यह लग रहा है कि पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स को इस रणनीति के तहत अमरीका और इस्राईल ने मिलकर आतंकी संगठन घोषित किया है।
बल्कि यह कहना चाहिए कि यह निर्णय अमरीकी नहीं इस्राईली है क्योंकि इसका पूरा फ़ायदा इस्राईली प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू को मिलने वाला है। नेतनयाहू ने इसी लिए इस घोषणा पर ट्रम्प का आभार व्यक्त किया।
अमरीका के इस एलान पर ईरान ने तत्काल जवाबी कार्यवाही की। ईरान की ओर से उच्च स्तर पर प्रतिक्रिया सामने आई है। ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई, विदेश मंत्री मुहम्मद जवाद ज़रीफ़, राष्ट्रपति रूहानी सबने प्रतिक्रिया ज़ाहिर की। ईरान ने मध्यपूर्व, मध्य एशिया और थार्न आफ़ अफ़्रीक़ा के इलाक़े में मौजूद अमरीकी फ़ोर्सेज़ को आतंकी घोषित कर दिया है।
अमरीका के निर्णय से ईरान की पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ेगा जबकि अमरीकी सैनिकों को आने वाले दिनों में भारी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है, इसलिए कि इन सैनिकों पर ईरान के समर्थक संगठनों की ओर से लेबनान, सीरिया, इराक़, पाकिस्तान तथा अन्य देशों में हमलों का सामना करना पड़ सकता है।
पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स के जवानों और अधिकारियों को अमरीका में प्रवेश से रोकने के निर्णय का इस सैन्य संस्था पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है क्योंकि यह लोग अमरीका के दरवाज़े पर तो खड़े नहीं हैं कि उन्हें अमरीका में प्रवेश की अनुमति मिलने की प्रतीक्षा हो, उन्हें न तो अमरीकी वीज़ा की ज़रूरत है और न ही वह केलीफ़ोर्निया की रिसार्ट में छुट्टियां बिताने की इच्छुक हैं।
पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, राष्ट्रपति रूहानी ने बिल्कुल सही कहा कि अमरीका विश्व स्तर पर आतंकवाद का पालन पोषण कर रहा है। उन्होंने इसके सुबूत पेश करते हुए कहा कि अमरीका ने मिसाइल हमला करके वर्ष 1998 में फ़ार्स खाड़ी के ऊपर ईरान का यात्री विमान मार गिराया था जिसमें 290 यात्रियों की जान चली गई।
इसके अलावा हम भी इराक़ पर क़ब्ज़ा करने से पहले और बाद में इस देश में अमरीकी सैनिकों ने जो नरसंहार किए हैं वह भी राष्ट्रपति रूहानी द्वारा पेश किए गए सुबूतों की सूचि में शामिल कर देना चाहते हैं।
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान ने एक टीवी इंटरव्यू में साफ़ साफ़ कहा कि अमरीका ने ही उनके देश से मांग की थी कि वहाबी विचारधारा को दुनिया में फैलाए और कवेल अफ़ग़ानिस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य देशों में कम्युनिस्ट फ़ोर्सेज़ औज्ञ सोवियत संघ की सेना पर हमले के लिए चरमपंथी वहाबी संगठनों की मदद करे। क़तर के पूर्व प्रधानमंत्री शैख़ हमद बिन जासिम ने भी कहा कि सीरिया में उनके देश ने चरमपंथी वहाबी संगठनों को एक भी डालर अमरीकी इंटेलीजेन्स से समन्वय किए बना अदा नहीं किया।
डोनल्ड ट्रम्प जिन्होंने अमरीका के इस नए निर्णय की घोषणा ट्वीट करके की है यह भूल गए हैं कि इराक़ के भीतर सैनिक छावनियों में 5500 अमरीकी सैनिक मौजूद हैं और अभी तीन चार दिन पहले सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई ने इराक़ी प्रधानमंत्री आदिल अब्दुल मेहदी से मुलाक़ात में साफ़ साफ़ कहा कि इराक़ जितनी जल्दी हो सके अमरीकी सैनिकों को इराक़ से बाहर निकाले।
इसका मतलब यह है कि जिस तरह बैरूत में 1983 में अमरीकी सैनिकों पर हमले हुए थे और हमले में 299 अमरीकी और फ़्रांसीसी सैनिक मारे गए थे उसी तरह के हमले इराक़ में भी हो सकते हैं। हमें नहीं लगता कि ट्रम्प को इन बातों का ज्ञान होगा जो अपने मित्र नेतनयाहू के हाथ का खिलौना बनकर रह गए हैं।
इराक़ में स्वयंसेवी बल हश्दुश्शअबी मौजूद है इसके अलावा सीरिया और लेबनान बल्कि दूसरे भी कई अरब व इस्लामी देशों में ईरान के बड़े समर्थक और घटक मौजूद हैं और हमें नहीं लगता कि यह संगठन अमरीकी सैनिकों पर हमला करने में तनिक भी हिचकिचाएंगे।
ईरान की सुप्रीम राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के बयान में थार्न आफ़ अफ़्रीक़ा में मौजूद अमरीकी फ़ोर्सेज़ की ओर संकेत केवल संयोग नहीं है। यह ठोस योजना की ओर इशारा है। शायद सूमालिया में वर्ष 1993 में अमरीकी विमान मार गिराए जाने की घटना को याद दिलाया गया हो। इस घटना में विमान में मौजूद सारे लोग मारे गए थे और पूरे इलाक़े से कुछ ही दिनों के भीतर सारे अमरीकी सैनिक भाग निकले थे।